The West selling us, Sound therapy, Voice modulation, Articulated Speech, Public speaking & blah blah.. like idiots our modern generation goes all ga ga over these tit bits taken from our very own system.. “हल्दी की गाँठ लिए अपने आप को पंसारी समझने वालों के लिए ये शृंखला:
1.
1.
ये उस सनातन सभ्यता को क्या सिखाएँगे जिसका आधार ही नाद है!
समय, काल, गणित,भौतिक विज्ञान,खगोल शास्त्र,मनोविज्ञान व नाद का ऐसा नाता है कि उसे समझ के केवल अपने आप में उतर जाना ही सर्वोत्तम थेरेपी है!
“अथातो ब्रह्म जिज्ञासा”
आइए, इसी क्षण उस नाद रूपी परमात्मा की खोज प्रारम्भ करें।
2
समय, काल, गणित,भौतिक विज्ञान,खगोल शास्त्र,मनोविज्ञान व नाद का ऐसा नाता है कि उसे समझ के केवल अपने आप में उतर जाना ही सर्वोत्तम थेरेपी है!
“अथातो ब्रह्म जिज्ञासा”
आइए, इसी क्षण उस नाद रूपी परमात्मा की खोज प्रारम्भ करें।
2
सृष्टि की उत्पत्ति की प्रक्रिया आदि नाद से प्रारम्भ हुई, जिसका प्रतीक ‘ॐ नादब्रह्म है।
ना+द
ना = नकार/ प्राण
द= दकार/ अग्नि
प्राण वायु व अग्नि के संयोग से नाद की उत्पत्ति हुई।
प्रत्येक स्थान/ कण में नाद व्याप्त है, आकाश, अग्नि, नभ, पावन, मुख, अभिव्यक्ति..
3.
ना+द
ना = नकार/ प्राण
द= दकार/ अग्नि
प्राण वायु व अग्नि के संयोग से नाद की उत्पत्ति हुई।
प्रत्येक स्थान/ कण में नाद व्याप्त है, आकाश, अग्नि, नभ, पावन, मुख, अभिव्यक्ति..
3.
ननादेन बिना गीतम न नादेन बिना स्वर:
न नादेनबिना राग स्तस्मान्नदात्मकम जगत
नाद रूपम परमब्रह्म नादरूपो महेश्वर:
नादरूपा पराशक्ति नरदरूपो जनार्दन:
नाद बिना कुछ भी नहीं
नाद ही जगत की आत्मा है जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड ओत प्रोत है
ब्रह्मा, विष्णु, महेश, स्वयं नाद में विराजमान हैं।
4
न नादेनबिना राग स्तस्मान्नदात्मकम जगत
नाद रूपम परमब्रह्म नादरूपो महेश्वर:
नादरूपा पराशक्ति नरदरूपो जनार्दन:
नाद बिना कुछ भी नहीं
नाद ही जगत की आत्मा है जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड ओत प्रोत है
ब्रह्मा, विष्णु, महेश, स्वयं नाद में विराजमान हैं।
4
जो प्रकृति में सदा विद्ध्य्मान है और वस्तुओं के टकराने से पैदा नहीं होता, वो ‘अनाहत नाद’ है।
जो ध्वनि आघात करने से उत्पन्न होती है वो ‘आहात नाद’ है।
नाद ही असंख्य श्रुतियों के रूप में प्रकट होता है
नाद ही, वीना के स्वरों के कर्म जैसे, सदा हमारे हृदय में वास करता है।
5.
जो ध्वनि आघात करने से उत्पन्न होती है वो ‘आहात नाद’ है।
नाद ही असंख्य श्रुतियों के रूप में प्रकट होता है
नाद ही, वीना के स्वरों के कर्म जैसे, सदा हमारे हृदय में वास करता है।
5.
क्या आप जानते हैं मानव शरीर जिसे गात्र वीणा कहा गया, के आधार पर ही दारू/ काष्ठ वीणा का अविष्कार हुआ?
