शुंग वंश के पतन के पूर्व (~75 BCE के पूर्व), #संस्कृतम् क्या कभी भी बोलचाल की भाषा रही थी ? अवश्य रही थी ।
संस्कृत विद्वान और पद्मश्री कपिलदेव द्विवेदी के विचार, प्राचीन प्रमाणों के साथ, इस सूत्र में रख रहा हूँ ।
पढिए, जानिए और अग्रेषित करें ।
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संस्कृत विद्वान और पद्मश्री कपिलदेव द्विवेदी के विचार, प्राचीन प्रमाणों के साथ, इस सूत्र में रख रहा हूँ ।
पढिए, जानिए और अग्रेषित करें ।

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@ निरुक्तकार यास्क (~700 BCE)
• संस्कृत को "भाषा" कहा है और वैदिक संस्कृत से पृथक् माना है (न इति प्रतिषेधार्थीयो भाषायम् - निरुक्त 1.2)
• संस्कृत के प्राच्य और उदीच्य भेदों का उल्लेख + लौकिक संस्कृत से वैदिक शब्दों की निष्पत्ति (भाषिकेभ्यो धातुभ्यो ... निरुक्त 2.2)
@ निरुक्तकार यास्क (~700 BCE)
• संस्कृत को "भाषा" कहा है और वैदिक संस्कृत से पृथक् माना है (न इति प्रतिषेधार्थीयो भाषायम् - निरुक्त 1.2)
• संस्कृत के प्राच्य और उदीच्य भेदों का उल्लेख + लौकिक संस्कृत से वैदिक शब्दों की निष्पत्ति (भाषिकेभ्यो धातुभ्यो ... निरुक्त 2.2)
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@ पाणिनि (~500 BCE)
• वैदिक संस्कृत को छन्द और लोकबोली के लिए भाषा शब्द का प्रयोग और दोनों के बीच का अंतर भी स्पष्ट किया ।
• पूर्वी भाषा के लिए प्राचाम् , उत्तरी के लिए उदीचाम् आदि का प्रयोग ।
@ पाणिनि (~500 BCE)
• वैदिक संस्कृत को छन्द और लोकबोली के लिए भाषा शब्द का प्रयोग और दोनों के बीच का अंतर भी स्पष्ट किया ।
• पूर्वी भाषा के लिए प्राचाम् , उत्तरी के लिए उदीचाम् आदि का प्रयोग ।
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@ कात्यायन (~350 BCE)
• वार्तिकों में स्पष्टता - लोकशब्दों के आधार पर ही संस्कृत व्याकरण की रचना (लोकतोर्थप्रयुक्ते शब्दप्रयोगे शास्त्रेण धर्मनियमः - महा. आह्निक 1)
• सर्वे देशान्तरे (महा. आ. 1) - विभिन्न प्रांत/प्रदेश/देश में प्रयुक्त भाषा से धातुओं/शब्दों का संकलन ।
@ कात्यायन (~350 BCE)
• वार्तिकों में स्पष्टता - लोकशब्दों के आधार पर ही संस्कृत व्याकरण की रचना (लोकतोर्थप्रयुक्ते शब्दप्रयोगे शास्त्रेण धर्मनियमः - महा. आह्निक 1)
• सर्वे देशान्तरे (महा. आ. 1) - विभिन्न प्रांत/प्रदेश/देश में प्रयुक्त भाषा से धातुओं/शब्दों का संकलन ।
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@ पतंजलि (~100 BCE)
• पाणिनि और कात्यायन के उक्त कथनों की पुष्टि उदाहरणों के साथ बताई ।
• सिद्धे शब्दार्थसम्बन्धे - व्याकरण चलता है प्रचलित शब्द और अर्थ के आधार पर ।
• प्रियतद्धिता दाक्षिणात्याः - दक्षिण के विद्वान तद्धितरूपों में अधिक रुचि रखते हैं ।
@ पतंजलि (~100 BCE)
• पाणिनि और कात्यायन के उक्त कथनों की पुष्टि उदाहरणों के साथ बताई ।
• सिद्धे शब्दार्थसम्बन्धे - व्याकरण चलता है प्रचलित शब्द और अर्थ के आधार पर ।
• प्रियतद्धिता दाक्षिणात्याः - दक्षिण के विद्वान तद्धितरूपों में अधिक रुचि रखते हैं ।
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• सर्वे देशान्तरे (सूत्र के चौथे ट्वीट को देखो) और अन्य सूत्रों की व्याख्या में कम्बोज, सौराष्ट्र, मध्यदेश आदि प्रदेशों में प्रयुक्त संस्कृत का उल्लेख ।
• एकैकस्य शब्दस्य बहवोऽपभ्रंशाः - संस्कृत के शुद्ध रूपों का अपभ्रंश में रूपांतरण का उल्लेख ।
• सर्वे देशान्तरे (सूत्र के चौथे ट्वीट को देखो) और अन्य सूत्रों की व्याख्या में कम्बोज, सौराष्ट्र, मध्यदेश आदि प्रदेशों में प्रयुक्त संस्कृत का उल्लेख ।
• एकैकस्य शब्दस्य बहवोऽपभ्रंशाः - संस्कृत के शुद्ध रूपों का अपभ्रंश में रूपांतरण का उल्लेख ।
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• वैयाकरणी (व्याकरण के रचयिता) से अधिक ज्ञान सूत (सारथी) को होने का उल्लेख ।
• सूत शब्द की व्युत्पत्ति सु+उत (अच्छा बुना) न हो कर सुवतेरेव सूतः (√षू प्रेरणे धातु से सूत अर्थात् हाँकनेवाला) ऐसा ज्ञान एक सूत द्वारा मिलने का उल्लेख (महा. 2.4.56)
• वैयाकरणी (व्याकरण के रचयिता) से अधिक ज्ञान सूत (सारथी) को होने का उल्लेख ।
• सूत शब्द की व्युत्पत्ति सु+उत (अच्छा बुना) न हो कर सुवतेरेव सूतः (√षू प्रेरणे धातु से सूत अर्थात् हाँकनेवाला) ऐसा ज्ञान एक सूत द्वारा मिलने का उल्लेख (महा. 2.4.56)
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इन सभी से पूर्व, #रामायणम् में हनुमानजी द्वारा सीताजी के साथ अशोक वाटिका में हुआ वार्तालाप संस्कृत में ही था ।
वाचं चोदाहरिष्यामि मानुषीमिह संस्कृताम् । (सुन्दरकाण्ड 30.17)
इन सभी से पूर्व, #रामायणम् में हनुमानजी द्वारा सीताजी के साथ अशोक वाटिका में हुआ वार्तालाप संस्कृत में ही था ।
वाचं चोदाहरिष्यामि मानुषीमिह संस्कृताम् । (सुन्दरकाण्ड 30.17)
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इल्वल राक्षस ने ब्राह्मण का रूप लेकर संस्कृत में ही ब्राह्मणों को निमंत्रित किया ऐसा उल्लेख भी #रामायणम् से प्राप्त होता है ।
अतः रामायण काल से ही बोलचाल की भाषा, आर्य और अन्य प्रदेशों में भी, संस्कृत रही थी उसमें कोई सन्देह नहीं है ।
इल्वल राक्षस ने ब्राह्मण का रूप लेकर संस्कृत में ही ब्राह्मणों को निमंत्रित किया ऐसा उल्लेख भी #रामायणम् से प्राप्त होता है ।
अतः रामायण काल से ही बोलचाल की भाषा, आर्य और अन्य प्रदेशों में भी, संस्कृत रही थी उसमें कोई सन्देह नहीं है ।