दिल्ली और आगरा के बाद देश में सबसे ज्यादा देशी विदेशी पर्यटक जयपुर-आमेर में आते हैं. एक स्थान पर जितने किले और महल जयपुर-आमेर में हैं इतने देश में किसी और जगह नहीं. इनके कारण जयपुर में जैसा विशाल और समृद्ध पर्यटन उद्योग है
वैसा किसी और शहर में नही है. इसमें विभिन्न जातियों के अनगिनत लोगो को रोजगार मिलता है.जबकि जयपुर-आमेर कोई समृद्ध रियासत नहीं थी और ना ही बहुत बड़ी थी. यह अरावली कि पहाड़ियों से भरा हुआ एक शुष्क और मुख्यत: अनुपजाऊ इलाका था.
आज भी पूर्व रियासत के सवाई माधोपुर से लेकर नीम का थाना तक ग्रामीण इलाका अर्थिक रूप से देश के सबसे पिछड़े इलाको में से हैं.इसके बावजूद 18वी सदी में जयपुर देश कि सबसे समृद्ध रियासत के रूप में उभरी (वो भी उस समय जब पूरा देश लूट मार और मंदी कि चपेट में था
जयपुर इस लूटमार के केंद्र के करीब था). यह समृद्धि सिर्फ और सिर्फ कछावा राजपूतों के अफगानिस्तान से लेकर बंगाल तक बहाए गए रक्त और राजा मान सिंह से लेकर सवाई जय सिंह तक के बेहद योग्य नेतृत्व का परिणाम थी.
कछावा राजपूतों ने अपना रक्त बहाकर इस संपत्ति का अर्जन किया जिसकी ख्याति इतनी थी कि 1976 में आपातकाल लगाते ही इंदिरा गांधी सरकार ने इस खजाने को हड़पने के लिए अभियान चलाया.इस संपत्ति के बल पर सवाई राजा जय सिंह ने जयपुर नगर कि स्थापना की जो उस समय ना केवल
भारत में बल्कि पूरे विश्व में नियोजित शहरी विकास का सबसे श्रेष्ठ उदाहरण था और जिसका आज आधुनिक प्रशासकों और निवासियों द्वारा घोर दुराचार किये जाने के बावजूद तीन सदी बाद भी कोई सानी नहीं है. इतने विशाल स्तर पर और इतने नियोजित तरीके से सार्वजनिक इमारतों का निर्माण ना इससे पहले और
ना इसके बाद में भारत में कभी हुआ वो भी एक बेहद छोटी रियासत में. आज भी इस शहर और इमारतों को हर साल लाखों-करोड़ो लोग देखने आते हैं और लाखों लोगो को इससे रोजगार मिलता है.
सवाई जय सिंह ने जयपुर में 36 प्रकार के कारखानों की स्थापना की. देश भर से कारीगर, दस्तकार, मूर्तिकार, संगतराश, काष्ठकार आदि इन कारखानों में काम करने के लिए जयपुर लाकर बसाए गए. इन कारीगरों के वंशज आज भी जयपुर में बड़ी संख्या में रहते हैं
आज भी जयपुर भारत में हस्तशिल्प का सबसे बड़ा केंद्र है. बहुत सी भारतीय हस्तकलाए तो सिर्फ जयपुर राज्य के संरक्षण के कारण ही बच पाई हैं जो आज भी जारी है. इस हस्तशिल्प को बनाने से लेकर बेचने तक की प्रक्रिया में जयपुर में ही लाखो लोगो को रोजगार मिलता है.
जयपुर के शासको ने बड़ी संख्या में व्यापारी वर्ग के लोगो को जयपुर में दुकान और मकान देकर बसाया. आगरा, मथुरा, दिल्ली जैसे मुगल प्रभुत्व के शहरों से बड़ी संख्या में व्यापारी वर्ग जयपुर आकर बसा और इसे समृद्ध व्यापारिक नगर बनाने में योगदान दिया.
मालवा से लेकर पंजाब तक के उस समय के अराजकता से त्रस्त इलाको से भी बड़ी संख्या में व्यापारी वर्ग जयपुर आकर बसा. आज जयपुर में इनके वंशजो की आबादी कई लाख में है.
17वी और 18वी सदी में जयपुर के शासक भारत में हिन्दू या कहे ब्राह्मण धर्म के सबसे बड़े संरक्षक थे. मथुरा, अयोध्या, बनारस, गया से लेकर जगन्नाथपुरी तक सभी हिन्दू तीर्थ स्थलों में मंदिरो का निर्माण और जीर्णोद्धार इन्होने ही किया.
