न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात करें?
कैसे चलता है नकली किसानों का गोरखधंधा?
कैसे लगाते हैं वो देश की अर्थव्यवस्था को चूना..?
आइए सीधे शब्दों में समझने का प्रयास करते हैं..
कैसे चलता है नकली किसानों का गोरखधंधा?
कैसे लगाते हैं वो देश की अर्थव्यवस्था को चूना..?
आइए सीधे शब्दों में समझने का प्रयास करते हैं..
तो शुरुआत से शुरू करते हैं..
एक किसान 70 रुपये की अपनी उपज
80 रुपये में एक नकली किसान को बेचता है..नकद..बिना किसी आय कर के..
नकली किसान 80 रुपये की ये खरीद
सरकार को 100 रुपये में बेचता है..
आय कर विभाग के लिए कोई गुंजाइश नहीं यहाँ ..
एक किसान 70 रुपये की अपनी उपज
80 रुपये में एक नकली किसान को बेचता है..नकद..बिना किसी आय कर के..
नकली किसान 80 रुपये की ये खरीद
सरकार को 100 रुपये में बेचता है..
आय कर विभाग के लिए कोई गुंजाइश नहीं यहाँ ..
किसने कितना कमाया..कोई हिसाब नहीं..
नया कृषि कानून खरीदने और बेचने वाले दोनों से आधार और PAN नम्बर की अनिवार्यता चाहता है जो नकली किसानों यानि दलालों के लिए परेशानी वाली बात होगी..
नया कृषि कानून खरीदने और बेचने वाले दोनों से आधार और PAN नम्बर की अनिवार्यता चाहता है जो नकली किसानों यानि दलालों के लिए परेशानी वाली बात होगी..
चलिए आगे बढ़ते हैं..
सरकार 100 रुपये में खरीदा गया उत्पाद उचित मूल्य की दुकानों पर जनता को उपलब्ध कराती है जहाँ इसका विक्रय मूल्य सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी पर निर्भर करता है..50% सब्सिडी हुई तो 50 रुपये मात्र..
सरकारी सब्सिडी पर आपत्ति नहीं है किंतु यहाँ भी गड़बड़ होती है..
सरकार 100 रुपये में खरीदा गया उत्पाद उचित मूल्य की दुकानों पर जनता को उपलब्ध कराती है जहाँ इसका विक्रय मूल्य सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी पर निर्भर करता है..50% सब्सिडी हुई तो 50 रुपये मात्र..
सरकारी सब्सिडी पर आपत्ति नहीं है किंतु यहाँ भी गड़बड़ होती है..
यहाँ ये लोग जमाखोरी करते हैं..
बिक्री के झूठे रिकार्ड रखते हैं..अनाज अपने पास धरा रखते हैं और अगले साल फिर नये न्यूनतम समर्थन मूल्य पर
वही अनाज नई उपज बता कर सरकार को बेच देते हैं..
इतना ही नहीं बिक्री का कमीशन भी खाते हैं..
बिक्री के झूठे रिकार्ड रखते हैं..अनाज अपने पास धरा रखते हैं और अगले साल फिर नये न्यूनतम समर्थन मूल्य पर
वही अनाज नई उपज बता कर सरकार को बेच देते हैं..
इतना ही नहीं बिक्री का कमीशन भी खाते हैं..
और ये चक्र चलता रहता है..किसान को मिलने वाला 70 रुपया तो एक आशावादी अनुमान है..किसान की जरूरत के हिसाब से ये लोग उस के पसीने की कीमत लगाते हैं..
क्या आप विश्वास करेंगे कि हरियाणा-पंजाब की मंडियों-गोदामों में मजदूर लगने के लिए लाखों की रिश्वत देनी होती है..?
जिसका काम केवल अनाज की बोरियाँ गिन कर खाली कराना होता है..
वही मजदूर पर्ची लिख कर देता है कि कितनी बोरियाँ उतारी गईं..
एक बोरी पर पाँच-दस रुपये सरकारी रेट है..
