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भाग १

निम्नगानं यथा गंगा देवनामाच्युयतो यथा।
वैष्णावानां यथा शम्भुः पुराणानामिदम तथा ।।

बहने वाली नदियों में जैसे गंगा श्रेष्ट है, देवताओं में अच्युत श्रीकृष्ण श्रेष्ठ हैं, वैष्णवों में भगवान शंकर जी श्रेष्ठ हैं, वैसे ही पुराणों में श्रीमद्भागवद पुराण सबसे श्रेष्ठ है।
पर क्या आप हैं कि भागवद का ज्ञान कहाँ, किसके द्वारा और किसे दिया गया था?!

आज हम जानेंगे #शुकतीर्थ के बारे में जहां सर्व प्रथम शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत का ज्ञान दिया।
परीक्षित जी अर्जुन के पौत्र एवम् अभिमन्यु तथा उत्तरा के पुत्र थे।
महाभारत युद्ध में अभिमन्यू वीरगति को प्राप्त हुए और उनकी पत्नी उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने के लिये अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, परंतु श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ की रक्षा की। गर्भावस्था में ही प्रभु के दर्शन होने का सौभाग्य मात्र परीक्षित जी को ही प्राप्त हुआ है।
महाभारत युद्ध के पश्चात पांडव अपना साम्राज्य परीक्षित को सौंप कर स्वर्ग चले गए एवं श्रीकृष्ण के वैकुण्ठ सिधारने के पश्चात द्वापर युग का अंत हुआ एवं कलि युग का आगमन हुआ।
परीक्षित एक पुण्यात्मा थे उनके रहते कलि का प्रभाव पृथ्वी पर नहीं फैल पा रहा था।
अपने आचार्य कृप की आज्ञा से उन्होंने अश्वमेध यज्ञ करवाया और दिग्विजय करते हुए एक दिन वे सरस्वती के तट पर पहुंचे। उन्हें एक व्यक्ति हाथ में डंडा लिए बैल और गाय को पीटते हुए दिखा। उस बैल के एक पैर था और गाय जीर्ण अवस्था में दिख रही थी।
@Man_Banarasiya
@almightykarthik
(यह बैल साक्षात धर्म एवं गाय धरती थीं। बैल के तीन पाँव नहीं थे; कलियुग में दया, तप और पवित्रता नहीं होगी केवल सत्य होगा।)
राजा ने क्रोधित होकर उस व्यक्ति से पूछा- ‘तू कौन अधर्मी है, जो निरीह गाय और बैल पर अत्याचार कर रहा है। तेरा कृत्य ही ऐसा है कि तुझे मृत्युदंड मिलना चाहिए।’
राजा के क्रोध से कलि डर गए और अपना परिचय देते हुए राजा परीक्षित से प्राणदान एवं शरण मांगी। कलियुग को जीवनदान देने के बाद राजा परीक्षित ने कहा- कलियुग, तू ही पाप, झूठ, चोरी, कपट और दरिद्रता का करण है। तू मेरी शरण में आया तो मैंने तूझे जीवनदान दिया।
@Nidhi7007
अब मेरे राज्य की सीमाओं से दूर निकल जा और कभी लौटकर मत आना। इस पर कलियुग गिड़गिड़ाते हुए विनती करने लगे- महाराज आपका राज्य तो संपूर्ण पृथ्वी पर है। मैं आपकी शरण में आया हूं तो मुझे रहने का स्थान भी आप ही दीजिए। राजा परीक्षित बोले कि आपके अंदर केवल और केवल अवगुण ही हैं,
अगर एक भी गुण बता देंगे तो मैं अवश्य ही आपको मैं शरण दूंगा। कलि ने कहा कि मेरा सबसे बड़ा गुण यही है कि कलियुग में मात्र हरि स्मरण से ही मुक्ति मिल जाएगी। परीक्षित ने विचार कर कहा कि द्युत (जुआखाना), मद्यपान (मदिरालय), परस्त्रीगमन (वैश्यालय), हिंसा (पशुवधशाला)...
..इन चार स्थानों पर असत्य, मद, काम एवं क्रोध रहते हैं इसलिए इन चार स्थानों पर मैं आपको रहने की अनुमति देता हूँ। कलि बोले एक स्थान और मैं मांगता हूँ, कृपा कर के मुझे स्वर्ण में रहने की अनुमति भी प्रदान करें।
@bhagwa_raaj007
@Mahender_Chem
राजा परीक्षित बोले की श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि धातुओं में स्वर्ण मेरा स्वरुप है, इसलिए केवल हिंसा और अनीति से पाए गए स्वर्ण में ही मैं आपको रहने की अनुमति देता हूँ। तत्पश्चात राजा परीक्षित अपने महल लौट गए।

भाग २ कल.. 😊🙏
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