हिंसा...

हिंसा और हिंसा...

क्या इन दोनों में फ़र्क़ करना, बिल्कुल अहम नहीं?

क्या हम इनको महसूस किए बिना, इनका फ़र्क कर सकते हैं??

क्या इनका फ़र्क़ किए बिना, न्याय का तकाज़ा पूरा होता है?

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क्या हिंसा है भी...या हिंसा भड़काई गई...या हिंसा किसी अंतहीन दुख और विकल्पहीनता से उपजी है?

आप कहेंगे कि किसी भी तरह, हिंसा को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता...

और फिर आप समझेंगे भी कि नहीं कि हिंसा केवल हिंसा ही नहीं होती!

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ठीक वैसे ही, जैसे आप रोटी चुराने वाले और देश चुरा लेने वाले के बीच फ़र्क करना या तो भूल जाते हैं...या फिर आप देश चुराने वाले का माल्यार्पण कर के, रोटी चुराने वाले की लिंचिंग कर देते हैं...दोनों ने चोरी की, एक ने भूख से परेशान होकर,दूसरे के लालच की भूख शांत ही नहीं हो रही

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क्या आप इन दोनों चोरियों में फ़र्क़ कर पाते हैं?

अगर नहीं, तो ये पोस्ट आपके लिए नहीं है...आप आगे इसे न पढ़ें, तो इस अहम बात का तिरस्कार होने से आप बचा सकते हैं!

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हिंसा...

अरबन प्लैटर, ऑनलाइन मक्के का आटा 247 रुपए किलो बेच रहा है...आप में से कई लोग, उस को खरीद कर, मूर्खता वाला गर्व करते होंगे...वेकफील्ड उसे 270 रुपए किलो बेच रहा है...लेकिन आपको पता है, मक्के की खरीद किसान से पिछले सीज़न में किस भाव से हुई है? 700 रुपए क्विंटल...

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1 किलो हुए, 7 रुपए का...एमएसपी लीगल बिना किए, कॉरपोरेट को सीधी खरीद का फ़ायदा दे दिया गया है...और सुन लीजिए, एमएसपी भी लागत से अधिक नहीं है, कई बार उससे कम है...स्वामीनाथन कमेटी ने कहा था - कॉम्प्रिहेंसिव कॉस्ट + कॉस्ट का 50 फीसदी मिलेगा, तब किसान ज़िंदा रहेगा...

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ये होती है हिंसा...जब आप किसी की मेहनत का मूल्य छोड़िए, उसे लागत भी नहीं देते...वो कर्ज़ में डूबता जाता है और आत्महत्या करता है...

इस हिंसा को आप हिंसा नहीं मानते?

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जब रात 8 बजे टीवी पर आकर, 12 बजे से करेंसी नोटों की वैधता ख़त्म कर दी जाती है...लाइन में लगे लोग मर जाते हैं...छोटे व्यापार में मज़दूरी या तो नहीं मिलती या पुराने नोटों में मिलती है, जो बदले ही नहीं जा पाते, क्योंकि लाइन ख़त्म ही नहीं होती...

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औरतें और बूढ़े ख़ुदकुशी कर लेते हैं, क्योंकि उनकी जीवन भर की जोड़ी गई, महज कुछ हज़ार या 1 लाख रुपए की घरेलू बचत, आपके जैसे मूर्ख-अपने अपार्टमेंट में बैठ कर, काला धन मान रहे होते हैं...लोगों का अस्पताल में इलाज नहीं हो पाता...

ये होती है हिंसा...

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जब आपके खून और पसीने को काला धन घोषित कर दिया जाए, जबकि जिनके पास काला धन है, वो हंस कर इसे मास्टरस्ट्रोक बताएं...

इस हिंसा को आप हिंसा नहीं मानते?

कोविड 19 के बाद लॉकडाउन होता है...छोटा व्यापार खत्म हो जाता है...उसे 1 हफ़्ते का भी वक़्त नहीं मिलता...

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लेकिन बड़े स्टोर को इजाज़त मिल जाती है, व्यापार की...ऑनलाइन व्यापार चलता रहता है...दूधवाला आपके घर नहीं आ सकता...लेकिन नेस्ले का दूध है न...अंबानी की संपत्ति बढ़ जाती है और फिर वो बिग बाज़ार खरीदने निकल पड़ता है...

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आप को नहीं मिलते, वो छोटे व्यापारी, खुदरा दुकानदार, मज़दूर, फैक्ट्री वर्कर, कैब ड्राइवर...जो इस दौरान बर्बाद हो गए...जिन्होंने आत्महत्या की...सड़क पर पैदल अपने गांव लौटे, रास्ते में मर गए और 1 महीने ये सब चलने के बाद रेल चलाई गई, किसी अहसान की तरह...

ये होती है हिंसा...

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पर चूंकि ये आपके साथ नहीं हुई, इसलिए हिंसा नहीं है ये...क्यों, इस हिंसा को आप हिंसा नहीं मानते न?

शांतिपूर्ण प्रदर्शन को दंगे की साज़िश बताकर, गिरफ्तारियां होती हैं...आंतकवाद निरोधी धाराएं लगा दी जाती हैं, प्रदर्शनकारियो पर...

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