हमेशा एक डिबेट होती है कि पहाड़ों में डॉक्टर नहीं - टीचर नहीं -engineer नहीं; and many more such problems are discussed और रिज़ल्ट वही ढाक के तीन पात- ऐसा क्यों?

I spoke to so many people abt this issue and in almost every case : reply was common-पैसा खर्च करने का ज़रिया नहीं!
हर कोई प्रफ़ेशनल जो वहाँ रहता है उसकी एक मात्र प्रॉब्लम है कि पैसा जो कमाता है उसका क्या फ़ायदा जब उसको खर्च करने के साधन नहीं- ६ बजे के बाद कुछ करने को नहीं- वो प्रफ़ेशनल जो बना है उसके कुछ सपने होते हैं और वो उनको पूरा करना चाहता है- उसमें ज़िंदगी जीना भी एक है।
भला मानो या बुरा कटु सत्य ये है कि रुमक होते ही पहाड़ भी सो जाते हैं और ऐसे प्रफ़ेशनल के पास करने को कुछ नहीं होता- आप पहाड़ों में entertainment के साधन खोलने की बात कर लें तो तमाम तरह के तर्क दिए जाएँगे कि ऐसा क्यों नहीं होना चाहीये!
आज भी ऋषिकेश से चार धाम जाने वाली किसी भी सड़क पर आपको एक ढंग का QSR रेस्तराँ नहीं मिलेगा - कारण सिम्पल है कि आपने तमाम तरह के रेस्ट्रिक्शन डाल रखे हैं- अगर आप सही में प्रफ़ेशनल को पहाड़ चढ़ाना चाहते हैं तो आपको पहाड़ को ज़िंदगी को थोड़ा रुमुक के पार भी के जाना होगा ।
अभी कुछ दिन पहले चोपता के नज़दीक से निकला; चोपता के शुरू होने से पहले और ख़त्म होने के बाद तक private cars से सड़क पटी पड़ी थी - और सड़क के किनारे ख़ाली पड़ी दारू की बोतलें भी- बार खोलने की पर्मिशन देने की बात कर लीजिए- भर भर के गाली देंगे-सड़क किनारे की बोतलों पर नहीं बोलेंगे!
ये दोगलापन भी कहीं ना कहीं हमारी वर्तमान प्रॉब्लम का एक बहुत बड़ा कारण है- “चिट भी मेरी, पट भी मेरी और अँटा मेरे बाप का”- ये फ़िलासफ़ी पर चलना भी हमारे सामाजिक परिवेश का अहम हिस्सा है- पहाड़ी संस्कृति को maintain करते हुए सोच को बदलना आज की एक आवश्यक ज़रूरत है https://twitter.com/alok_bhatt/status/1338532130335309826
You can follow @alok_bhatt.
Tip: mention @twtextapp on a Twitter thread with the keyword “unroll” to get a link to it.

Latest Threads Unrolled:

By continuing to use the site, you are consenting to the use of cookies as explained in our Cookie Policy to improve your experience.