#खैबर_दर्रा मध्य #एशिया व भारतीय #उपमहाद्वीप को जोड़ता है। इस दर्रे की लम्बाई 33 मील है।
कई जगह यह दर्रा बहुत ही संकरा है-मात्र 10 ft चौड़ा।
यह एक #ऐतिहासिक पहाड़ी दर्रा है,जो 3510 ft की ऊंचाई पर एक प्राकृतिक कटाव है।
यह दर्रा भारतीय उपमहाद्वीप के अफगानिस्तान में काबुल के
पास खुलता है।
यह दर्रा #पेशावर और #काबुल को जोड़ता है।
आजकल इन दोनों शहरों के बीच खैबर दर्रा होते हुए पक्की सड़क बन गयी है।
भारतीय राजा / महाराजा इस दर्रे से आने वाले #आक्रांताओं को रोक नहीं सके!*
☝वजह थी - उनकी आपसी #कलह और #तालमेल का अभाव।
नतीजा यह हुआ कि हम कई सालों से
क्रमशः यूनानियों, शकों, हूणों और मुगलों के गुलाम होते चले गए।
कुछ समय के लिए #हरिसिंह_नलवाजी🙏 ने इस दर्रे को बन्द करवाने में #सफलता पाई थी।
बाद के वर्षों में अंग्रेजों ने इस पर कड़ी निगरानी रखी ।
कभी यह आलम था कि इसी दर्रे से होकर भारतीय अरब पहुँचे थे और वैदिक सभ्यता का पूरे
जोर शोर से अरब में फैलाया था।
वहाँ की #गुफाओं में #भगवान_विष्णु के #वाराह_अवतार द्वारा #हिरण्याक्ष को मारता हुआ #चित्र आज भी मौजूद है। खुदाई से #सरस्वतीजी की मूर्ति व अन्य #देवी #देवताओं की मूर्तियाँ भी मिली हैं।
#राक्षसों के #गुरु_शुक्राचार्य का पोता #अर्व ने यहाँ कई सालों तक
#शासन किया था।
आज यह #गणराज्य पूरी तरह से #मुस्लिम क्षेत्र है,पर इसका नाम #अरब आज भी #अर्व के नाम पर ही हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि यह दर्रा पहले #वैदिक_सभ्यता को #अरब पहुँचाता है और बाद में वहाँ के #इस्लाम_धर्म, #सभ्यता#संस्कृति को भारतीय #उपमहाद्वीप में पहुँचाता है।
☝यदि थोड़ी सी #दूरदर्शिता अपनाई गई होती #भारतीय_राजाओं द्वारा तो आज हम एक #महान_समृद्धिशाली_हिंदूराष्ट्र होते, मात्र10 फुट ही तो बंद करना था।

ख़ैबर दर्रा उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा और अफ़ग़ानिस्तान के काबुलिस्तान मैदान के बीच हिन्दुकुश के सफ़ेद कोह पर्वत शृंखला में स्थित
एक प्रख्यात दर्रा है।
यह 1070 मीटर (3510 फ़ुट) की ऊँचाई पर सफ़ेद कोह शृंखला में एक प्राकृतिक कटाव है।
इस दर्रे के ज़रिये भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य एशिया के बीच आवागमन किया जा सकता है और इसने दोनों क्षेत्रों के इतिहास पर गहरी छाप छोड़ी है।
ख़ैबर दर्रा 33 मील (लगभग 52.8 कि.मी.)
