धर्म, दर्शन,विज्ञान,वास्तु,ज्योतिष,स्थापत्य कला नृत्यकला, संगीत कला आदि सभी तरह के ज्ञान का जन्म भारत में ही हुआ है जिसके अनेकों प्रमाण हैं।
मध्यकाल में भारतीय गौरव को नष्ट किया गया और आज का तथाकथित भारतीय व्यक्ति पश्चिमी सभ्यता को ही महान समझता है जो वास्तविकता से परे हैं..
मध्यकाल में भारतीय गौरव को नष्ट किया गया और आज का तथाकथित भारतीय व्यक्ति पश्चिमी सभ्यता को ही महान समझता है जो वास्तविकता से परे हैं..

भारत में प्राचीनकाल से ही ज्ञान को अत्यधिक महत्व दिया गया है कला, विज्ञान,गणित और ऐसे अनगिनत क्षेत्र हैं जिनमें भारतीय योगदान अनुपम है
आधुनिक युग के ऐसे बहुत से आविष्कार हैं जो भारतीय शोधों के निष्कर्षों पर आधारित हैं आइए जाने कौन-कौन सी है वह खोज जो विश्व को भारत की देन हैं..
आधुनिक युग के ऐसे बहुत से आविष्कार हैं जो भारतीय शोधों के निष्कर्षों पर आधारित हैं आइए जाने कौन-कौन सी है वह खोज जो विश्व को भारत की देन हैं..

भारत में अनेकों #विश्वविद्यालय अस्तित्व में थे
जहां विश्वभर के छात्र पढ़ने आते थे तिब्बत, नेपाल, श्रीलंका, अरब, यूनान और चीन के छात्रों की संख्या अधिक होती थी प्राचीनकाल के तीन विश्वविद्यालयों का उल्लेख मिलता है तक्षशिला,नालंदा और विक्रमशिला उससे पूर्व गुरुकुल थे..
जहां विश्वभर के छात्र पढ़ने आते थे तिब्बत, नेपाल, श्रीलंका, अरब, यूनान और चीन के छात्रों की संख्या अधिक होती थी प्राचीनकाल के तीन विश्वविद्यालयों का उल्लेख मिलता है तक्षशिला,नालंदा और विक्रमशिला उससे पूर्व गुरुकुल थे..

तक्षशिला को विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय होने का गौरव प्राप्त है,कुछ विद्वान नालंदा को प्रथम विश्व विद्यालय मानते हैं..
तक्षशिला प्राचीन भारत के गांधार जनपद की राजधानी का नाम था..
यहीं पर यह विश्वविद्यालय 700 ईसा पूर्व स्थापित किया गया था...
तक्षशिला प्राचीन भारत के गांधार जनपद की राजधानी का नाम था..
यहीं पर यह विश्वविद्यालय 700 ईसा पूर्व स्थापित किया गया था...

तक्षशिला वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के रावलपिंडी जिले की एक तहसील है अब यहां इस विश्वविद्यालय के खंडहर ही विद्यमान हैं चौथी शताब्दी ईसापूर्व से ही भारतवर्ष पर विदेशी आक्रमण होने लगे थे अंततः छठी शताब्दी में यह विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा पूरी तरह नष्ट कर दिया...

तक्षशिला #विश्वविद्यालय में 10,500 भारतीय और विदेशी छात्र अध्ययन करते थे जिन्हें 2,000 विद्वान शिक्षकों द्वारा शिक्षा प्रदान की जाती थी
पाणिनी, कौटिल्य (चाणक्य), चन्द्रगुप्त, जीवक, कौशलराज, प्रसेनजित आदि महापुरुषों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी..
पाणिनी, कौटिल्य (चाणक्य), चन्द्रगुप्त, जीवक, कौशलराज, प्रसेनजित आदि महापुरुषों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी..

यहां 60 से भी ज्यादा विषयों को पढ़ाया जाता था और यहां एक विशालकाय ग्रंथालय भी था महत्वपूर्ण पाठयक्रमों में यहां वेद-वेदांत, अष्टादश विद्याएं, दर्शन, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्ध विद्या, शस्त्र-संचालन, ज्योतिष, खगोल, गणित, चिकित्सा, आयुर्वेद, ललित कला, हस्त विद्या..

अश्व-विद्या, मंत्र-विद्या, विविध भाषाएं, शिल्प, गणना, संख्यानक, वाणिज्य, सर्पविद्या, तंत्रशास्त्र, संगीत, नृत्य, चित्रकला, मनोविज्ञान, योगविद्या, कृषि, भू-विज्ञान आदि की शिक्षाएं दी जाती थीं..

