देश पर अरबों, मुगलों, अंग्रेजों द्वारा आक्रमण और शासन किए जाने की कहानी तो हम पढ़ते हैं परंतुं यह नहीं बताया जाता कि इन आक्रांताओं के आक्रमण के कालखंडों में जो अंतर है, वह भारतीय योद्धाओं के विजय का काल रहा है। उदाहरण के लिए हम सभी जानते हैं कि वर्ष 712 में मुहम्मद बिन कासिम ने
राजा दाहिर को पराजित किया। परंतु उसके बाद सीधे बारहवीं शताब्दी में मुहम्मद गोरी का आक्रमण मिलता है। आठवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक क्या अरब आक्रमणकारी उस एक जीत का जश्न मना रहे थे? वास्तव में इस पूरे काल में अरब आक्रमणकारियों को भारतीय योद्धा खदेड़े हुए थे।
उस कालखंड में अरबों को पराजित करने वाला एक महानायक योद्धा था बप्पा रावल।उस समय मेवाड़ के सैनिकों शासकों ने देश के सीमारक्षक की भूमिका निभाई और भारतवर्ष के सम्मान की रक्षा की, अन्यथा मलेछो की आंधी में नेस्तनाबूत हो जाता सनातन धर्म अपने अस्तित्व को बचाने के लिए पारसियों और
यहूदियों की भांति मातृभूमि से पृथक हो चुका होता।
जन्म:इनका जन्म सन् 713 में मेवाड़ के नागदा में हुआ | पिता, राजा नागादित्य की ह*तया के बाद उसकी पत्नी अपने 3वर्षीय पुत्र को लेकर भाण्डेर नामक दुर्ग में चली गई। यहां बप्पा ब्राह्मणों के पशुओं को चराने लगा।बप्पा के बचपन का नाम कलभोज
जन्म:इनका जन्म सन् 713 में मेवाड़ के नागदा में हुआ | पिता, राजा नागादित्य की ह*तया के बाद उसकी पत्नी अपने 3वर्षीय पुत्र को लेकर भाण्डेर नामक दुर्ग में चली गई। यहां बप्पा ब्राह्मणों के पशुओं को चराने लगा।बप्पा के बचपन का नाम कलभोज
आरम्भिक जीवन और हारीत ऋषि:हारीत ऋषि एक सन्यासी थे. बापा ने हारीत ऋषि की खूब सेवा की. यह समय प्रतिकूल परिस्थतियों का था. अरब खलीफाओं के खु^!नी संघर्ष व धर्म से पन्थ परिवर्तन के अ^!त्या^चारों से हारित राशि दुखी थे.
बापा के व्यक्तित्व, विचारों तथा प्रतिभा से हारित राशि काफी
बापा के व्यक्तित्व, विचारों तथा प्रतिभा से हारित राशि काफी
प्रभावित हुए थे. उन्होंने रावल बापा में वे सभी गुण देखे जो तत्कालीन परिस्थितियों को अनुकूल परिस्थतियों में बदल सकते थे. यही सोचकर बापा को हारित राशि ने उसी तरह शिक्षित व प्रशिक्षित किया, जिस तरह चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को तैयार किया था.
हारित राशि ने बापा को वरदान दिया कि
हारित राशि ने बापा को वरदान दिया कि
तुम मेवाड़ के शासक बनोगे और तुम्हारे वंशजों के हाथ से कभी मेवाड़ का राज्य नही जाएगा. इस वरदान के साथ हारित राशि ने बापा को आर्थिक सहयोग भी किया
बप्पा रावल का मेवाड़ शासक बनना:
शासक बनने के बाद बप्पा रावल ने अपने वंश का नहीं बल्कि मेवाड़ वंश के नाम से अपना नया राज्य चलाया.
इन्होंने चित्तौड़ को अपनी राजधानी बना लिया. बीस वर्ष की आयु में उन्होंने बौरा के नाम से मौर्य वंश को हराकर मेवाड़ जीता। हर शरीर मानता है कि उसके पास
शासक बनने के बाद बप्पा रावल ने अपने वंश का नहीं बल्कि मेवाड़ वंश के नाम से अपना नया राज्य चलाया.
