#इतिहास_ही_हमारी_धरोहर_है
#निशा_दीदी का लेख✍✍✍ एवं #मार्गदर्शन🙏🙏🙏
🚩 #विक्रम_सवंत_क्या_है ❓

🚩 #विक्रमसंवत नवसंवत्सर🚩
"विक्रमसंवत 2077"का शुभारम्भ 25 मार्च,सन 2020 को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से है।

#पुराणों के अनुसार #चैत्रमास के #शुक्लपक्ष
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की प्रतिपदा को🙏  #ब्रह्माजी 🙏ने #सृष्टि निर्माण किया था, इसलिए इस पावन तिथि को #नव_संवत्सर पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
संवत्सर-चक्र के अनुसार सूर्य इस ऋतु में अपने राशि-चक्र की प्रथम राशि #मेष में प्रवेश करता है।
#भारतवर्ष में वसंत ऋतु के अवसर पर नूतन वर्ष का आरम्भ मानना
इसलिए भी #हर्षोल्लासपूर्ण है,☝क्योंकि इस ऋतु में चारों ओर हरियाली रहती है तथा नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा प्रकृति का नवश्रृंगार किया जाता है
लोग नववर्ष का स्वागत करने के लिए अपने घरद्वार सजाते हैं तथा नवीन वस्त्राभूषण धारण करके ज्योतिषाचार्य द्वारा नूतनवर्ष का संवत्सर फल सुनते हैं।
👉शास्त्रीय मान्यता के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि के दिन प्रात: काल स्नान आदि के द्वारा शुद्ध होकर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर

"ओम भूर्भुव: स्व: संवत्सर-अधिपति आवाहयामि पूजयामि च"

इस मंत्र से नव संवत्सर की पूजा करनी चाहिए तथा नववर्ष के अशुभ फलों के निवारण
हेतु #ब्रह्माजी से प्रार्थना करनी चाहिए कि
'हे भगवन! आपकी कृपा से मेरा यह वर्ष कल्याणकारी हो और इस संवत्सर के मध्य में आने वाले सभी अनिष्ट और विघ्न शांत हो जाएं।'
#नव_संवत्सर के दिन नीम के कोमल पत्तों और ऋतुकाल के पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री,
इमली और अजवायन मिलाकर खाने से रक्त विकार आदि शारीरिक रोग शांत रहते हैं और पूरे वर्ष स्वास्थ्य ठीक रहता है।

🚩राष्ट्रीय संवत हिन्दू नर्व वर्ष🚩
भारतवर्ष में इस समय देशी विदेशी मूल के अनेक संवतों का प्रचलन है, किंतु भारत के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय
राष्ट्रीय सम्वत यदि कोई है तो वह ' #विक्रम_संवत' ही है। आज से लगभग 2,068 वर्ष यानी 57 ईसा पूर्व में भारतवर्ष के #प्रतापी_राजा_विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था।
उसी विजय की स्मृति में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से विक्रम संवत का भी
आरम्भ हुआ था।

🚩नये संवत की शुरुआत🚩
👉प्राचीन काल में नया संवत चलाने से पहले विजयी राजा को अपने राज्य में रहने वाले सभी लोगों को ऋण-मुक्त करना आवश्यक होता था। राजा विक्रमादित्य ने भी इसी परम्परा का पालन करते हुए अपने राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों का राज्यकोष से कर्ज़ चुकाया
और उसके बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मालवगण के नाम से नया संवत चलाया।
भारतीय कालगणना के अनुसार वसंत ऋतु और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि अति प्राचीन काल से सृष्टि प्रक्रिया की भी पुण्य तिथि रही है। वसंत ऋतु में आने वाले वासंतिक 'नवरात्र'का प्रारम्भ भी सदा इसी पुण्य तिथि से होता है।
विक्रमादित्य ने भारत की इन तमाम कालगणनापरक सांस्कृतिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से ही अपने नवसंवत्सर संवत को चलाने की परम्परा शुरू की थी और तभी से समूचा भारत इस पुण्य तिथि का प्रतिवर्ष अभिवंदन करता है।

👉दरअसल, भारतीय परम्परा में चक्रवर्ती
#राजा_विक्रमादित्य शौर्य, #पराक्रम तथा #प्रजाहितैषी कार्यों के लिए प्रसिद्ध माने जाते हैं।
उन्होंने 95 शक राजाओं को पराजित करके भारत को विदेशी राजाओं की दासता से मुक्त किया था।
राजा विक्रमादित्य के पास एक ऐसी शक्तिशाली विशाल सेना थी, जिससे विदेशी आक्रमणकारी सदा भयभीत रहते थे।
ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला संस्कृति को विक्रमादित्य ने विशेष प्रोत्साहन दिया था।
धंवंतरि जैसे महान् वैद्य, वराहमिहिर जैसे महान् ज्योतिषी और कालिदास जैसे महान् साहित्यकार विक्रमादित्य की राज्यसभा के नवरत्नों में शोभा पाते थे। प्रजावत्सल नीतियों के फलस्वरूप ही विक्रमादित्य ने अपने
राज्यकोष से धन देकर दीनदु:खियों को साहूकारों के कर्ज़ से मुक्त किया था।
🚩एक चक्रवर्ती सम्राट होने के बाद भी  #राजा_विक्रमादित्य राजसी ऐश्वर्य भोग को त्यागकर भूमि पर शयन करते थे। वे अपने सुख के लिए राज्यकोष से धन नहीं लेते थे।

🚩राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान🚩
पिछले दो हज़ार वर्षों
में अनेक देशी और विदेशी राजाओं ने अपनी साम्राज्यवादी आकांक्षाओं की तुष्टि करने तथा इस देश को राजनीतिकदृष्टि से पराधीन बनाने के प्रयोजन से अनेक संवतों को चलाया किंतु भारत राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान केवल #विक्रमीसंवत के साथ ही जुड़ी रही।अंग्रेज़ी शिक्षा-दीक्षा और पश्चिमी संस्कृति
के प्रभाव के कारण आज भले ही सर्वत्र ईस्वी संवत का बोलबाला हो और भारतीय तिथि-मासों की काल गणना से लोग अनभिज्ञ होते जा रहे हों।
☝परंतु वास्तविकता यह भी है कि देश के सांस्कृतिक पर्व-उत्सव तथा राम,कृष्ण, बुद्ध,महावीर,गुरुनानक आदि महापुरुषों की जयंतियाँ आज भी भारतीय काल गणना के हिसाब
से ही मनाई जाती हैं, ईस्वी संवत के अनुसार नहीं।
विवाह-मुण्डन का शुभ मुहूर्त हो या श्राद्ध-तर्पण आदि सामाजिक कार्यों का अनुष्ठान,ये सब भारतीय पंचांग पद्धति के अनुसार ही किया जाता है,ईस्वी सन् की तिथियों के अनुसार नहीं।

🚩हिंदू वर्ष 2077 आरंभ,जानें कैसे शुरू हुई विक्रमी और शक संवत
🚩भारतीय संवत मानव श्वास से आरम्भ होता है।
छः श्वास से एक विनाड़ी,10 विनाड़ी यानी साठ श्वासों से एक नाड़ी बनती है। साठ नाड़ियां एक दिवस(दिन-रात का युगल) निर्मित करती हैं।
तीस दिवसों का एक माह होता है।
एक चंद्र मास, उतनी चंद्र तिथियों से निर्मित होता है।
सूर्य के राशि परिवर्तन से
नेटवर्क प्रॉब्लम की वजह से थ्रेड Failed हो गया था...
कृपया आगे यहां से पढ़े 🙏🙏🙏
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