और हमपर थोपा गया कि सितार का अविष्कार अमीर खुसरो ने किया!
हृदय में बसा नाद शरीर की वायु के साथ उठता है और वाणी बाँट है, जिसका ( श्रुति) बोध हम श्रवण के माध्यम से करते है।
6.
और हमपर थोपा गया कि सितार का अविष्कार अमीर खुसरो ने किया!
हृदय में बसा नाद शरीर की वायु के साथ उठता है और वाणी बाँट है, जिसका ( श्रुति) बोध हम श्रवण के माध्यम से करते है।
6.
श्रुति= श्रु+ इति/ सुना हुआ
स्वरों में श्रुति इस प्रकार विलीन है जैसे लकड़ी में अग्नि, जो है परंतु दिखाती नहीं
नाद में विराजमान होके स्वर प्रकट होता है
दिन भर twitterआते हैं fb, wa पर ज्ञान बाँटते हैं, परंतु ये भूल जाते है कि हमारी बोलचाल में भी ब्रह्मस्वरूपी नाद विराजमान है!
7
स्वरों में श्रुति इस प्रकार विलीन है जैसे लकड़ी में अग्नि, जो है परंतु दिखाती नहीं
नाद में विराजमान होके स्वर प्रकट होता है
दिन भर twitterआते हैं fb, wa पर ज्ञान बाँटते हैं, परंतु ये भूल जाते है कि हमारी बोलचाल में भी ब्रह्मस्वरूपी नाद विराजमान है!
7
22 श्रुतियों से १२ स्वरों (कोमल,शुद्ध,तीव्र) की उत्पत्ति हुई:
षड्ज/ सा
ऋषभ/ रे
गांधार/ ग
मध्यम/ म
पंचम/ प
धैवत/ ध
निषाद/ नी,
जो ब्रह्मरूप कहलाई।
What Voice Modulation will they teach the Hindu Society that studied Sound so deeply eons ago? #ॐ
8.
षड्ज/ सा
ऋषभ/ रे
गांधार/ ग
मध्यम/ म
पंचम/ प
धैवत/ ध
निषाद/ नी,
जो ब्रह्मरूप कहलाई।
What Voice Modulation will they teach the Hindu Society that studied Sound so deeply eons ago? #ॐ
8.
प्रत्येक स्वर का अपना उतार- चढ़ाव/ modulation है:
जिन स्वरों की उत्पत्ति मूर्धनी से हो, वो उदात्त अर्थात् उच्च स्वर हैं
जिनकी हृदय से हो, वो अनुदात्त यानी नीचे के स्वर
जिनकी कंठ से हो, वो स्वरित अर्थात् मध्यम स्वर
ये विज्ञान हमें हमारे पूर्वज ऋषियों ने दिया।
9.
जिन स्वरों की उत्पत्ति मूर्धनी से हो, वो उदात्त अर्थात् उच्च स्वर हैं
जिनकी हृदय से हो, वो अनुदात्त यानी नीचे के स्वर
जिनकी कंठ से हो, वो स्वरित अर्थात् मध्यम स्वर
ये विज्ञान हमें हमारे पूर्वज ऋषियों ने दिया।
9.
हमारे पूर्वजों ने तो ये भी बता दिया कि कौनसा प्राणी किस स्वर में बोलता है!
मोर षड्ज/ सा के स्वर में बोलता है
पपीहा ऋषभ/ रे स्वर में
राजहंस गांधार/ ग में
सारस मध्यम/ म स्वर में बोलता है
तो कोयल पंचम/ प स्वर में बोलती है
घोड़ा धैवत/ ध में हिनहिनाता है
और हाथी निषाद/ नि में।
10.
मोर षड्ज/ सा के स्वर में बोलता है
पपीहा ऋषभ/ रे स्वर में
राजहंस गांधार/ ग में
सारस मध्यम/ म स्वर में बोलता है
तो कोयल पंचम/ प स्वर में बोलती है
घोड़ा धैवत/ ध में हिनहिनाता है
और हाथी निषाद/ नि में।
10.
