किसान आंदोलन :- जिस तरह का कल तीन घंटे के चक्का जाम का किसानो ने समर्थन किया उस को देख कर कह सकता हु की ये आंदोलन धीरे २ जन समर्थन खोता जा रहा है ओर सरकार अपना पक्ष मज़बूत करती जा रही है . किसी भी आंदोलन का ऐसे ख़त्म होना निराशाजनक है
इस तरह से एक तरह से सरकार के मन से जन दबाव का भय निकल जाएगा ... विपक्ष पहले ही दम तोड़ चुका है अब आंदोलन का भय भी निकल जाएगा .. दो साल स्थगित वाला फ़ॉर्म्युला मान लेते या फिर जब सरकार MSP की लिखित में देने को तैयार थी वहाँ सरकार पर जन दबाव साफ़ देखा जा रहा था
आम किसान के मन में ये बात आ रही है की सरकार तो बात सुन रही है पर ये नेता लोग अपनी रोटियाँ सेक रहे है . इस आंदोलन के पास कोई चेहरा नहीं है ये सबसे बड़ी कमी है , राकेश टिकैत सिर्फ़ एक क़ौम का प्रतिनिधि बन कर रह गए है ओर जिस तरह से west UP में जयंत चौधरी इस आंदोलन को
किसान आंदोलन से हटा कर RLD का आंदोलन बना दिया तो बाक़ी लोग इस आंदोलन से अपने आप को दूर कर रहे है ओर भाजपा भी अपने west UP के नेताओ को ज़मीन पर उतार दिया है , हरियाणा में सिर्फ़ हुड्डा जी ने अपने समर्थकों को मैदान में उतारा उस से बाक़ी लोग इस से किनारा कर गए
हरियाणा में सोनीपत , रोहतक ओर जींद वालो का आंदोलन बन कर रह गया ओर धीरे २ लग इस से दूर ही जाएँगे , पंजाब में विरोध है पर उन्होंने अपनी सारी ऊर्जा छब्बीस जनवरी में ही लगा दी , उधर से भी विरोध तो रहेगा पर आंदोलन के रूप में रहेगा वो मुस्किल लगता है
राजस्थान में पहले तो कोंग्रेस ने इसको मुद्धा बनाया था फिर हनुमान बेनीवाल ने NDA से लग होकर इस को highjeck करने की कोशिश की तब से कोंग्रेस भी इतना विरोध में ऐक्टिव नहीं है ओर ना इसका धरातल को इम्पैक्ट है , हाँ कामरेड हमेसा की तरह कोई भी आंदोलन हो वो ज़रूर हवा दे rahe है
पर कल कही भी कोई चक्का जाम या कोई बड़ा प्रदर्शन हुआ हो ऐसा नज़र नहीं आया , सिर्फ़ कामरेड के कुछ समर्थक ही ट्रैक्टर लेके निकले पर जल्दी ही वापस आ गए
MP, गुजरात, में भी कोई समर्थन इस विरोध को नहीं मिला . पर निराश वाली बात ये है कि इन लोगों ने सब मौजूदा ओर आने वाली सरकारों के मन से आंदोलन का डर निकाल दिया