तक्षशिला नगर का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में भी मिलता है
वाल्मीकि रामायण के अनुसार #भरत के तक्ष और पुष्कल नामक दोनों पुत्रों ने तक्षशिला और पुष्करावती नामक दो नगर बसाए थे तक्षशिला सिंधु नदी के पूर्वी तट पर थी..
वाल्मीकि रामायण के अनुसार #भरत के तक्ष और पुष्कल नामक दोनों पुत्रों ने तक्षशिला और पुष्करावती नामक दो नगर बसाए थे तक्षशिला सिंधु नदी के पूर्वी तट पर थी..

संस्कृत सभी भाषाओं की जननी और विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है, किंतु अब अलग-अलग धर्मों की अलग-अलग भाषा हो चली है जबकि संस्कृत से ही सभी यूरोपीय भाषाओं का जन्म हुआ है
'संस्कृत' का शाब्दिक अर्थ है 'परिपूर्ण भाषा' संस्कृत से पहले दुनिया छोटी-छोटी, टूटी-फूटी बोलियों में बंटी थी..
'संस्कृत' का शाब्दिक अर्थ है 'परिपूर्ण भाषा' संस्कृत से पहले दुनिया छोटी-छोटी, टूटी-फूटी बोलियों में बंटी थी..

जिनका कोई व्याकरण नहीं था और कोई भाषाकोष भी नहीं था कुछ बोलियों ने संस्कृत को देखकर खुद को विकसित किया और वे भी एक भाषा बन गईं..
संस्कृत भाषा के व्याकरण ने विश्वभर के भाषा विशेषज्ञों का ध्यानाकर्षण किया है उसके व्याकरण को देखकर ही अन्य भाषाओं के व्याकरण विकसित हुए हैं..
संस्कृत भाषा के व्याकरण ने विश्वभर के भाषा विशेषज्ञों का ध्यानाकर्षण किया है उसके व्याकरण को देखकर ही अन्य भाषाओं के व्याकरण विकसित हुए हैं..

आधुनिक वैज्ञानिकों के लिए संस्कृति कम्प्यूटर के उपयोग केलिए सर्वोत्तम भाषा है
3000 वर्ष पूर्व तक भारत में संस्कृत बोली जाती थी इसीलिए
500 वर्ष ईसापूर्व पाणिनी ने अष्टाध्यायी नामक दुनिया का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था यदि ऐसा ना होता तो व्याकरण लिखने की आवश्यकता ही नहीं होती..
3000 वर्ष पूर्व तक भारत में संस्कृत बोली जाती थी इसीलिए
500 वर्ष ईसापूर्व पाणिनी ने अष्टाध्यायी नामक दुनिया का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था यदि ऐसा ना होता तो व्याकरण लिखने की आवश्यकता ही नहीं होती..

अष्टाध्यायी में 8 अध्याय और लगभग 4 सहस्र सूत्र हैं व्याकरण के इस महान ग्रंथ में पाणिनी ने संस्कृत भाषा के 4,000 सूत्र वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संग्रहीत किए हैं
19वीं सदी में यूरोप के एक ) ने पाणिनी के कार्यों पर शोध किया..
19वीं सदी में यूरोप के एक ) ने पाणिनी के कार्यों पर शोध किया..

उन्हें पाणिनी के लिखे हुए ग्रंथों तथा संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को और परिपक्व करने के सूत्र मिले।
आधुनिक भाषा विज्ञान को पाणिनी के लिखे ग्रंथ से बहुत ही सहायता मिली
दुनिया की सभी भाषाओं के विकास में पाणिनी के ग्रंथ का अतुलनीय योगदान है..
आधुनिक भाषा विज्ञान को पाणिनी के लिखे ग्रंथ से बहुत ही सहायता मिली
दुनिया की सभी भाषाओं के विकास में पाणिनी के ग्रंथ का अतुलनीय योगदान है..

संस्कृत को उस काल में कुछ लोग ब्राह्मी लिपि में तो अधिकतर देवनागरी लिपि में लिखते थे भारत में आज जितनी भी भाषाएं बोली जाती हैं वे सभी संस्कृत से जन्मी हैं जिनका इतिहास मात्र 1500 से 2000 वर्ष पुराना है उन सभी से पहले संस्कृत, प्राकृत, पाली, अर्धमागधि आदि भाषाओं का प्रचलन था..

आदिकाल में भाषा नहीं अपितु ध्वनि संकेत थे जिसके माध्यम से मानव समझता था कि कोई क्या कहना चाहता है
फिर चित्रलिपियों का प्रयोग किया जाने लगा प्रारंभिक मनुष्यों ने भाषा की रचना अपनी बौद्धिक प्रतिभा के बल पर की उन्होंने ध्वनि संकेतों को चित्र रूप और आकृति रूप देना
आरंभ किया..
फिर चित्रलिपियों का प्रयोग किया जाने लगा प्रारंभिक मनुष्यों ने भाषा की रचना अपनी बौद्धिक प्रतिभा के बल पर की उन्होंने ध्वनि संकेतों को चित्र रूप और आकृति रूप देना
आरंभ किया..