इन्होंने चित्तौड़ को अपनी राजधानी बना लिया. बीस वर्ष की आयु में उन्होंने बौरा के नाम से मौर्य वंश को हराकर मेवाड़ जीता। हर शरीर मानता है कि उसके पास
भगवान शिव द्वारा दी गई शक्तियां हैं और वह उसे सम्मान देना शुरू कर देता है। ये ही थे मेवाड़ के पहले प्रतापी राजा और संस्थापक बापा का राज्यकाल 30 साल का था | वे राज्य को अपना नहीं मानते थे, बल्कि शिवजी के एक रूप ‘एकलिंग जी’ को ही उसका असली शासक मानते थे और स्वयं उनके प्रतिनिधि के
रूप में शासन चलाते थे। किसी भी तरह के विषय पर बातचीत शुरू करने से पहले उन्होंने हमेशा भगवान शिव का नाम लिया।उदयपुर से 12 मील पर स्थित मंदिर परिसर है। मेवाड़ के राणाओं के आराध्यदेव एकलिंग महादेव का मेवाड़ के इतिहास में बहुत महत्व है। मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने 8वीं
शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया और एकलिंग की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी। एकलिंग भगवान को साक्षी मानकर मेवाड़ के राणाओं ने अनेक बार ऐतिहासिक महत्व के प्रण किए थे। इसके निकट हारीत ऋषि का आश्रम है |
बप्पा:शूरवीरता,बाहुबल,अद्भुत सौंदर्य,बलिष्ठ,गुणवान,चरित्रवान ओर वीर पराक्रमी राजा का नाम बड़े सम्मान के साथ लोग लेने लगे -बप्पा| समस्त राष्ट्र के लिए पिता स्वरूप होने के कारण हर कोई उन्हें बप्पा ही कहता।अनुमान है कि बापा की विशेष प्रसिद्धि अरबों से सफल युद्ध करने के कारण हुई थी।
बप्पा के सिक्के
ओझा अजमेर के सोने के सिक्के बप्पा रावल के हैं. सिक्के का वजन 115 ग्रम है, जिसमें सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लेख है. इसके बाईं ओर त्रिशूल व दाहिनी तरफ वेदी का शिवलिंग बना है और इसी तरफ नंदी शिवलिंग की ओर मुख करके बेठे है.जबकि
ओझा अजमेर के सोने के सिक्के बप्पा रावल के हैं. सिक्के का वजन 115 ग्रम है, जिसमें सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लेख है. इसके बाईं ओर त्रिशूल व दाहिनी तरफ वेदी का शिवलिंग बना है और इसी तरफ नंदी शिवलिंग की ओर मुख करके बेठे है.जबकि
नीचे दंडवत् अवस्था में एक व्यक्ति की आकृति है. सिक्के के विपरीत तरफ सूर्य, छत्र और चमर के चिन्ह हैं. इस चिन्ह के नीचे दाहिनी तरफ मुख किए एक गाय खड़ी है, पास में दूध पीता बछड़ा भी है. ये तमाम चिन्ह बप्पा की शिवभक्ति और उसके जीवन से जुड़ी घटनाओं को दर्शाता है.
