अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में पठानों ने भर दी थी मिट्टी , निकाल ले गए थे हरमंदिर साहिब का स्वर्ण ।। ख़लसा पंथ का अंत था निकट ।।
22 अक्टूबर 1758 दोपहर 2 बजे । दोआब मोर्चा , कानपुर

पेशवाओ ने सरदार रघुनाथ पंडितराव के हमलों के फलस्वरूप सन 1751 से उत्तर में अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी । वे हरयाणा के जाट राजा सुरजमाल के साथ रोहिल्लो को जकड़ने में लगे थे ।
इस काम मे पेशवाओ के साथ आगरा से साबाजी शिन्दे और तुकोजी होल्कर भी मजबूती से घेराव कर रहे थे । सारा ध्यान रोहिल्ला मुल्ला नजीब जंग और मुग़ल की राजपूत रानी मालिका ज़मानी को पूर्वी दिल्ली और मेरठ में निस्तनाबूत करने में था
कि अचानक पठानों ने हरमिंदर साहेब , अमृतसर को नापाक कर दिया और स्वर्ण मंदिर तोड दिया ।।

सिख सरदार अवाक रह गए , उनके सबसे पवित्र स्थान स्वर्ण मंदिर के तालाब में पठानों का कब्जा हो गया था । गिनती के 15 हज़ार सिख अब पठानों की 40 हजारी फौज़ से कैसे लड़ते ?
सरहिन्द में सिखों के तीन बेहतरीन सरदार

१. जस्सासिंह अहलूवालिया , कपूरथला
२. अला जाट , पटियाला
३. जस्ससिंह रामगढ़िया ,
४. अज्ञात

इन्होंने लाहौर के पुराने मुघल गवर्नर अदीना बेग से मुलाकात की और चारो ने अमृतसर को मुक्त कराने पेशवा पंडितराओ राघोबा को संदेसे भेजे ।।
संदेसे 6 थे और इस प्रकार है ।

पंडितराव राजा राघोबा, सिरहिन्द में तुर्क पठान अब्दुस्समन्द खान आ गए है । हरमिंदर साहब नापाक कर दिया है । पवित्र मंदिर में बेग़ैरत लाशें है । दखखन की मदद जरूरी । वरना हिन्दूख़लसा का सफ़ाया होना तय है।
रघुनाथराव ने पूर्व की मुहिम रोक दी और सिरहिन्द की ओर निकल पड़े और फरवरी में पेशवा , मराठो की भयंकर फौज़ के साथ पंजाब में घुस आए । अब यहां से शुरू हुई अमृतसर को मुक्त करने की कवायद ।।
इसमे मराठाओ के भगवा ध्वज के नीचे निम्नलिखित सरदार पहुंचे और सिखों के सबसे पवित्र स्थान को मुक्त कराने शुरू हुआ पठान - हिन्दू मराठा संघर्ष ।।
24 फरवरी : कुंजपुरा की जंग : कृष्णराव काले ( दीक्षित ) और शिवनायरायन गोसाइँ बुन्देला ने 2400 पठानों को मार कर खूनी जंग लड़ी । 8 घण्टे की जंग के बाद यह किला जीत लिया गया । पंजाब में नंगी तलवारों के साथ मराठों का प्रवेश हुआ।।
8 मार्च : सिरहिन्द की जंग और 'मराठा सरदार': पेशवा रघुनाथराव, सरदार होलकर, सरदार सिन्धिया , सरदार रेंकोजी आनाजी , सरदार रायजी सखदेव , सरदार अंताजी माणकेश्वर , सरदार गोविंद पंत बुंदले
मानसिंग भट्ट कॉलिंजर , सरदार गोपालराव बर्वे , सरदार नरोपण्डित , सरदार गोपालराव बाँदा और कश्मीरी हिन्दूराव की 22 हज़ार हुज़ूरात फौज़ ने 3 दिन में सिरहिन्द जीत लिया । 10 हज़ार पठान मारे गए और उनका सरदार अब्दुस समंद खान को बंदी बना लिया गया ।।
अब अमृतसर की मुक्ति और पेशवाओ के बीच केवल एक जगह शेष थी - लाहौर

