हम किसान के नाम पर भावुक हो जाते है , अभी गहलोत जी ने क़ानून पास किया है की राजस्थान में कही भी किसान की माल की बिक्री होगी तो मंडी क़ानून लागू होगा मतलब ख़रीदार को मंडी टैक्स ओर सब टैक्स देने पड़ेंगे ओर मंडी का लाइसेन्स ज़रूरी होगा मतलब किसान बिना लाइसेन्स वालो को नहीं बेच पाएगा
इसका विरोध होना चाहिए की किसान टैक्स क्यू दे जबकि वो मंडी में भी नहीं बेच रहा है पर हम विरोध किसका कर रहे है केंद्र सरकार का की उन्होंने ये क्यू हटा दिया ? हरियाणा सरकार ने राजस्थान का बाजरा सरकारी ख़रीद के लिए मना कर दिया तो हम गलिया दे रहे है खट्टर को की ऐसा क्यू किया
जबकि सवाल राजस्थान सरकार से होना चाहिए की वो बाजरा की सरकारी ख़रीद क्यू नहीं कर रही, एक जनाब सवाल पूछ रहे है की छोटा किसान कहा बेचने जाएगा अपनी उपज ,पर वो FPO का नाम नहीं लेते है, इन क़ानून में सरकार ने दस हज़ार FPO बनाने की घोषणा की , FPO के लिए सरकार तीन साल तक
15 लाख तक का अनुदान दे रही है ओर हिसाब किताब के लिए मुनिम की तीन साल तक सैलरी भी सरकार दे रही है पर हम FPO कैसे बनाए ओर अपने छोटे किसानो का कैसा भला करे वो नहीं पर बिल का विरोध करे , MP में मध्य भारत एक FPO संघठन उन से सीखो , विदिशा में एक FPO तो अपने किसानो के लिए FM चलाता है
भाई हम विरोध ये कर रहे है की अम्बानी अड़ानी हमारी फसल ले जाएँगे अरे कैसे ले जाएँगे ये नहीं बता रहा कोई ,भाई अम्बानी अड़ानी आज भी १०० दलालों से मंडी से ख़रीद सकते है बाद में तो लाखों किसानो से ख़रीदना पड़ेगा उस से अच्छा तो सीधा मंडी में सौ दलाल से ख़रीदे,
दूसरे बोलते है की हरियाणा का किसान मुंबई कैसे बेचने जाएगा , सही बात है एक किसान तो नहीं जा सकता पर एक FPO जिसमें 350-1000 किसान हो वो तो जा सकते है या मुंबई वाले को अपनी क़ीमत पर बेच सकते है , कुछ लोग बोलते है की हम तो आज भी गाँव में लोकल व्यापारी को बेच रहे है
हमें क्या फ़ायदा हाँ भाई पर क्या उस व्यापारी के पास मंडी लाइसेन्स है ? है तो उसको सब वो टैक्स ओर खर्चे देने पड़ेंगे वो इतने ही कम में आपकी उपज ख़रीदता है यदि नहीं है तो वो बाद में मंडी में ले जाकर ही बेचता जहां सब खर्चे वो पहले ही जोड़ के आप से उतना कम में लेता है
अब कुछ लोग बोलते है की भाई लोकल में क्या फ़ायदा होगा तो भाई ये बिल ये है की आपके आस पास कोई प्लांट या प्रॉसेसिंग यूनिट है वो अपने प्लांट ओर यूनिट में या स्टॉरिज warehouse में सीधा किसान अपनी उपज बेच सकता है जिस में ना मंडी टैक्स ना दलाली लगेगी ना ट्रैन्स्पर्टेशन खर्चा
हाँ किसान का उतना ही खर्चा लगेगा क्यूँकि ट्रांसपोर्ट तो मंडी में ले जाए या प्लांट में बराबर ही हुआ पर ख़रीददार के 15% तक खर्चे कम होंगे तो वो किसान को अच्छी क़ीमत दे पाएगा
