#Thread: #Madhavrao_Peshwa ( 276Th जयंती )

इतिहास के स्वर्णिम पन्नो में कुछ गिने चुने विरों के नाम लिखे जाएंगे जिन्होने भारत माता का शीश सदैव ऊँचा रखने केलिए अथक प्रयास किया,उनमे से एक नाम होगा "माधवराव पेशवा" का ! आज उनकी 270 वि जयंती है !
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इतिहास के स्वर्णिम पन्नो में कुछ गिने चुने विरों के नाम लिखे जाएंगे जिन्होने भारत माता का शीश सदैव ऊँचा रखने केलिए अथक प्रयास किया,उनमे से एक नाम होगा "माधवराव पेशवा" का ! आज उनकी २४८ वि पुण्यतिथि है !
.मराठो की ताकद आएदिन बढ़ती जा रही थी और इसके कारन दिल्ली सल्तनत ने अहमद शाह हो मराठो को पराजित करने केलिए बुलाया था.

तब पुणे के शनिवारवाडा में पेशवा के पद पर विराजमान थे बाजीराव पेशवा के पुत्र नानासाहेब पेशवा और
उनके साथ थे उनके दो अत्यंत शूरवीर भाई रघुनाथराव पेशवा और सदाशिवराव भाऊ.अब्दाली को टक्कर देने की रणनीति बनाई जा रही थी और इन सभी घटनाओ को बारीकी से देख रहे थे,माधवराव पेशवा.माधवराव तब सोलह साल के थे.पानीपत पर लड़ाई होने वाले है यह तै होगया.
नानासाहेब की प्रकृति दिनबदिन घटती चली जा रही थी,इसलिए सेना के नेतृत्व की जिम्मेवारी सदाशिवराव भाऊ को सौप दी गई.
१७ जनवरी १७६१ को अहमद शाह अब्दाली और उनके साथीदार रोहिला,शुजाउद्दौलाह इनके साथ मिलकर पानीपत के भूमिपर भयानक युद्ध हुवा.
मराठो ने लगभग लड़ाई जित ली थी,तभी किसी कारण से हार हुई,लेकिन यह युद्ध ऐसा हुआ की अब्दाली की सेना पूरी तरह से नेस्तनाबूत होगई और वो फिरसे अफगानिस्तान को लौट गया.
इस युद्ध में पेशवाई के दो मोती 'सदाशिवराव भाऊ और विश्वासराव(नानासाहेब के ज्येष्ठ बेटे) को वीरगति प्राप्त हुई.हजारो मराठे योद्धा इस युद्ध में मारे गए.मराठेशाही की बहोत बड़ी हानि हुई.सिर्फ लोग नहीं बल्कि बोहोत सारा धन भी खोना पड़ा
और मरठीशी की जड़े हिल गई.पानीपत के युद्ध के पराभव के बाद थोड़ेही दिनों में नानासाहेब का मृत्यु हुआ और उगम हुआ ऐसे पेशवा की जिसने मराठेशाही को पुनःप्रस्थापित किया.
माधवराव सिर्फ सोलह साल के थे जब उन्होंने पेशवाई के वस्त्र परिधान किये और उनके राज-संरक्षक बने रघुनाथराव पेशवा,नानासाहेब के भाई.माधवराव पेशवा होते ही उन्हें पहले आंतरिक कलह का सामना देना पड़ा
.बहोत सारे लोग उनके पेशवा पद पर नियुक्त होने के कारण नाखुश थे. शत्रुओ ने इस आंतरिक कलह का फायदा लेते हुए पुणे की तरफ कूच करना चालू किया.
पेशवाओ ने निज़ाम से जीती हुई जमीन लेने केलिए,निज़ाम एक एक करके पुणे की तरफ आ रहा था,आते वक्त उसके रास्ते में जो जो मंदिर थी उनका भंजन करते हुए वह आ रहा था.और कुछ ही दिनों में उसने पुणे पर हमला किया.
इसके कारण पुणे के रहिवासिओ को नजदीक के गढ़ किलो पर जाना पड़ा. इस कृत्य से क्रोधित होकर रघुनाथराव ने हैदराबाद में निज़ाम के इलाको पर हमला किया और निज़ाम के सेना के जड़ो को हिला दिया.
निज़ाम हो हारने केलिए रघुनाथराव ने पूरी कोशिश की और वह निज़ाम को पुणे के ५० मिल दूर एक इलाके में रोकने केलिए यशस्वी हुए,कुछ कारण और सौदे के बाद रघुनाथराव ने निज़ाम को छोड़ दिया लेकिन
निज़ाम ने कुछ सालो बाद फिरसे १७६३ में मराठो पर हमला किया और रक्षाभुवन का युद्ध हुआ.और इस युद्ध में माधवराव ने सिद्ध किया वे पेशवा पद केलिए तैयार है.
इस युद्ध में रघुनाथराव के हति को निज़ाम के सैन्य ने घेर लिया था,और यह दृश्य देखते ही माधवराव ने मराठा सैनिको को उनके चाचा को बचाने के और विट्ठलसुंदर जो निज़ाम के सेनापति थे आदेश दिए और विट्ठल सुन्दर को मार गिराया
.राक्षसभुवन के युद्ध में माधवराव एक कुशल नेतृत्व के उभर कर आए. माधवराव और निज़ाम के बिच में एक करार हुआ और १८ साल के पेशवा ने ऐसा कार्य कर दिखाया जो इससे पहले संभव नहीं हुआ था.
३० साल केलिए निज़ाम ने मराठा साम्राज्य में फिरसे पैर नहीं रखा,एक एक करते करते उन्होंने अनेक मराठा सरदारों का विश्वास जित लिया.महादजी शिंदे और शिंदे कुल के सभी लोग आखिर तक मराठा साम्राज्य के सेवक रहे.
