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ब्रिटिश आर्मी का एक अधिकारी: मोहन दास करमचंद गांधी..!

गांधी जो दक्षिणी अफ्रीका में हुए जुलू विद्रोह को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर स्वयं सेवक बना गांधी जिसने दक्षिणी अफ्रीका में ब्रिटिश की ओर बोअर युद्ध में भाग लिया।
गांधी जो भारत आने से पूर्व इंग्लैंड में प्रथम महायुद्ध में एक सैनिक अधिकारी था, वे 9 जनवरी 1915 को भारत आये, गांधी स्वयं भारत नहीं आये, उन्हें मि.रॉबर्ट्स ने अपने देश जाने का आग्रह किया,

गांधी जी अपनी आत्मकथा में इसका विवरण देते हैं और कहते हैं
"मैने यह सलाह मान ली और देश जाने की तैयारी की"

गांधी जी ने केवल रॉबर्ट्स की ही सलाह नहीं मानी बल्कि जब लार्ड मौन्टबेटेन भारत के अंतिम वॉइसरॉय ने गांधी जी को आग्रह किया कि आप भारत के विभाजन को मान लो
तब भी गांधीजी ने माउंटबेटन के आग्रह को मान लिया अन्यथा वो अडिग थे कि देश का विभाजन मेरी लाश पर बनेगा और इस प्रकार देश का विभाजन ही नहीं हुआ बल्कि 30 -35 लाख लोग मारे गए जो गांधी जी के आश्वासन पर अपने अपने घरों में ही बने रहे और विभाजन की त्रासदी के शिकार हुए।
गांधी जी समय-समय पर अंग्रेजों से सहयोग लेते व देते रहते थे। दक्षिण अफ्रीका के बोअर तथा जुलु युद्धो में अंग्रेजो की सहायता करने के कारण अंग्रेजों ने 1915 में उन्हे 'केसर-ए-हिन्द' का पदक दिया था।
अखंड भारत में गांधीजी को प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की सेना के लिए घूम घूम कर लोगों को भर्ती करवाने के कारण "भर्ती करवाने वाला एजेंट" कहा जाता था।
गांधी ने 1915 में भारत आते ही सबसे पहला काम ये किया की तत्कालीन वायसराय को एक पत्र लिख कर अपनी सेवायें 'सामाज्य'को अर्पित की!

उस समय दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था और भारत में तिलक और उनके साथियों के आन्दोलन के कारण ब्रिटिश साम्राज्य को सेना के लिए युवक नहीं मिल रहे थे...
गांधी ने भारत के युवकों को यह कह कर बरगलाया की अगर इस समय साम्राज्य की सेवा की जाएगी तो हो सकता है अंग्रेज हमें आजाद कर दें. एनी बेसेंट ने इसका विरोध किया और कहा की भारत अपने पुत्रों पुत्रियों के खून का सौदा नहीं करता!

इस युद्ध में 1 लाख भारतीय सैनिक युरोप में मारे गए जिन्हें
अपने वतन की मिटटी भी नसीब नहीं हुयी!

पंजाब में तो जबरन भर्ती के कारण जनसंख्या अनुपात ही बिगड़ गया. इसका इनाम भारत को मिला वो आजादी नहीं बल्कि 'जलियाँवाला बाग काण्ड' था.

गांधी जी देश को स्वतंत्र कराने के लिए बार-बार आन्दोलन चलाते थे, पर अंग्रेजो को मुसीबत में देखकर आंदोलन वापिस
ले लेते थे। अतः उनकी इस नीति के कारण लाला-लाजपतराय, सुभाष चन्द्र बोस, भगतसिंह, मदनमोहन मालवीय जैसे क्रांतिकारी व अहिंसावादी भी उनसे अलग हो गये। यहां तक कि अपने हिन्दू पूर्वजों पर गर्व करने वाला मोहम्मद अली जिन्ना जैसा राष्ट्रवादी व्यक्ति भी कट्टर
अलगाववादी मुसलमान बन गया।
गांधीजी “भारत छोड़ो आंदोलन" से पूर्व तक कांग्रेस के "डोमिनियन स्टेट" की मांग से ही संतुष्ट थे और पूर्ण स्वराज्य की मांग के इस आंदोलन को भी 1942 के दो वर्ष बाद ही 1944 में जेल से छोड़े जाने पर वापस ले लिया था।

1946 में नोआखाली (आज के बंग्लादेश में) में केवल 24 घंटे में ही
मुसलमानों ने जब 50 हजार हिंदुओं को मार डाला था तो वहां शांति प्रयास के लिए गांधी गए थे।

गिरिजा कुमार द्वारा लिखित 'महात्मा गांधी और उनकी महिला मित्र' पुस्तक को पढने पर लगता है कि वह नोआखाली में भी महिलाओं के साथ नग्न सोने का अपना ब्रहमचर्य प्रयोग जारी किए हुए थे। यहां तक कि अपने
चाचा की पौत्री मनु गांधी को वहां उसके पिता को पत्र भेजकर विशेष रूप से बुलवाया गया और उन्हें दूसरे गांव में रहने के लिए भेज दिया ताकि गांधी निर्वस्त्र मनु गांधी के साथ सो सकें।

मनु गांधी की उम्र उस समय केवल 19 वर्ष थी। सरदार पटेल गांधी के इस कृत्य से इतने क्रोधित हुए कि उन्होने
खुल्लमखुल्ला कह दिया कि स्त्रियों के साथ निर्वसन सोकर बापू अधर्म कर रहे हैं। पटेल के गुस्से के बाद बापू इसकी स्वीकृति लेने के लिए बिनोवा भावे, घनश्याम दास बिड़ला, किशोरलाल आदि को इसके पक्ष में तर्क देने लगे, लेकिन कोई भी इतनी मारकाट के बीच पौत्री के साथ उनके नग्न सोने का समर्थन
नहीं कर रहा था। फिर गांधी जी ने एक दाव खेला।

नोआखाली मे एक तरफ जब मुसलमान हिंदुओं की हत्या कर रहे थे तो गांधी ने अपनी पौत्री के साथ ब्रहमचर्य प्रयोग को सही ठहराने के लिए सार्वजनिक भाषण में इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद का उदाहरण देने लगे। उन्होंने कहा कि अपनी पौत्री के साथ स्वेच्छा
से ब्रहमचर्य यज्ञ कर के वह 'खुदा का खोजा' बन गए हैं।

गांधी अपने ब्रहमचर्य प्रयोग के लिए उस रक्त रंजित जगह पर दूध पीने के लिए अपनी बकरी भी ले गए थे, जिसे गुस्साए मुसलमानों ने चुरा लिया और उसे हलाल कर उसका मांस खा लिया था। सार्वजनिक रूप से पटेल द्वारा लांछन लगाने को गांधी कभी नहीं
भूल पाए।

माना जाता है कि 1946 में जब पूरी कांग्रेस ने सरदार पटेल को आगामी प्रधानमंत्री बनाने के लिए समर्थन किया तो गांधी ने नेहरू का नाम आगे बढ़ा कर पटेल से अपने नोआखाली के अपमान का बदला लिया।

नेहरूवादी और साम्यवादी इतिहासकारों ने पटेल को दक्षिणपंथी और नेहरू को उदारपंथी साबित
कर गांधी के इस निर्णय को सही ठहरा कर पूरे सच को छुपा लिया है। न जाने हमारे देश के इतिहास में क्या क्या छुपा पड़ा है। हमें आवश्यकता है सत्य को खंगालने की.....
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