14 मार्च 1758

800 सालो में पहली बार किसी हिन्दू फौज़ का लाहौर में हमला भगवामय हिन्दू फौज़ पहली बार लाहौर में पहुंची। लाहौर में पठानो का राजकुमार " तैमूर खान " और " जहान खान " मजबूती के साथ मोर्चाबंदी किये हुए थे ।
पेशवा रघुनाथराव ने नरोपण्डित , संताजी और तुकोजीराव होलकर के साथ लाहौर के ऊपर पूरी ताकत से हमला किया । बाकी सरदारों ने लाहौर के साथ अमृतसर में धावा बोला । यह हमला इतना जोरदर था कि 5 km दूर खड़ी सिखों की फौज़ को पठानों की चीखें सुनाई देने लगी ।
मराठो के आ जाने से सिखों में जोश आ गया । अमृतसर और लाहौर के बीच 22 km में पठानों का क़त्लेआम शुरू हुआ । उनको हरमंदिर साहेब की सजा मिलनी शुरू हुई । शाम तक लाहौर से तुर्क और पठान निकाल ढिये गए और अमृतसर में रघुनाथराव का कब्जा हुआ ।
सिखों के स्वर्ण मंदिर में मराठा फौज़ ने प्रवेश किया और राघोबा ने आलासिंह जाट को मंदिर पुनर्निर्माण के लिए अफ़ग़ानों से लूटे गए दरफ़ात भेंट दिये । सीखों ने अहलूवालिया की सेनाओं ने अमृतसर को घेर लिया और स्वर्णमन्दिर के ऊपर खालसा ध्वज , मराठा शक्ति की मर्यादा से फिर फहराने लगा
जब दो वर्ष बाद मराठा शक्ति को पानीपत में जरूरत पड़ती है तो सिख शांत रहते है और मदद को नही आते। ऊपर जितने 'मराठा सरदारों के' नाम लिखे है , लगभग सभी पानीपत मे पठानों से लड़ते मारे जाते है। लेकिन मरते समय भी यह मराठे पठानों की हवा इतनी टाइट कर देते है कि पठान फिर भारत मे नही घुसते ।
पठान वापस अपने गरीब देश लौट जाते है । पेशवा अपना बदला नजीब जंग से लेने मेरठ चले जाते है और खाली रह जाता है पंजाब और यहां के लोग।
और इतने सब होने पर भी कुछ लोग कहते है कि हमने हिंदुओ को बचाया !!
कोई कन्नड था, कोई एमपी-यूपी वाला, कोई गुजरात का, कोई ओडिशा का, कोई मराठी था, कोई गुजराती था, कोई तेलुगु था, कोई तमिल था।

मराठा साम्राज्य जहां फैला उधर के लोग इनकी सेना मे शामिल थे। बहुतेरे हिन्दू ही थे।। क्योंकि वह हिंदवी स्वराज था जिसकी नीव छत्रपती शिवाजी महाराज ने रखी थी।
यह पोस्ट मुझे टुकड़ों मे whatsapp पर मिली। मैंने इसे एक सुसूत्र मे बांधने का प्रयास कर यहाँ सहेजा हैं। कोई प्रभाकर भट्ट महोदय इस पोस्ट के मूल लेखक हैं ये उस पोस्ट के नीचे लिखा हुआ था।

मैं उन्हे जानता हो नहीं।। मगर बहुत बढ़िया लिखा है श्रीमान।।
all this is factually true.. One may read about it in primary documents and original letters and reports from 250 years ago preserved in peshwa archives in Pune. one can also read these books https://twitter.com/Kal_Chiron/status/1354778030657347590
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