१७६३ और १७६८ के बिच माधवराव और हैदर अली (टीपू सुल्तान के पिता) के बिच युद्ध हुए और हर बार माधवराव ने हैदर को हराया. पानीपत के युद्ध में गवाया हुआ धन ऐसे युद्धों के कारण मराठा साम्राज्य में फिरसे लौट रहा था.
कर्णाटक मुहीम के कारण अब मराठा साम्राज्य माधवराव के नेतृत्व के निचे दक्षिण में भी विस्तारित हो रहा था.माधवराव की ख्याति दिनबदिन बढ़ती जा रही थी.वह युद्ध कला में तो निपुण थे ही लेकिन उससे ज्यादा वह निपुण थे कूटनीति में और कठोर निर्णय लेने में.
१७६९ में माधवराव ने रघुनाथराव को उनके विरुद्ध षड़यंत्र रचने के आरोप में कैद करलिया.उन्होंने इससे यह सन्देश दिया की वह इस मराठा साम्राज्य के विस्तार के बारे में इतने कटिबद्ध है की वह इसके बिच आने वाले किसीभी व्यक्ति को बख्शेंगे नहीं,उनके चाचा हो तो भी !
माधवराव अब दक्षिण के बाद उत्तर के दिशा में कूच करने केलिए तैयार थे.उनके साथ थे होल्कर और महादजी शिंदे. १७६९ में रामचंद्र गणेश और विसाजी कृष्णा के नेतृत्व में माधवराव ने दिल्ली पर कूच करने के आदेश दिए.महादजी और तोकोजी भोंसले उनसे मालवा में मिले
.जाते वक्त,राजपूतो ने उन्हें धन और सेना स्वरुप मदत की और उसके बदले में मराठो ने जाट सैन्य को हराकर यमुना नदी तक की जमीन मराठा साम्राज्य में शामिल करदी.
नजीब खान ने मराठो के बढ़ती ताकद को भापकर तुकोजी भोंसले के साथ हाथ मिलाने का प्रस्ताव सामने रखा,और वह उसका सैन्य मराठो देकर अपने देश अफ़ग़ान के तरफ लौटने लगा लेकिन उसे रास्ते में ही मृत्यु का सामना करना पड़ा.
महादजी को यह प्रस्ताव मंजूर नहीं था,क्योंकि नजीब ने शिंदे कुल के अनेक विरोंको मौत के घाट उतर दिया था.तुकोजी और महादजी के बिच मतभेद बढ़गए.यह सन्देश माधवराव को पोहोचा और उन्होंने उनके सरदारों को कड़े शब्दों में यह सब कलह मिटाने का आदेश दिया.
उसी वक्त उनहोंने हिन्दुओ के तीर्थ क्षेत्र काशी मथुरा और प्रयाग नवाब के कब्जे से जितने की मंशा उनके सरदारों के सामने रखी.तब अवध का नवाब था शुजाउद्दौलाह,जो अंग्रेजो की कटपुतली था.
मराठो ने बड़ी होशियारी से दिल्ली के तख़्त पर मराठो की कटपुतली बनाकर शुजा को दिल्ली का सुल्तान बना दिया और सिर्फ नाम का सुल्तान ! पूरी ताकद तो मराठो के ही हातो में थी.ये रणनीति बनाई थी माधवराव ने.
१७७२ में मराठा साम्राज्य का भगवा ध्वज अब फिरसे दिल्ली के लाल किले पर लहरा रहा था,१७६१ के पानीपत युद्ध में मराठो ने जितनी जमीन और धन खोया था उससे कई गुना ज्यादा धन और विस्तार माधवराव उनके कालखंड में किया.
एक एक करते हुए मराठो ने माधवराव के नेतृत्व में देश के विभिन्न भागो में इस्लामिक ताकदोंको मार गिराया और मराठा साम्राज्य दिल्ली से लेकर श्रीरंगपट्टनम तक विस्तारित किया.
और जब मराठा साम्राज्य इतनी तेजी से विस्तारित हो रहा तभी फिरसे नियति ने अपनी विकृत चाल चली.माधवराव की प्रकृति बहोत बिगड़ गई.उनके साथ हमेशा परछाई बनकर खड़ी रहने वाली रमाबाई पेशवा ने उनकी बहोत सेवा की.हर एक निर्णय में वह उनके साथ खड़ी रही.
१८ नवम्बर १७७२ ,आयु २७ साल के उम्र में माधवराव का मृत्यु,चिंतामणि गणपति मंदिर,थेऊर में हुआ.
मराठा साम्राज्य फिरसे एकबार हिलगया.
पेशवा माधवराव ने पराजित हुए मराठा साम्राज्य को फिरसे एक बार अद्वितीय मराठा साम्राज्य बना दिया
.पेशवा बाजीराव के पगचिन्हो पर माधवराव बखूबी चले.१८ नवम्बर को मुला-मुठा नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार हुआ और रमाबाई ने उनके साथ सहगमन किया.सती रमाबाई और माधवराव की प्रेम कहानी को आज भी याद किया जाता है !
माधवराव ने अपने मृत्युपत्र में काशी मथुरा और प्रयाग जितने के आदेश मराठा सरदारों को दिए थे.एक कुशल योद्धा,धर्म को जानने वाला,कूटनीति में महारत हासिल किया हुआ माधवराव जैसे योद्धा शायदही इस भूमि ने कभी देखा होगा !
उनके 276 वि जयंती के अवसर पर मै नमन करता हु ! माधवराव और अन्य विरोंकी ही कहानी याद रखना और उसपे अमल करना ही उनकेलिए एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि है ! हर हर महादेव !

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