Makarasankrati isn't uttarAyaNa.
मकरसङ्क्रान्ति उत्तरायण का आरम्भ नहीँ है
@Pramodavardhana
साैर उत्तरायण का आरम्भ वस्तुतः सूर्य के पूर्व दिशा के सबसे दक्षिणी भाग में उदित हाेने के बाद पूर्व दिशा के उत्तरी भाग में उदित हाेने के क्रम का आरम्भ है । यह समय शीतकाल में पड़ता है ।
मकरसङ्क्रान्ति उत्तरायण का आरम्भ नहीँ है
@Pramodavardhana
साैर उत्तरायण का आरम्भ वस्तुतः सूर्य के पूर्व दिशा के सबसे दक्षिणी भाग में उदित हाेने के बाद पूर्व दिशा के उत्तरी भाग में उदित हाेने के क्रम का आरम्भ है । यह समय शीतकाल में पड़ता है ।
सबसे छाेटा दिन तथा सबसे लम्बी रात जिस समय हाेता है उसके अनन्तर दिनमान बढने लगता है उसी दिन से उत्तरायण का आरम्भ हाेता है । मध्याह्न की छाया का मापन करने पर इस दिन मध्याह्न में सबसे लम्बी छाया हाेती है ।
photo- Google
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मकर राशि ताे ताराओँ से बनी मगर की आकृति है । इस प्रकार के ताराओं से बनी मकर, कुम्भ, मछली, भेड, बैल, जाेडा, केंकडा, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु ये बारह आकृतियाँ ही बारह राशियाँ हैं । आकाश में ३० अंश अथवा डिग्री का क्षेत्र मकर राशि का माना जाता है ।
इसी प्रकार कुम्भ आदि सभी राशियाें का ३०।३० अंश अथवा डिग्री का क्षेत्र माना जाता है ।आज से लगभग ४००० वर्ष पहले सूर्य कुम्भ राशि में पहुँचने पर सूर्य का उत्तरायण का आरम्भ हाेता था ।
आज से लगभग ३००० वर्ष पहले सूर्य मकर राशि में पहुँचने के २४ दिन बाद
सूर्य का उत्तरायण का आरम्भ हाेता था ।
आज से १५०० वर्ष पहले सूर्य मकर राशि में पहुँचने पर अर्थात् पृथ्वी और मकर राशि के आरम्भ की बिन्दु के बीच सूर्य आने पर उत्तरायण का आरम्भ हाेता था ।
सूर्य का उत्तरायण का आरम्भ हाेता था ।
आज से १५०० वर्ष पहले सूर्य मकर राशि में पहुँचने पर अर्थात् पृथ्वी और मकर राशि के आरम्भ की बिन्दु के बीच सूर्य आने पर उत्तरायण का आरम्भ हाेता था ।
किन्तु उत्तरायण के आरम्भ का समय प्रति वर्ष सरकता रहता है । सूर्य तारात्मक अथवा राशिरूप बिन्दु में पहुँचने अथवा दीखने से लगभग २० मिनट पूर्व ही सूर्य का उत्तरायण का आरम्भ हाे जाता है । ७२ वर्षाे में उत्तरायण आरम्भ का समय १ दिन पूर्व आता है ।
७२० वर्षाे में उत्तरायण आरम्भ का समय १० दिन पूर्व आता है । इस कारण आजकल मकरसङ्क्रान्ति से २४ दिन पूर्व ही उत्तरायण का आरम्भ हाेता है ।
विक्रमसंवत् २४०० के नजदीक पहुँचते पहुँचते मकरसङ्क्रान्ति से ३० दिन पूर्व धनुःसङ्क्रान्ति के दिन ही सूर्यका उत्तरायण का आरम्भ हाेने लगेगा ।
विक्रमसंवत् २४०० के नजदीक पहुँचते पहुँचते मकरसङ्क्रान्ति से ३० दिन पूर्व धनुःसङ्क्रान्ति के दिन ही सूर्यका उत्तरायण का आरम्भ हाेने लगेगा ।
