गौतम ऋषी द्वारा श्रापित अहिल्या का उद्धार किया,
शबरी को महादेवी का स्थान दिया,
सुलोचना को अपने दल में आने पर उसके पति का कटा हुआ सर उसे प्रादान किया और सादर उसे जाने दिया,
धोबी द्वारा पत्नी का बहिष्कार करने पर श्री राम को अत्यधिक पीडा का अनुभव हुआ और स्वयं वेश बदलकर सच्चाई https://twitter.com/Aadii009/status/1353676322090881025
शबरी को महादेवी का स्थान दिया,
सुलोचना को अपने दल में आने पर उसके पति का कटा हुआ सर उसे प्रादान किया और सादर उसे जाने दिया,
धोबी द्वारा पत्नी का बहिष्कार करने पर श्री राम को अत्यधिक पीडा का अनुभव हुआ और स्वयं वेश बदलकर सच्चाई https://twitter.com/Aadii009/status/1353676322090881025
का पता लगया। परिणाम स्वरूप उनका स्वयं भी श्री सीता से असह्य वियोग हुआ,
पातिव्रत की चर्चा तो बहुत होती थी किन्तु श्री राम द्वारा एक पत्नीव्रत का निर्वहन किया।
ये श्री राम की मर्यादाओं के कुछ उदाहरण थे। इसलिये रामराज्य में नर नारी दोनो के साथ समाज में एक ही दृष्टि थे।
पातिव्रत की चर्चा तो बहुत होती थी किन्तु श्री राम द्वारा एक पत्नीव्रत का निर्वहन किया।
ये श्री राम की मर्यादाओं के कुछ उदाहरण थे। इसलिये रामराज्य में नर नारी दोनो के साथ समाज में एक ही दृष्टि थे।
एक नारिब्रतरत सब झारी। ते मन बच क्रम पतिहितकारी।
श्री राम ने पुष्प वाटिका में लक्ष्मण के समक्ष देखते हुए कहा था,
तात जनक तनया यह सोई, धनुष जज्ञ जेहि कारन होई'' ।
[अर्थात लक्ष्मण को सीता माँ का परिचय देते हुए कहा था, "येही जनक की दुलारी हैं जिनके लोए धनुष यज्ञ रचा गया है।
श्री राम ने पुष्प वाटिका में लक्ष्मण के समक्ष देखते हुए कहा था,
तात जनक तनया यह सोई, धनुष जज्ञ जेहि कारन होई'' ।
[अर्थात लक्ष्मण को सीता माँ का परिचय देते हुए कहा था, "येही जनक की दुलारी हैं जिनके लोए धनुष यज्ञ रचा गया है।
पुन: स्पष्ट करते हुए कहा की, "लक्ष्मण मैने इस कन्या को केवल इसलिये देखा की तुम्हे बता सकूँ। इसे अन्यथा ना लें।"]
रघुबंसिन्ह कर सहज सुभाऊ। मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ॥
मोहि अतिसय प्रतीति मन केरी। जेहिं सपनेहुँ परनारि न हेरी॥
रघुबंसिन्ह कर सहज सुभाऊ। मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ॥
मोहि अतिसय प्रतीति मन केरी। जेहिं सपनेहुँ परनारि न हेरी॥
[रघुवंशियों का यह सहज (जन्मगत) स्वभाव है कि उनका मन कभी कुमार्ग पर पैर नहीं रखता। मुझे तो अपने मन का अत्यंत ही विश्वास है कि जिसने स्वप्न में भी पराई स्त्री पर दृष्टि नहीं डाली है।]
सियावर रामचंद्र की जय।
राम ऐसा पथ थे जिसमें, राम ही चले सदा।
सियावर रामचंद्र की जय।
राम ऐसा पथ थे जिसमें, राम ही चले सदा।