जिसका काम केवल अनाज की बोरियाँ गिन कर खाली कराना होता है..
वही मजदूर पर्ची लिख कर देता है कि कितनी बोरियाँ उतारी गईं..
एक बोरी पर पाँच-दस रुपये सरकारी रेट है..
और अन्नदाता?
वो तो एक ही बार पैसा पाता है।उसकी मजबूरी है कि मंडी में माल बेचे,उसके लिए इन दलालों की मदद ले और अगर इनकी मदद ना लेना चाहे तो उसे दिनों और हफ्तों अपने अनाज का ट्रक लेकर वहीं पड़े रहना पड़ता है.कोई उसकी मदद नहीं करता.दलालों के बाहुबलियों से कौन उलझे..?
वो तो एक ही बार पैसा पाता है।उसकी मजबूरी है कि मंडी में माल बेचे,उसके लिए इन दलालों की मदद ले और अगर इनकी मदद ना लेना चाहे तो उसे दिनों और हफ्तों अपने अनाज का ट्रक लेकर वहीं पड़े रहना पड़ता है.कोई उसकी मदद नहीं करता.दलालों के बाहुबलियों से कौन उलझे..?
इन नकली किसानों की पहुँच उचित मूल्य की दुकानों तक तो है ही और ये एक जाना माना तथ्य है।
ये लोग अनाज जनता तक पहुँचाने की बजाय सड़ने देते हैं ताकि शराब उत्पादकों को बेच कर मोटी कीमत वसूल सकें।
ये लोग अनाज जनता तक पहुँचाने की बजाय सड़ने देते हैं ताकि शराब उत्पादकों को बेच कर मोटी कीमत वसूल सकें।
ये अनाज की खरीद तो केवल एक उदाहरण है..फर्टिलाइजर, बीज, खाद, कीटनाशक दवाइयों के लिए सब्सिडी के कड़ाह में भी इन लोगों ने अपने हाथ-पाँव-नाक सब घुसा रखे हैं..
किसान को उबरने ही नहीं देते..
किसान को उबरने ही नहीं देते..
अन्नदाता से आगे बढ़ते हैं और आते हैं उद्योगपतियों पर..बेचारे बेकार में बदनाम हैं..अडानी तो फसल खरीदते ही नहीं..वे फूड कार्पोरेशन को गोदाम उपलब्ध कराते हैं..
और करदाता?
आप और हम?
हम वहन करते हैं ये सब भार..
गुणवत्ताहीन अनाज का समर्थन मूल्य..
सड़े-गले इस अनाज के परिवहन एवं भंडारण का खर्च.
सरकारी सब्सिडी.
कृषि आधारित आय पर इन्हें दी जाने वाली आयकर छूट.
उचित मूल्य की दुकानों के मालिकों का कमीशन.
बार-2 MSP.
फिर परिवहन और भंडारण.
फिर-फिर..
आप और हम?
हम वहन करते हैं ये सब भार..
गुणवत्ताहीन अनाज का समर्थन मूल्य..
सड़े-गले इस अनाज के परिवहन एवं भंडारण का खर्च.
सरकारी सब्सिडी.
कृषि आधारित आय पर इन्हें दी जाने वाली आयकर छूट.
उचित मूल्य की दुकानों के मालिकों का कमीशन.
बार-2 MSP.
फिर परिवहन और भंडारण.
फिर-फिर..
और हाँ..
रियायती दरों पर बिजली और पानी का खर्च भी..!
नये कृषि कानून इन खामियों को दूर करने की दिशा में पहला कदम है..
आपके सुझावों का स्वागत रहेगा..
धन्यवाद @ASHISHTWITTED इस थ्रेड में मेरी सहायता करने के लिए..
रियायती दरों पर बिजली और पानी का खर्च भी..!
नये कृषि कानून इन खामियों को दूर करने की दिशा में पहला कदम है..
आपके सुझावों का स्वागत रहेगा..
धन्यवाद @ASHISHTWITTED इस थ्रेड में मेरी सहायता करने के लिए..