ये अखाड़ों के सबसे बड़े संरक्षक थे. जयपुर में विशाल मंदिरो का निर्माण कर विभिन्न हिन्दू अखाड़ों और सम्प्रदायों को उनमें बसाया जिससे इस शहर को दुसरे वृन्दावन का नाम मिला. जयपुर में अनगिनत मंदिर का निर्माण कराए जाने के कारण इसे छोटी काशी कहा गया,
हालांकि यहां अब काशी से भी ज्यादा मंदिर होंगे. देश भर से और विशेषकर नजदीकी मुग़ल शासित ब्रज और हरियाणा आदि से बड़ी संख्या में ब्राह्मण समुदाय के लोगो ने जयपुर आकर शरण ली. आज जयपुर में इस समुदाय की सबसे बड़ी आबादी
आमेर-जयपुर के शासको ने कृषि के विकास में भी बहुत काम किया और विभिन्न कृषक जातियों को रियासत के विभिन्न क्षेत्रो में 20वी सदी की शुरुआत तक बसाया. इसका प्रमाण इससे मिलता है कि यहां हरियाणा और बागड़ी ब्राह्मण नाम की शुद्ध कृषक ब्राह्मण जातीयां मिलती हैं
जिन्हे जयपुर शहर के आसपास बसाया गया. यहां तक की उस समय अपने पैतृक पेशे को छोड़ कृषि को अपनाने वाले कुम्हार जाति के लोगो को भी बहुत बड़ी संख्या में खेती की जमीने देकर पूर्ण किसान बनाया और आज ये जयपुर क्षेत्र की प्रमुख किसान जातियों में है.
भारतीय अध्यात्म, ललित कला, विज्ञान, राजनीती आदि में जयपुर-आमेर के प्रबुद्ध शासको के योगदान पर लिखने के लिए तो समय कम पढ़ जाएगा.
आज जयपुर तेजी से बढ़ता हुआ और समृद्ध नगर है. भारत में किसी और शहर की वर्तमान समृद्धि और रोजगार में उसके पूर्व शासको का इतना योगदान नहीं होगा जितना जयपुर में कछवाह शासको का है.
लेकिन ये भी सच है की किसी शहर के पूर्व शासको का जितना तिरस्कार और अपमान जयपुर में हुआ है और होता है उतना किसी और रियासत के शासको का नहीं हुआ.
जिस तरह जयपुर के ही असंख्य लोग पूर्ववर्ती कछवाह शासको के प्रति दुराग्रह रखते हैं
बल्कि कृतघ्नता की बहुत बड़ी मिसाल है. हर शहर में वहा के एतिहासिक और पूर्ववर्ती शासको के नाम पर सरकारी संस्थानों, मार्गो इत्यादि का नाम रखा जाता है, मूर्तिया लगाईं जाति हैं.
यह जानकर आश्चर्य होगा की 47 के बाद से लेकर आज तक के शासन में जयपुर में एक भी सड़क, संस्थान या मूर्ती यहां के पूर्ववर्ती शासको के नाम पर नहीं बनाई गई. जिन शासको का इस शहर में इतना घनघोर योगदान है उन्हें राजपूतों के अलावा कोई याद तक नहीं करता.
मेने खुद वहा किले घूमाने वाले गाइड तक, जिनका रोजगार इन्ही शासको के कारण है, उनमे कछावा राजपूतों के प्रति दुराग्रह देखा है. इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी की एक जयपुर का निवासी जिसके पूर्वजो ने जयपुर के शासको के यहां शरण ली
और उसकी पीढ़ियों ने सुख भोगा वो उन्ही शासको को किसी और के अधीन होने की वजह से गालिया देता है. ये लोग दिनभर आम कछावा राजपूतों को गालिया देते हैं जबकि ये सब इन्ही कछावा राजपूतों द्वारा अपना खून बहाकर अर्जित की गई संपत्ति से प्राप्त समृद्धि का भोग कर रहे हैं
जबकि उन राजपूतों के पास उस का एक अंश भी नहीं.इतिहास को लेकर जितनी नंगई भारत में है उतनी और कहीं नहीं. यहां तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग तक का इतिहास बोध एकदम घटिया स्तर का है. इसमें अर्ध ग्वार दक्षिण पंथ के साथ वामपंथ भी शामिल है.
इतिहास बोध ना होना फिर भी समझ आता है लेकिन सच्चाई के एकदम विपरीत जाके हास्यास्पद यकीनी दावे करना यहीं पर हो सकता है. यहां वो आदमी दूसरों की औरतों को मुगलो से बचाने के दावे करता है जिसके वंश की उत्पत्ति ही मुगलो के यहां मुजारा (खेतिहर गुलाम) बनकर हुई है,
जो कुछ मुरब्बे खेती की जमीन के लिए अपनी औरतों का सौदा करते थे और जो खुद 47 तक भी मुगलो के वंशजो की इस गुलामी से आजाद नहीं हुआ था. यहां वो आदमी पूरे कॉन्फिडेंस के साथ दूसरों को अंग्रेजो से आजाद कराने की बात करता है
यहां वो आदमी पूरे कॉन्फिडेंस के साथ दूसरों को अंग्रेजो से आजाद कराने की बात करता है जिसका समाज अंग्रेजो का सबसे बड़ा समर्थक था. यहां वो आदमी सबसे बड़ा हिंदूवादी बनकर दूसरों को गालिया देता है जिसके पुरखो ने इतिहास में हिन्दुओ का सबसे बड़ा नुकसान किया है.
यहां वो आदमी दूसरों को गुलाम बताता है जो खुद इतिहास में कभी आजाद नहीं रहा. जिस व्यक्ति के पुरखे किसी शासक का प्रशस्ति गान कर ऐश करते थे वो आज उसी शासक को नालायक बताकर उपदेश देता है.
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