लम्बा है और इसका सबसे सँकरा भाग केवल 10 फुट चौड़ा है। यह सँकरा मार्ग 600 से 1000 फुट की ऊँचाई पर बल खाता हुआ बृहदाकार पर्वतों के बीच खो सा जाता है। दर्रे के पूर्वी (भारतीय) छोर पर पेशावर तथा लंदी कोतल स्थित है, जहाँ से अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल को मार्ग जाता है।
अब यह दर्रा #पाकिस्तान के #पश्चिमी_पंजाब_प्रान्त को #अफ़ग़ानिस्तान से जोड़ता है।
जब पंजाब ब्रिटिश शासन में आ था, त भी ख़ैबर दर्रे की समुचित रक्षा व्यवस्था की जा सकी और उसके बाद इस मार्ग से भारत पर फिर कोई #आक्रमण नहीं हुआ।
खैबर दर्रा दो हजार वर्षों तक भारत में हुए आक्रमणों और
भारतीयों द्वारा अपनी #सभ्यता, #संस्कृति और #सम्मान के लिए किए जाने वाले #संघर्ष का गवाह रहा है।
खैबर दर्रा उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा और अफगानिस्तान के काबुलिस्तान मैदान के बीच #हिंदूकुश की सफेद कोह पर्वत शृंखला में स्थित एक प्रख्यात दर्रा है।
यह 1070 मीटर की ऊंचाई पर सफेद
कोह शृंखला में एक प्राकृतिक कटाव है
खैबर दर्रा लगभग 52.8किमी लंबा है और इसका सबसे संकरा भाग केवल 10फुट चौड़ा है,इस दर्रे के पूर्वी छोर पर पेशावर तथा लंदी कोतल स्थित है,जहां से अफगानिस्तान की राजधानी काबुल को मार्ग जाता है
पेशावर से काबुल तक इस दर्रे से होकर अब एक सड़क बनाई गई है।
यह सड़क चट्टानी ऊसर मैदान से होती हुई जमरूद से, जो अंग्रेज सेना की छावनी थी और जहां अब पाकिस्तानी सेना रहती है।
3 मील आगे शादीबगियार के पास पहाड़ों में प्रवेश करती है, और यहीं से #खैबर_दर्रे का आरंभ होता है।
कुछ दूर तक सड़क एक खड्ड में से होकर जाती है,फिर बाई और शंगाई के पठार
की ओर उठती है।
इस स्थान से अलीमस्जिद दुर्ग दिखाई पड़ता है,जो दर्रे के लगभग बीचोंबीच ऊंचाई पर स्थित है
यह दुर्ग अनेक अभियानों का लक्ष्य रहा है
पश्चिम की ओर आगे बढ़ती हुई सड़क दाहिनी ओर घूमती है और टेढ़ी-मेढ़ी ढलान से होती हुई अलीमस्जिद की नदी में उतर कर उसके किनारे-किनारे चलती है।
यहीं खैबर दर्रे का #संकरा भाग है,जो महज पंद्रह फुट चौड़ा है और ऊंचाई में 2000फुट है।
इस घाटी के दोनों ओर छोटे-2 #गांव और #जक्काखेल_अफ्रीदियों की लगभग साठ मीनारें हैं
इसके आगे #लोआर्गी का पठार आता है,जो 7मील लंबा है। उसकी अधिकतम चौड़ाई 3मील है,यहां अंग्रेजों के काल का एक दुर्ग है।
यहां से अफगानिस्तान का मैदानी भाग दिखाई देता है।
#लंदी_कोतल से आगे सड़क छोटी पहाडि़यों के बीच से होती हुई काबुल नदी को चूमती डक्का पहुंचती है।
यह मार्ग अब इतना प्रशस्त हो गया है कि छोटी लारियां और मोटर गाडि़यां काबुल तक सरलता से जा सकती हैं।
इसके अतिरिक्त लंदीखाना तक,जिसे खैबर का
पश्चिम कहा जाता है, रेलमार्ग भी बन गया है।

#भारत_का_प्रवेश_द्वार
सामरिक दृष्टि से संसार भर में यह दर्रा सबसे अधिक महत्त्व का समझा जाता रहा है।
भारत के प्रवेश द्वार के रूप में इसके साथ अनेक स्मृतियां जुड़ी हुई हैं।
रेलमार्ग भी बन गया है।इस रेलमार्ग का बनना 1925 में आरंभ हुआ था।
#खबरदार_करता_है_खैबर_दर्रा
#खैबर_दर्रा दो हजार वर्षों तक भारत मे हुए #आक्रमणों और भारतीयों द्वारा अपनी #सभ्यता, #संस्कृति और #सम्मान के लिए किए जाने वाले #संघर्ष का #गवाह रहा है....
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