जिस दिन साैर उत्तरायण का आरम्भ हाेता है उसी दिन सायन मकर राशि का आरम्भ मानने की भी ज्याेतिषज्ञाें में एक परम्परा है । इसे सायन गणना कहते हैं । सायन मकर का ताराओं से अथवा ताराओं से बनी मगर की आकृति से काेइ सम्बन्ध नहीं हाेता है । अतः यह मुख्य प्रयाेग न हाेकर गाैण प्रयाेग है ।
इसी आधार पर ऋतु की शुद्ध गणना करने के लिए कतिपय लाेग तारात्मक राशि काे महत्त्व न देकर सायन राशि काे ही महत्त्व देना चाहिए यह बात बताते हैं ।
फलितज्याेतिषियाें में निरयण अथवा तारात्मक राशि के आधार पर फलादेश करने का प्रचलन है ।
फलितज्याेतिषियाें में निरयण अथवा तारात्मक राशि के आधार पर फलादेश करने का प्रचलन है ।
कतिपय व्यक्ति सायन राशि के आधार पर भी करने लगे हैं । दाेनाें प्रणालियाें पर सम्बद्ध विज्ञाें के द्वारा अनुसन्धान हाेना और उसका प्रकाशन हाेना अपेक्षित है ।
लगधमुनिप्राेक्त वेदाङ्गज्याेतिष के ऋग्वेदी तथा यजुर्वेदी पाठाें के अनुसार सूर्य के उत्तरायण के आरम्भ हाेने के नजदीक की शुक्लपक्ष-प्रतिपदा ही वेदाेक्त तपः अथवा तपस् महीने का अर्थात् आर्तव माघ महीने का शुक्लपक्ष की प्रतिपदा है ।
उसी शुक्लप्रतिपदा से वैदिक नववर्ष का आरम्भ माना गया है।उसी दिन शिशिर ऋतुका आरम्भ हाेता है।उसी दिन साैरचान्द्र उत्तरायण का भी आरम्भ हाेता है।वैदिक परम्परा में वर्ष अयन ऋतु महीना सभी साैर सापेक्ष चान्द्रमान से माने जाते हैं व शुक्लपक्ष प्रतिपदा में इन सभी का आरम्भ माना जाता है।
धार्मिक अनुष्ठानाें में साैर ऋतु तथा साैरसापेक्ष चान्द्र ऋतु की अशुद्धि न हाे इस लिए पञ्चाङ्गसुधार अपेक्षित है ।
वैदिक नववर्ष की दृष्टि से ही उत्तरायण के आरम्भ काे बहूत बडे पर्व दिन के रूप में मनाने की लाेकपरम्परा चली है ।
वैदिक नववर्ष की दृष्टि से ही उत्तरायण के आरम्भ काे बहूत बडे पर्व दिन के रूप में मनाने की लाेकपरम्परा चली है ।
पश्चात् काल में मकरसङ्क्रान्ति काे ही उत्तरायण का पर्व माने जाने की परम्परा चल पडी । आज मकरसङ्क्रान्ति से २४ दिन पूर्व ही साैर उत्तरायणका आरम्भ हाेता है । उस से भी प्रायः पूर्व ही चान्द्र उत्तरायण की शुक्ल-प्रतिपदा पडती है ।
अतः आजकल मकरसङ्क्रान्ति काे उत्तरायणआरम्भ का पर्व मानना उचित नहीं है । इस विषय में वेद वेदाङ्ग के ज्ञाता विद्वान् ब्राह्मणाें काे पञ्चाङ्गकाराें के तथा सर्वसाधारणाें के लिए सही मार्ग दिखाने का समय आया है ।
सनातनी सज्जन ऋक् यजुः साम अथर्वन् धर्मशास्त्र वेदाङ्गज्याेतिष सिद्धान्तज्याेतिष खगाेलशास्त्र गणित इत्यादि के विज्ञ तथा विभिन्न क्षेत्र के पञ्चाङ्गकाराें एवम् इस विषय में सत्यनिष्ठ विद्वानाें का भारतवर्षव्यापी बृहत् सम्मेलन कराने में याेगदान देंगे ताे बहूत अच्छा कार्य हाेगा।