꧁सनातन संस्कृति꧂

– महाभारत के जरासंध का मंत्रिमंडल :-

हम पूरे दावे एवं प्रमाणों के साथ यह सिद्ध करेंगे कि चीन के terracotta की हजारो वर्ष प्राचीन यह रहस्यमयी अद्भुत मूर्तिया कोई और नही, बल्कि जरासंध का मंत्रिमंडल है
Qक्यो की मजदूर, आम गरीब ब्राह्मण हो शुद्र, दलित, पीड़ित, की कभी मूर्ति नही बन सकती। मूर्ति सदैव उच्च पद पर बैठे प्रभावशाली लोगों की ही बनती है। इतिहासकार इन मूर्तियों को 2200 वर्ष प्राचीन मानते है, इससे ज़्यादा प्राचीन वह मान भी नही सकते, क्यो की उनके हिसाब से पूरा मानव
इतिहास ही 2500-3000 वर्ष पुराना है। बुद्ध से आगे वह बढ़ते ही नही, क्यो की बुद्ध से आगे बढ़ते ही बुद्धि आ जाती है, फिर सब कुछ हिन्दुमय है......!!!

यह मूर्तिया संभवतः युद्ध से पहले की सभा की स्तिथि का चित्रण करने के लिए बनाई गई मूर्तिया है, प्रत्येक मूर्ति के चेहरे पर कोई न कोई
भाव है किसी के क्रोधभाव, किसी के प्रसन्नता भाव। शायद उस समय पत्थरो को पिघलाने की टेक्नोलॉजी थी, उसी से इन मूर्तियों का निर्माण हुआ है, बिल्कुल हमारे केमरे की तरह .... जैसे आप जिस स्तिथी में, जिस पोज में खड़े है, मशीनों ने पत्थर के घोल से वैसे की वैसी ही प्रतिमा बना दी
ओर यह जरासंध की सेना की सभा है,

टेराकोटा इसका नाम है, इसपर तो बहस ही क्या, त्रिकुट, त्रिकुटी शिव पार्वती का नाम है ही । यह टेराकोटा उसी त्रिकुट का अपभ्रंश है । जरासंध शिव का बहुत बड़ा भक्त था, अतः उसके अवशेष पर शिवजी की मुहर दिखेगी, स्पष्ठ ही है....!!
यह जरासंध की सभा है, इसके पक्ष में हम तर्क दे इससे पहले हम चीन के वैदिक काल के बारे में कुछ जानकारी आपको दे देना चाहते है....!!
आर्यतरंगिणी ( खण्ड २ , पृष्ठ ८ ) ग्रन्थ में प्रकाशित एक टिप्पणी के अनुसार "रामायण" में चीन को 'कोषकार' (रेशम का कोष निर्माण करने वाले) कीड़ों का प्रदेश कहा गया है ' । ग्रन्थ लेखक हैं ए ० कल्याणरामन् , Asia Publishing House , grafi
Idea ls of the East नामक ग्रन्थ में पृष्ठ ११३ पर ,ग्रन्थ लेखक ओकाकुरा ने लिखा है कि " चीन का धर्म और संस्कृति निःसन्देह हिन्दु स्रोत की है एक समय था कि लोयंग प्रान्त में ही ३००० हिन्दु साधु और दस सहस्त्र भारतीय कुटुम्ब बसे हुए थे जो वैदिक धर्म ,संस्कृति और कला को बराबर चला रहे थे
Journal of the Royal Asiatic Society , १६६५ , के खण्ड ६ के पृष्ठ ५२५ पर प्रोफेसर G. Phillips का लेख है जिसमें वे कहते हैं कि " भारत और चीन का सागर मार्ग से सम्पर्क बहुत प्राचीन है । ईसापूर्व ६८० में नौकाओं से चीन में पहुँचे भारतीयों ने चीन में लंका नाम की बस्ती स्थापित की जो
Kias - Tehoa सागर तट पर बनी थी । वहाँ पहुँचे भारतीयों की नौकाओं के अग्र पर कल्पतरु नाम के ग्रन्थ में दिए वर्णनानुसार विविध पशु या पक्षियों के आकार बने हुए थे ।युक्ति कल्पतरु ' प्राचीन भारतीय शिल्पकला का एक ग्रन्थ है । उसमें वणित विविध आकार की प्राचीनकाल की छोटी
- बड़ी नौकाएं कहीं - कहीं पाई गई हैं....!!

काउण्ट बिजॉनस्टिअर्ना ने लिखे The Theogony of the Hindus ग्रन्थ के पृष्ठ ८५ पर उल्लेख है कि " यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि चीन का धर्म भारतोद्भव है......!!"
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