क्या आप जानते हैं,स्वरों के भी रंग होते हैं?
प्रत्येक स्वर की कम्पन विभिन्न रंग उत्पन्न करती है, हर स्वर के देवता हैं, उनका विशेष प्रभाव, स्वभाव व ऋतु भी है
सा- शीत ऋतु से सम्बंधित है, इसका रंग गुलाबी है और चित्त पर प्रसन्नता का प्रभाव देता है, षड्ज के देवता ब्रह्मा जी हैं
11.
प्रत्येक स्वर की कम्पन विभिन्न रंग उत्पन्न करती है, हर स्वर के देवता हैं, उनका विशेष प्रभाव, स्वभाव व ऋतु भी है
सा- शीत ऋतु से सम्बंधित है, इसका रंग गुलाबी है और चित्त पर प्रसन्नता का प्रभाव देता है, षड्ज के देवता ब्रह्मा जी हैं
11.
रे का सम्बन्ध ग्रीष्म ऋतु से है, अग्नि जिसके देवता हैं और रंग अग्नि समान नारंगी है
ऋषभ का प्रभाव प्रसन्नता प्रदान करने वाला है।
ग- की देवी सरस्वती/ देवता चंद्रमा हैं, स्वभाव ठंडा,रंग सुनहरी व ऋतु ग्रीष्म है।
म- वर्षा ऋतु के इस स्वर राग कुंद सा हरा है और रुद्र इसके देवता हैं।
12
ऋषभ का प्रभाव प्रसन्नता प्रदान करने वाला है।
ग- की देवी सरस्वती/ देवता चंद्रमा हैं, स्वभाव ठंडा,रंग सुनहरी व ऋतु ग्रीष्म है।
म- वर्षा ऋतु के इस स्वर राग कुंद सा हरा है और रुद्र इसके देवता हैं।
12
प- जिसके देवता विष्णु हैं व लक्ष्मी देवी हैं, का रंग श्यामल है, वर्षा ऋतु के इस स्वर का स्वभाव गर्म, शुष्क है।
ध- शीत के इस पीले स्वर के देवता धूमकेतु गणेश हैं, धैवत का स्वभाव कभी प्रसन्न कभी शोकातुर है।
नि- कपूर सा श्वेत है, देवता राहू, ऋतु- शीत व स्वभाव ठंडा, शुष्क है।
13.
ध- शीत के इस पीले स्वर के देवता धूमकेतु गणेश हैं, धैवत का स्वभाव कभी प्रसन्न कभी शोकातुर है।
नि- कपूर सा श्वेत है, देवता राहू, ऋतु- शीत व स्वभाव ठंडा, शुष्क है।
13.
जीवन व्यवहार, हमारी बोलचाल,
‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’,
सम्पूर्ण ज्ञान विज्ञान,केवल ‘वैखरी वाणी’ से संभव है।
वैखरी वाणी क्या है?
स्वर/ वाणी के भी चार रूप हैं:
१- परा वाणी यानी आत्मा का वह मूल आधार, जहां से ध्वनि उत्पन्न होती है,जिसकी अनुभूति तो होती है परंतु सुनाई नहीं देती।
14.
‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’,
सम्पूर्ण ज्ञान विज्ञान,केवल ‘वैखरी वाणी’ से संभव है।
वैखरी वाणी क्या है?