दूसरा आज टेक्नॉलजी का ज़माना है E-मंडी कॉन्सेप्ट शुरू हो गया है अब किसान कहाँ कौन ख़रीददार किस भाव में ख़रीद रहा है वो पता चल जाता है ओर पूरा देश एक ओपन मंडी होने वाला है समय लगेगा पर ये होगा ज़रूर, आज जिस तरह से E कम्पनी में क्या चीज़ किस रेट पर मिल रही है वो एक ऐप पर
पता लग जाता है वैसा ही E मंडी में होना है , अब कुछ लोग बोलते ह स्टॉरिज लिमिट हटा दी सारा माल कुछ लोग ख़रीद लेंगे फिर महँगा बेचेंगे भाई पहली बात क्या सब किसान पैदा करते ही सारी फसल बेच देते है ? ट्रेंड बता रहा ह फसल आने के पहले दो महीनो में 30-35% फसल ही आती है
बाक़ी किसान धीरे २ लाता है ओर कोई भी कम्पनी सारी फसल ले ही नहीं सकती , चना एक करोड़ MT होता है तो क्या एक कम्पनी इतना माल एक साथ ख़रीद के रख सकती है सोया 110-120 लाख MT होता है कौन इतना स्टॉरिज कर सकता है ओर गेहूं तो भूल ही जाओ की एक कम्पनी स्टॉरिज कर सकता है
क्या पूरे देश का चावल एक कम्पनी ख़रीद सकती है ? भाई कैस्टर जिसका उत्पादन सिर्फ़ 15-18 लाख MT है एक कम्पनी ने ऐसा करने की कोशिश की थी वो दिवालिया हो गयी तो कौन इतना रिस्क लेगा
यदि कर भी लिया तो फिर ऐसा तो है नहीं की वो सिर्फ़ अपने देश में ही पैदा होती है बाक़ी लोग ओर सरकार विदेश से आयात कर लेगी तो उनके स्टॉरिज का क्या होगा ? तो प्रैक्टिकल में ऐसा पॉसिबल नहीं है क्यूकी ये डिमांड ओर सप्लाई का खेल है कोई भी एक तरफ़ नहीं घुमा सकता
आज किसान (ज़्यादातर) मंडी में फसल ले जाने से पहले NCDEX ओर MCX के भाव पता करता है फिर लेके जाता है तो किसान को कोई ठग लेगा ये आधारहीन है , दूसरा लोग बोलते है की मंडिया प्राइवट कर रहे है जबकि ये बिल तो ये है की किसान जहां चाहे माल बेचे जो ज़्यादा पैसा दे वो ख़रीदे
ये है , दूसरा स्टॉरिज लिमिट का भाई जब जब लिमिट लगी है किसान को भाव कम मिलता है क्यूँकि ख़रीददार कम हो जाते है ओर डिमांड से ज़्यादा सप्लाई हो जाती है ओर पहले लिमिट राज्यों के अंडर में थी ओर राज्य मनमर्ज़ी से लिमिट लगा देते थे बिना किसी डेटा के
ऐसा UPA सरकार के समय दाल ओर तेल (सरसों) की स्टॉरिज लिमिट लगी थी भाव धड़ाम se नीचे आ गए ओर अगले साल किसान ने सरसों ओर मूँग ओर चने की बिजाई कम कर दी, आज भारत खाद्य तेल ओर दालों का सबसे बड़ा आयातक है तो क्या हम अपने किसानो को अच्छे पैसे नहीं दे सकते
ऐसा नहीं है की अब स्टॉरिज लिमिट नहीं लगेगी हाँ राज्य सरकार नहीं केंद्र सरकार लगाएगी ओर किसी चीज़ के दाम पिछले पाँच साल के average दाम से एक दम 50-100% बढ़ जाए तो वो ऐसा कर सकती है, अब कौन केंद्र सरकार महँगाई बढ़े ऐसा इल्ज़ाम अपने सर पर लेगी ?
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