मित्र अमित सिंघल जो काफी समय से भारतीय राजनीति पर अपनी नजर रखते हैं उनका मानना है कि 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी के किसानो के सम्बोधन को अगर ध्यान से सुने और उनके कहे के बीच अनकही को समझने का प्रयास करे, तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि कृषि कानून वापस नहीं होंगे।
सर्वप्रथम, उन्होंने उद्भोदन ही यह कहकर शुरू किया कि गांवों में जो किसान बैठे हैं, उन सबको मेरी तरफ से नमस्कार। बिना कुछ कहे, उन्होंने दिल्ली की सीमा पर बैठे लोगो की तरफ इशारा कर दिया कि वे लोग क्या है।
आगे कहा कि कुछ राजनीतिक दल, जिन्हें देश की जनता ने लोकतांत्रिक तरीके से नकार दिया है, वो आज कुछ किसानों को गुमराह कर रहे हैं।
जो कुछ भी कर रहे हैं उन सबको बार-बार नम्रतापूर्वक सरकार की तरफ से अनेक प्रयासों के बावजूद भी, किसी न किसी राजनीतिक कारण से, किसी ने बंधी-बंधी राजनीतिक विचारधारा कारण से ये चर्चा नहीं होने दे रहे हैं।
मित्र अरुण जी ने इस पर जो कहते हैं वो बड़ी मजेदार घटना है कि 25 दिसंबर के किसानो को सम्बोधित करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की बॉडीलैंग्वेज देखकर महसूस हो रहा है कि बंदा बेफिक्र है और घटनाक्रम बिल्कुल वैसे ही घटित हो रहा है जैसा वो चाहते थे।
राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने वर्ष 2003 में इराक से युद्ध की घोषणा कर दी और अमेरिकी सेना इराक में प्रवेश कर गयी थी। बुश दिखाना चाहते थे कि उनके इराक युद्ध को वृहद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का समर्थन प्राप्त था और इस सन्दर्भ में वे कई देशो से अपनी सेना इराक भेजने के लिए फोन कर रहे थे।
भारत में कुछ लोगो ने हवा फैला दी कि वाजपेयी सरकार अमेरिका के समर्थन में इराक में सेना भेज सकता है। कम्युनिस्ट पार्टियाँ इसके विरोध में देश भर में छोटे-मोटे प्रदर्शन करवाने लगी थी।
उधर राष्ट्रपति बुश प्रधानमंत्री वाजपेयी को समय-समय पर फोन करके सेना भेजने का दबाव बना रहे थे।
एक दिन वाजपेयी जी ने कम्युनिस्ट पार्टी के ऐ बी बर्धन एवं हरकिशन सिंह सुरजीत - को मीटिंग के लिए बुलावा भेजा। बर्धन एवं सुरजीत थोड़ा झिझकते हुए आये क्योकि उन्हें लगा कि वाजपेयी जी प्रदर्शनों के लिए उनसे अपनी अप्रसन्नता दिखाएंगे।वाजपेयी जी ने दोनों का चाय एवं जलेबी से स्वागत किया।
आशानुरूप वाजपेयी जी ने पूछा: 'सुना है, इराक में भारतीय सेना भेजने के विरोध में कुछ प्रदर्शन हो रहे है'।
बर्धन एवं सुरजीत ने दबी जुबान बोला, 'सर, बस ऐसे ही कुछ लोग प्रदर्शन कर रहे है। कुछ समय में बंद हो जायेगा'।
कान पे एक हाथ रखकर ध्यान से सुनने का प्रयास करते हुए वाजपेयी जी ने शिकायत की: 'लेकिन मुझे तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा'।
एकाएक कम्युनिस्ट नेताद्वय समझ गए कि प्रधानमंत्री वाजपेयी इन प्रदर्शनों को और तेज करने के लिए कह रहे है क्योकि वे इराक में सेना नहीं भेजना चाहते।
जब बर्धन एवं सुरजीत प्रधानमंत्री निवास से बाहर आए तो वहां प्रतीक्षा कर रहे मीडिया को बोला कि उन्होंने प्रधानमंत्री वाजपेयी को कड़ी चेतावनी दी कि वे इराक में सेना ना भेजे तथा वे सरकार के विरोध में राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करेंगे।
फिर वही हुआ।
समाचारपत्रों में ऐसी बहुत सी फोटो छपी, TV में न्यूज़ चली, जिसमे बड़ी संख्या में टोपी पहने हुए लोग विशाल आंदोलनों में चिल्ला-चिल्ला कर नारे लगा रहे थे; वाजपेयी जी को कोस रहे थे, चेतावनी दे रहे थे। ऐसे कुछ बड़े प्रदर्शन नई दिल्ली में अमेरिकी एम्बेसी के भी बाहर हुए।
अगली बार जब राष्ट्रपति बुश का फोन आया, तो प्रधानमंत्री वाजपेयी ने विशाल प्रदर्शनों के परिणामस्वरूप सेना भेजने में अपनी असमर्थता जता दी।
इस वार्तालाप के बारे उस समय आउटलुक के संपादक विनोद मेहता ने लिखा था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की बॉडीलैंग्वेज इसलिए रिलैक्स्ड है क्योकि जो उद्देश्य वह प्राप्त करना चाहते है, घटनाक्रम बिल्कुल वैसे ही घटित हो रहा है। तभी वह प्रतिदन कई कार्यक्रमों में भाग ले रहे है, भाषण दे रहे है।
उधर गृह मंत्री बंगाल एवं असम घूम रहे है, अगले राज्य चुनावों की तैयारी में जुटे है ।
डोवाल जी का पता नहीं कहाँ है।

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