जब अरबों ने किया आक्रमण: अरबी मलेछो ने फारस (ईरान) को जीतने के बाद भारत पर आक्रमण करने प्रारम्भ कर दिए थे। वे बहुत वर्षों तक पराजित होकर जीते रहे, लेकिन एक रोज कासिम ने धोखे से राजा दाहिर की सेना में अपने सिपाहियों को महिला वस्त्र पहनाकर भेज दिया. आखिरकार, राज्य की रक्षा के लिए
दुश्मनों से लड़ते हुए राजा दाहिर ने अपने प्राणों की आहूति दे दी. मलेछ सिंध को जीतने में सफल हो गए। इसके बाद ही अरबों ने चारों तरफ हमला करना शुरू कर दिया. इन लोगों ने मौर्यों, चावड़ों, सैंधवों, कच्छेल्लोंश व गुर्जरों को भी बुरी तरह परास्त किया था. मोहम्मद बिन कासिम धन तो लूटता
जा रहा था, लेकिन साथ में बड़े पैमाने पर उसके नर^!%संहार की वजह से रास्ते में पड़ने वाले गांव पूरी तरह से तबाह हो जाते थे। उस जीत के बाद सभी महंगी चीजें चुरा लीं और कहा कि लोग उनका पन्थ् स्वीकार करें या म^र जाएं। इतने सारे लोग सिंध से भागकर भारत के विभिन्न स्थानों पर चले गए
ऐसे में बप्पा रावल ने युद्ध की अगुवाई शुरू कर दी। उन्होंने विशाल सेना को जमा कर लिया। साथ ही जो राज्य हार चुके थे, उन्हें भी जीत का भरोसा दिला कर अपने पाले में मिला लिया। सबसे पहले उन्होंने मेवाड़ के नजदीक चित्तौड़ किले पर विजय हासिल की और इसके बाद 734 ईस्वी में यहां गहलोत वंश
की भी स्थापना कर दी। उन्होंने अरबों को तो खदेड़ा ही, साथ में उन्होंने जो इलाके पर कब्जा किया था, उसे भी वापस हासिल करके मेवाड़ में मिला लिया। उन्होंने मलेछो को सिंध के पश्चिमी तट तक सीमित रहने के लिए बाध्य कर दिया, जो आजकल बलूचिस्तान के नाम से जाना जाता है।उन्होंने अन्य राजाओं
के साथ मिलकर 16 साल अरब लुटेरों से लड़ाई लड़ी और उन्हें हिंदुस्तान की मुख्य भूमि से दूर रखा.फिर एक समय ऐसा आया जब बप्पा रावल ने सिंध से अरबों को पूरी तरह से खदेड़ कर उनका प्रभाव हमेशा के लिए समाप्त कर दिया | इतना ही नहीं उन्होंने आगे बढ़कर गजनी पर भी आक्रमण किया और वहां के शासक
सलीम को बुरी तरह हराया। गजनी पर जीत हासिल करने के बाद भी बप्पा का विजय रथ आगे बढ़ता रहा। उन्होंने कंधार के साथ खुरासान, इस्पाहन, तुरान और ईरानी साम्राज्य को भी जीत लिया था एवं अपने साम्राज्य का हिस्सा बना लिया था। चित्तौड़ को अपना केन्द्र बनाकर उन्होंने आसपास के राज्यों को भी
जीता और एक दृढ़ साम्राज्य का निर्माण किया। उन्होंने अपने विजयी अभियान में पूरे भारत समेत, ईरान, इराक़,तुर्किस्तान,सीरिया आदि देशों ने भी अपना साम्राज्य स्थापित किया। 8वीं सदी में मेवाड़ की स्थापना करने वाले बप्पा रावल भारतीय सीमाओं से बाहर विदेशी आक्रमणों का प्रतिकार करना चाहते थ
वैराग्य :-लगभग 30 वर्ष तक शासन करने के बाद उन्होंने 753 ई. में अपने ब्राह्मण स्वभाव के कारण वैराग्य ले शिव की उपासना में लीन हो गए और अपने पुत्र को राज्य देकर शिव की उपासना में लग गये।
स्वर्गवास
बप्पा रावल का 97 साल की उम्र में स्वर्गवास हो गया | एकलिंगजी से कोई तीन किलोमीटर उत्तर दिशा में बापा रावल का अंतिम संस्कार किया गया. इस अंतिम संस्कार स्थल को आज भी बप्पा रावल के नाम से जानते है. जहाँ पर बप्पा का मंदिरनुमा समाधि बना हुआ है.
बप्पा रावल के राजवंश में
बप्पा रावल का 97 साल की उम्र में स्वर्गवास हो गया | एकलिंगजी से कोई तीन किलोमीटर उत्तर दिशा में बापा रावल का अंतिम संस्कार किया गया. इस अंतिम संस्कार स्थल को आज भी बप्पा रावल के नाम से जानते है. जहाँ पर बप्पा का मंदिरनुमा समाधि बना हुआ है.
बप्पा रावल के राजवंश में
आगे चल कर महाराणा संग्राम सिंह, महान राजा राणा कुम्भा, राणा सांगा, महाराणा प्रताप हुए। हारित राशि की भविष्यवाणी के अनुसार बप्पा रावल के वंशज सन 1947 में भारत के आजाद होने तक मेवाड़ पर शासन करते रहे.