महंगाई :- देश के अंदर एक अजीब सा दोगलापन है देश के मीडिया ओर नेताओ को महंगाई सिर्फ़ दाल, प्याज़ ओर टमाटर में ही नज़र आती है क्यूँकि ये किसान पैदा करता है जैसे ही दाल के प्याज़ ओर टमाटर के भाव बाढ़ जाए सब जगह रोना धोना शुरू हो जाता है वही लोग किसान की आय नहीं बढ़ रही उसी का
रोना रोते है , जब कभी महंगाई का पैमाना देखा जाता है तो अख़बार हो या न्यूज़ हो वहाँ दाल ओर टमाटर प्याज़ के भाव ही मिला के महंगाई की घोषणा कर देते है पर कभी देखा की खाद ओर बीज ओर स्प्रे के भाव से बताया हो की ये महँगे हो गए ह ओर किसी राजनैतिक दल ने मुद्धा बनाया हो ?
ये हमारे दीमाग में बिठा दिया जाता है कि जो चीज़ किसान पैदा करे उसे भाव बढ़ जाए तो सरकारें बदल देते है तो सरकार की भी ये कोशिश रहती ह की इनके भाव ना बढ़े ओर जैसे ही भाव बढ़ने लगते है तो आयात खोल देती ह ओर परिणाम ये होता ह की जब किसान की फसल आती ह तो उनको उचित मूल्य नहीं मिल पाता
अब बहुत से लोग बोलेंगे की इनसे गरीब आदमी को फ़र्क़ पड़ता है पर कोई रीयलिस्टिक बताए की एक घर में एक महीने में कितनी दाल लगती ह मेरे हिसाब से एक २ किलो से ज़्यादा दाल नहीं लगती ओर यदि दाल का भाव बीस रुपए किलो ही बढ़ा हो तो सिर्फ़ महीने का चालीस रुपए का खर्च बढ़ा
वही बाक़ी चीज़ कितनी है उनके दाम बढ़ रहे ह उसका कोई शोर नहीं होता ? क्या आपने सुना ह कभी कपड़ा इतना महँगा हो गया घर में ओर काम आने वाली चीज़ के भाव बढ़ गए हो ओर उसका राजनैतिकरण हुआ हो ? पर किसान जो पैदा उसी की क़ीमत बढ़ जाए तो वही लोग सड़कों पर आ जाते ह जो पैदा
करते है क्या कभी सुना किसी दवाई के दाम बढ़ जाए तब उसी दवाई को पैदा करने वालों ने धरना दिया हो ओर महंगाई का रोना रोया हो या मोबाइल टैरिफ़ बढ़ जाने पर उसी कम्पनी वालो ने महंगाई महंगाई रोया हो या फिर पेट्रोल के दाम बढ़ जाए तो पट्रोल पम्प वाले महंगाई २ चिलाये हो
पर किसान जो पैदा करे उसका इतना हौवा क्यू ? मेरी सभी से निवेदन है जब जब दाल के भाव को लेके महंगाई बोलो तब तब उस दाल को पैदा करने में जो बीज खाद ओर किटनाशक की क़ीमत पिछले साल से इस साल कितनी बढ़ी वो भी बता दीजिए