संस्कृत, जो की सभी भाषाओं की जननी है, वह भारत की 23 आधिकारिक भाषाओं में से एक है। भारत के सभी प्रांतीय भाषाओं मे संस्कृत शब्द प्राप्त होते है | यहां तक की बङ्ग्ला और दक्षिणभारत की सभी प्रान्तीय भाषाओं में अधिकांश शब्द संस्कृत भाषा के ही है। यह हिंदू धर्म की एक प्रचलित भाषा भी है।
संस्कृत जो कभी मुनियों और ऋषियों की भाषा थी, अब आधुनिक दुनिया को इस तरह से आकर्षित कर रही है कि विशेषज्ञों की राय है कि यह कंप्यूटर के साथ उपयोग के लिए सबसे अच्छी भाषा है। संस्कृत साहित्य मानव जाति के इतिहास का सबसे सरल साहित्य माना जाता है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसकी उत्पत्ति क्या है? हमारा मानना ​​है कि इसकी उत्पत्ति देवलोक से हुई है। लेकिन यह पृथ्वी पर कैसे फैल गई? आज हम उस बारे में चर्चा करने वाले हैं।

संस्कृत ऋग्वेद से पूर्व भी रही होगी लेकिन उसका कोई प्रमाण हमारे पास अभी तक नहीं है।
ऋग्वेद की तिथि निर्धारण करना अत्यधिक मुष्किल कार्य है किंतु फिर भी विद्वानों के अनुसार ईसापूर्व 3500ई . में सम्भवतः ऋग्वेद की रचन हुई  होगी ।

ऐसा कहा जाता है कि 19 वीं शताब्दी की शुरुआत में, यूरोपीय लोगों को अष्टाध्यायी नामक एक पुस्तक मिली । पहले तो वे इसे समझ नहीं पा रहे थे।
लेकिन, जब इसे डिकोड किया गया, तो इसने उनके होश ही उड़ा दिए। पुस्तक में हमारे महान विद्वान ऋषि पाणिनि द्वारा लिखी गई भाषा की उत्पत्ति थी।

पाणिनि का जन्म वर्तमान पाकिस्तान में स्थित शालतुला नामक शहर में 4-6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच हुआ था। ( कोई सटीक तारीख़ नहीं मिलती)
पर भविष्य पुराण के श्लोकों से उनके कलियुग में होने की पुष्टि होती है।

पाणिनि को भाषा विज्ञान का जनक माना जाता है। इनकी रचना अष्टाध्यायी में 8 अध्याय हैं; प्रत्येक अध्याय में 4 पाद हैं; प्रत्येक पाद में 38 से 220 तक सूत्र हैं और सब मिलाकर 3,959 सूत्र हैं।
यह वेदांग की 6 शाखाओं में से एक, याकरण शाखा, का मूलभूत पाठय है। इसे समझने के लिए एक बहुत ही जटिल पाठय माना जाता है। पर ऋषि पतंजलि ने इसे सरल रूप में व्याख्या कर ‘महाभाष्य’ की रचना की।

ऋषि पाणिनि ने विचरण के सभी नियमों को लिखा, जिसमें स्वर, शब्द उच्चारण आदि के नियम शामिल हैं।
उसकी भाषा की औपचारिकता, भरत मुनि द्वारा नृत्य और संगीत में प्रभावशाली रही है।

नोट -अष्टाध्यायी संस्कृत व्याकरण का पहला विवरण नहीं है, किन्तु यह सबसे पुराना विवरण है जो पूर्ण रूप से हमारे बीच मौजूद है।
खैर इस बारे में एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है कि पाणिनी ने किस तरह से अष्टाध्यायी को लिखा था।

एक दिन, भगवान शिव उसके सपने में आए और डमरू बजाते हुए तांडव किया। उस डमरू से 14 स्वरो का उत्पादन हुआ, 5 एक तरफ से 9 और दूसरे से और ऋषि पाणिनि ने उन्ही 14 स्वरों से अष्टाध्यायी की रचना की ।
(अष्टाध्यायी के पहले भाग में जिसका नाम शिवसूत्र है इस कहानी का उल्लेख मिलता है, हालाँकि इसको ले के कई मतभेद भी हैं पर मैं तो इसे सच मानता हूँ।

संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं और ये चारों दिशाओं से अलग-अलग निकलती हैं।
इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनकी पृथ्वी के 8 वसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की 9 रश्मियां और पृथ्वी के 8 वसुओं के आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुईं,
वे संस्कृत के व्यंजन बन गईं। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्ण माला पर आधारित हैं।
 
ब्रह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से ही जानकारी मिलती है। इन ध्वनियों को अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के संगठन नासा और इसरो ने भी माना है।
तो यह इस बात का प्रमाण है कि हाँ, संस्कृत देवताओं की भाषा है जो विभिन्न ऋषियों के माध्यम से हमारी पृथ्वी पर फैल गई।
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