थ्रेड: #हमारे_सरकारी_बैंक

पार्ट 2: सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया

आज एक ऐसे बैंक के बारे में बात करते हैं जो शायद शीघ्र ही इतिहास के हवाले कर दिया जाएगा।

कहा जाता है गुलाम भारत ब्रिटिश साम्राज्य के ताज का हीरा था।
इस हीरे को पकडे रखने के लिए अंग्रेजों के लिए ये ज़रूरी था कि भारत को अविकसित ही रखा जाए। इसके लिए उन्होंने हर संभव कोशिश की कि भारत में उद्योगों पर पूरी तरह से अंग्रेजों का ही कब्ज़ा रहे। इसके लिए भारतीय उद्योगों के प्रति भेदभावपूर्ण नीति अपनाई गई, और उसी का भाग था बैंकिंग।
प्रथम विश्वयुद्ध से पहले सारे बैंक अंग्रेजों के ही अधिकार में थे। ये सिर्फ सरकार के इशारे पे ही चलते थे। भारतीय इस बात को बखूबी समझते थे कि बिना सम्पूर्ण भारतीय बैंक के स्वदेशी और स्वराज्य का सपना पूरा नहीं हो सकता। मगर भारतीयों को आधुनिक बैंकिंग का अधिक अनुभव नहीं था।
इसी दौरान एक बैंक घोटाले में अपना सब कुछ गँवा देने वाले गरीब परिवार में जन्मे श्री सोराबजी पोचखानवाला अपने बड़े भाई की मदद से लंदन के इंस्टिट्यूट ऑफ़ बैंकर्स से प्रोफेशनल बैंकिंग में भारत के पहले सर्टिफाइड एसोसिएट बने।
कुछ समय एक विदेशी बैंक में काम करने के बाद उन्हें समझ आया कि अगर भारत का औद्योगिक विकास करना है, और भारत की जनता को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनाना है तो सम्पूर्ण भारतीय बैंक का होना अतिआवश्यक है।
इसी जरूरत को मद्देनज़र रखते हुए 1911 में मुंबई में नरम दल के नेता सर फ़िरोज़शाह मेहता की अध्यक्षता में भारत की प्रथम 'शुद्ध' भारतीय Central Bank of India की स्थापना की गई।बैंक ने 1921 में आमजन के लिए सेविंग अकाउंट की सुविधा शुरू की।1923 में टाटा इंडस्ट्रियल बैंक का अधिग्रहण किया।
1924 में महिलाओं के लिए विशेष विभाग की स्थापना की गई। बैंक ने 1936 में पहला इंडियन एक्सचेंज बैंक लंदन में स्थापित किया जिसे बाद में Barclays ने खरीद लिया। द्वितीय विश्वयुद्ध से ठीक पहले बैंक ने बर्मा में एक ब्रांच स्थापित की जिसको बाद में म्यांमार सरकार ने अधिगृहीत कर लिया।
1969 में बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।1980 में Central Bank of India भारत में क्रेडिटकार्ड लांच करने वाली पहली बैंक बनी।उसी दौरान बैंक की लंदन शाखा पंजाब नेशनल बैंक और यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया के साथ सेठिया घोटाले में शामिल पाई गई जिसके चलते इनका लंदन का बिज़नेस बंद कर दिया गया
सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया ने अफ्रीकी देशों से भारत के रिश्ते मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभाई है। 1984 में सेंट्रल बैंक ने बैंक ऑफ़ बड़ौदा, बैंक ऑफ़ इंडिया और जाम्बिया सरकार के साथ मिलकर Indo-Zambia Bank Limited की स्थापना की।
आज सेंट्रल बैंक की साढ़े चार हजार से ज्यादा ब्रांच हैं जिनमें से 63% ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। सेंट्रल बैंक सात ग्रामीण बैंकों का स्पांसर बैंक है। वैसे तो सेंट्रल बैंक की शाखाएं पूरे भारत में फैली हुई हैं
मगर पश्चिम, मध्य और पूर्वी भारत में बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने में सेंट्रल बैंक अग्रणी माना जाता है। 2007 में सेंट्रल बैंक का IPO आया जो कि भारतीय बैंकिंग के इतिहास में सबसे ज्यादा सब्सक्राइब किया गया (62 गुना)। लेकिन 2014 के बाद से ही बैंक की हालत खराब होनी शुरू हो गई।
130 रूपये पे खुला IPO जो एक समय में 210 तक भी गया, पिछले साल 10 रूपये पर ट्रेड हो रहा था। बैंक कि शाखाएं और काम कि जिम्मेदारियां बढ़ रही थी मगर बैंक का स्टाफ जो 2014 में चालीस हजार से ज्यादा था 2020 में घटा कर 33 हजार कर दिया गया।
जो ग्रॉस NPA 2011 में मात्र 2% थे वे 2020 में बढ़कर 19% यानी 32 हजार करोड़ पर पहुँच गए। सरकार ने बीच बीच में रिकैपिटलाइजेशन भी किया मगर कॉर्पोरेट NPA सब सफा चाट कर गया। पिछले दिनों सरकार ने अचानक ही तीन अन्य बैंकों के साथ सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया के भी निजीकरण कि घोषणा कर डाली।
जिन कर्मचारियों ने जनसेवा के लिए बैंकिंग ज्वाइन की थी वे आज खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। आइये निजीकरण के खिलाफ आवाज उठायें।
#StopPrivatization
#StopPrivatizationOfPSBs
#CorporatePuppetGOVT
#PSBsNot4Sale
#PSB_Not_For_Sale
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