इस तरह भाषा का क्रमश: विकास हुआ इसमें किसी भी प्रकार की बौद्धिक और वैज्ञानिक क्षमता का उपयोग नहीं किया गया..

संस्कृत ऐसी भाषा नहीं है जिसकी रचना की गई हो इस भाषा की खोज की गई है भारत में पहली बार लोगों ने अनुभव किया कि मानव के पास अपनी कोई लिपियुक्त भाषा होना चाहिए जिसके माध्यम से वह संप्रेषण और विचार-विमर्श ही कर सके ये वो लोग थे,जो हिमालय के आसपास रहते थे..

दुनिया की सभी भाषाओं का विकास मानव, पशु-पक्षियों द्वारा बोले गए ध्वनि संकेतों के आधार पर हुआ किंतु
संस्कृत किसी देश या धर्म की भाषा नहीं यह अपौरूष भाषा है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति और विकास ब्रह्मांड की ध्वनियों को सुन-जानकर हुआ यह साधारण लोगों द्वारा बोली गई ध्वनियां नहीं हैं..
संस्कृत किसी देश या धर्म की भाषा नहीं यह अपौरूष भाषा है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति और विकास ब्रह्मांड की ध्वनियों को सुन-जानकर हुआ यह साधारण लोगों द्वारा बोली गई ध्वनियां नहीं हैं..

धरती हो,आकाश हो अथवा ब्रह्मांड सर्वत्र में गति विद्धमान है चाहे वह वस्तु स्थिर हो या गतिमान..
गति होगी तो ध्वनि निकलेगी, ध्वनि होगी तो शब्द भी निकलेगा..
देवों और ऋषियों ने उक्त ध्वनियों और शब्दों के महत्व और प्रभाव को समझा और उसे लिपिबद्ध किया...
गति होगी तो ध्वनि निकलेगी, ध्वनि होगी तो शब्द भी निकलेगा..
देवों और ऋषियों ने उक्त ध्वनियों और शब्दों के महत्व और प्रभाव को समझा और उसे लिपिबद्ध किया...

संस्कृत के विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के चारो ओर से 9/9 अर्थात कुल 36 रश्मियां निकलती हैं
और इन्हीं 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने है इस प्रकार जब सूर्य की 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनकी टक्कर पृथ्वी के 8 वसुओं से होती है..
और इन्हीं 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने है इस प्रकार जब सूर्य की 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनकी टक्कर पृथ्वी के 8 वसुओं से होती है..

सूर्य की 9 रश्मियां और पृथ्वी के 8 #वसुओं के टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुईं, वो संस्कृत की 72 व्यंजन कही गई
इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियों पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित है
जिसे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के संगठन नासा और इसरो ने भी माना है..
इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियों पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित है
जिसे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के संगठन नासा और इसरो ने भी माना है..

कहा जाता है कि अरबी भाषा को कंठ से और अंग्रेजी को केवल होंठों से ही बोला जाता है किंतु संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों की ध्वनि के आधार पर कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अंत:स्थ और ऊष्म वर्गों में बांटा गया है।
पाई के मूल्य की गणना : #बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्व सूत्र तथा श्रौत सूत्र के रचयिता हैं।
पाइथागोरस के सिद्धांत से पूर्व ही बौधायन ने ज्यामिति के सूत्र रचे थे लेकिन आज विश्व में यूनानी ज्यामितिशास्त्री पाइथागोरस और यूक्लिड के सिद्धांत ही पढ़ाए जाते हैं..
पाइथागोरस के सिद्धांत से पूर्व ही बौधायन ने ज्यामिति के सूत्र रचे थे लेकिन आज विश्व में यूनानी ज्यामितिशास्त्री पाइथागोरस और यूक्लिड के सिद्धांत ही पढ़ाए जाते हैं..

800 ई,पू, बौधायन ने रेखागणित, ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज की थी
उस समय भारत में रेखागणित, ज्यामिति या त्रिकोणमिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था
शुल्व शास्त्र के आधार पर विविध आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाई जाती थीं..दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर..
उस समय भारत में रेखागणित, ज्यामिति या त्रिकोणमिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था
शुल्व शास्त्र के आधार पर विविध आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाई जाती थीं..दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर..

जो संख्या आएगी उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में परिवर्तन करना, इस प्रकार के अनेक कठिन प्रश्नों को बौधायन ने सुलझाया..
