एक समय था जब घर के दामाद का अलग भौकाल रहता था दामाद जी का स्वागत का तरीका भी अलग ही ढंग का होता था जब कभी ससुराल जा धमकते अफरातरफी का माहौल बन जाता था
यदि पूर्व सूचना पर आगमन होता तो ऐसा लगता था जैसे अमरीका ने बिना बताए अपना सातवां जंगी बेड़ा भेज दिया हो...!
कम से कम दो आदमी स्टेशन जाते थे कोई एक सूटकेस थाम लेता था और फिर जीजा जी को रिक्शे में बीचो बीच बैठकर अगल बगल दोनो यमदूत बैठ जाते यात्रा सुरु होते ही हालचाल पूछा जाता था कि जीजा जी रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई,वर्थ तो कन्फर्म थी ना,लोवर थी या अपर थी टीटी आया था कि नही..!
बात चीत के दौरान गाँव का सिवान नजर आ जाता था लेने गया यमदूत बताता था बस जीजा जी थोडा सा पैदल चलना है वो तीसरे घर के आगे अपनई बाला घर है दामाद जी उतरते ही पहले बालो में हाँथ फैरते ट्रेन के सफर सिकुड़ चुकी वुशर्ट को सिलबटो को खींच कर ठीक करते और हल्की मुस्कान के साथ बढ़ने लगते थे!
पत्नी के घर की सुगन्ध मिलते ही दामाद जी की चाल लचक मचक कर राजेश खन्ना जैसी हो जाती और जाकर नए नए बिछाए गए गद्दे पर बैठ जाते थे बच्चे बेना डोलाने लगते थे महिलाएं हाल चाल पूछने लगती यह बोलते हुए की ये बाबू अबकी बड़ा दुबारा गईल बाड़ी खइले पर ध्यान नही देली का..!
गाँव पर आप जितना लिखो कम है गाँव स्वयं में एक जीवन है.. कही शादी ब्याह की तैयारी में डूबे लोग.. कही एक इंच जमीन के लिए झगड़ते लोग.. कही मोदी और सोनिया को समान रूप से गरियाते लोग..कुल मिलाकर आधुनिकता की झूठी लफ़ेड़ से बचे.. अपनी ही दुनिया में मस्त गाँव अभी भी ज़िन्दा है।
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