स्वर/ वाणी के भी चार रूप हैं:
१- परा वाणी यानी आत्मा का वह मूल आधार, जहां से ध्वनि उत्पन्न होती है,जिसकी अनुभूति तो होती है परंतु सुनाई नहीं देती।
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२- पश्यन्ती वाणी का दूसरा रूप है
यानी किसी क्रिया का वह चित्र जो बोलने से पूर्व आत्मा व बुद्धि की सहायता से हमारे मन पटल पर बनता है।
३- मध्यमा- वाणी का ये तीसरा रूप भी सुनाई नहीं देता
शरीर की वायु से ध्वनि का बुद्बुद् उत्पन्न हो,ऊपर उठकर नि:श्वास की सहायता से कण्ठ तक आता है।
15
यानी किसी क्रिया का वह चित्र जो बोलने से पूर्व आत्मा व बुद्धि की सहायता से हमारे मन पटल पर बनता है।
३- मध्यमा- वाणी का ये तीसरा रूप भी सुनाई नहीं देता
शरीर की वायु से ध्वनि का बुद्बुद् उत्पन्न हो,ऊपर उठकर नि:श्वास की सहायता से कण्ठ तक आता है।
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४- वैखरी यानी कंठ तक आया वाणी का बुद्बुद्/ bubble, ऊपर उठकर 5 स्पर्श स्थानों की सहायता से सर्वस्वर, व्यंजन, युग्माक्षर व मात्रा द्वारा भिन्न-भिन्न रूप में वाणी के रूप में अभिव्यक्त होता है
स्वरों/ श्वासों का नियंत्रण ही मन को नियंत्रित करता है किसी sound therapy की आवश्यकता नहीं!
स्वरों/ श्वासों का नियंत्रण ही मन को नियंत्रित करता है किसी sound therapy की आवश्यकता नहीं!
सनातन सभ्यता के जनकों ने कितनी सूक्ष्मता व गहराई से वाणी विज्ञान का निरीक्षण किया
क से ज्ञ तक वर्ण किस अंग की सहायता से मुख से निकलते हैं, ये विश्लेषण इतना विज्ञान सम्मत है कि उसके अतिरिक्त आप वह ध्वनि किसी अन्य ढंग से निकाल ही नहीं सकते!
#GloriousHinduCivilization
17.
क से ज्ञ तक वर्ण किस अंग की सहायता से मुख से निकलते हैं, ये विश्लेषण इतना विज्ञान सम्मत है कि उसके अतिरिक्त आप वह ध्वनि किसी अन्य ढंग से निकाल ही नहीं सकते!
#GloriousHinduCivilization
17.
कंठव्य- जिनके उच्चारण के समय ध्वनि कंठ से निकलती है- क, ख, ग, घ, ङ
तालव्य- जिनके उच्चारण के समय जीभ तालू से लगती है- च, छ, ज, झ,ञ
मूर्धन्य- जिनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है- ट, ठ, ड, ढ , ण
दंतीय- जिनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है- त, थ, द, ध, न
18.
तालव्य- जिनके उच्चारण के समय जीभ तालू से लगती है- च, छ, ज, झ,ञ
मूर्धन्य- जिनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है- ट, ठ, ड, ढ , ण
दंतीय- जिनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है- त, थ, द, ध, न
18.
ओष्ठ्य- जिनका उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है- प, फ, ब, भ, म।
6 स्थानों, नासा, कंठ, उर, तालु, जीभ व दाँत में उत्पन्न होने के कारण प्रथम स्वर षड्ज/ सा कहलाया, जिसका सम्बन्ध मूलाधार चक्र से है, जहां से ‘लँ’ की ध्वनि उत्पन्न होती है।
#SanatanSabhyata
19.
6 स्थानों, नासा, कंठ, उर, तालु, जीभ व दाँत में उत्पन्न होने के कारण प्रथम स्वर षड्ज/ सा कहलाया, जिसका सम्बन्ध मूलाधार चक्र से है, जहां से ‘लँ’ की ध्वनि उत्पन्न होती है।
#SanatanSabhyata
19.
स्वाधिष्ठान चक्र से ‘वँ’ की ध्वनि उत्पन्न होती है जिसका सम्बन्ध ऋषभ/ रे से है
मणिपुर चक्र से ‘रँ, की ध्वनि - गांधार/ ग, नाभि स्थित मणिपुर चक्र से सम्बंधित,
अनाहत चक्र से ‘यँ’ की ध्वनि,- मध्यम/ म, हृदय से सम्बंधित
विशुद्धि चक्र से ‘हँ’-, कंठ, व धैवत/ ध से संबंधित।
20.
मणिपुर चक्र से ‘रँ, की ध्वनि - गांधार/ ग, नाभि स्थित मणिपुर चक्र से सम्बंधित,
अनाहत चक्र से ‘यँ’ की ध्वनि,- मध्यम/ म, हृदय से सम्बंधित
विशुद्धि चक्र से ‘हँ’-, कंठ, व धैवत/ ध से संबंधित।
20.
सहस्रार चक्र से उत्पन्न अनहद नाद ‘ॐ’ का सम्बन्ध हमारे कपाल व से निषाद/ नी से है
नाद के इसी रहस्य से हमारे ऋषियों ने दिव्य शक्तियों की अनुभूति की और अपनी शक्तियों को एकत्र कर, सुप्त आध्यात्मिक केंद्रो को जागृत करने केलिए हमें ब्रह्मांडीय ऊर्जा का उपयोग मंत्र योग के रूप में दिया
21
नाद के इसी रहस्य से हमारे ऋषियों ने दिव्य शक्तियों की अनुभूति की और अपनी शक्तियों को एकत्र कर, सुप्त आध्यात्मिक केंद्रो को जागृत करने केलिए हमें ब्रह्मांडीय ऊर्जा का उपयोग मंत्र योग के रूप में दिया
21
प्रकृति की सबसे उत्तम कृति मनुष्य, तब तक अधूरी है जब तक वह
मूलाधार चक्र/ पशु से - ब्रह्म/ सहस्रार चक्र की यात्रा (आत्म जागृति/ विकास) पूरी नहीं कर लेती।
अपने भावों को अभिव्यक्त करने के लिए हम जिन ध्वनियों पर आश्रित हैं, वह सनातन नाद ही हैं!
#GloriousHinduCivilization
22.
मूलाधार चक्र/ पशु से - ब्रह्म/ सहस्रार चक्र की यात्रा (आत्म जागृति/ विकास) पूरी नहीं कर लेती।
अपने भावों को अभिव्यक्त करने के लिए हम जिन ध्वनियों पर आश्रित हैं, वह सनातन नाद ही हैं!
#GloriousHinduCivilization
22.
इसी सनातन नाद के विश्लेषण से संसार की अधिकृत भाषाओं की जननी,
‘संस्कृत, अर्थात् श्वासों का कृत’ का जन्म हुआ!
संस्कृत मंत्र व संगीत साधना, मोक्ष मार्ग हैं।
वीणा वादन तत्वज्ञ:, श्रुति जाति विशारद:
तालज्ञश्च प्रयासेन, मोक्ष मार्गं च निगच्छति। -ऋषी याज्ञवल्क्य
23. https://twitter.com/meenakshisharan/status/1125456356880687104
‘संस्कृत, अर्थात् श्वासों का कृत’ का जन्म हुआ!
संस्कृत मंत्र व संगीत साधना, मोक्ष मार्ग हैं।
वीणा वादन तत्वज्ञ:, श्रुति जाति विशारद:
तालज्ञश्च प्रयासेन, मोक्ष मार्गं च निगच्छति। -ऋषी याज्ञवल्क्य
23. https://twitter.com/meenakshisharan/status/1125456356880687104
#GloriousHinduCivilization पर सदियों से चौतरफ़ा आघात होते रहे, यहाँ तक के उर्दू व हिंदी का मिश्रण ‘हिंदुस्तानी भाषा’ भी स्वतंत्रता के बाद हम पर थोपी गयी!
ज्ञात हो, उर्दू की उत्पत्ति भी संस्कृत के
तत्सम= अपरिवर्तित शब्द व तद्भव= परिवर्तित शब्दों (भारतीय ब्रजभाषा) से ही हुई!
24. https://twitter.com/meenakshisharan/status/1028361888877277184
ज्ञात हो, उर्दू की उत्पत्ति भी संस्कृत के
तत्सम= अपरिवर्तित शब्द व तद्भव= परिवर्तित शब्दों (भारतीय ब्रजभाषा) से ही हुई!
24. https://twitter.com/meenakshisharan/status/1028361888877277184