एक डाकू युद्ध में सरहद पर सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ चुका है। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के बाड़मेर जिले के गांव बाखासर निवासी डाकू बलवंत सिंह की, जिसने भारत-पाक युद्ध 1971 में पाकिस्तान को धूल चटाने के साथ ही पाक के सौ से ज्यादा गांवों पर कब्जा भी जमा लिया था।+
1971 में भारत-पाक युद्ध (Indo-Pak war 1971) के दौरान राजस्थान बॉर्डर पर बाड़मेर क्षेत्र की कमान ले. कर्नल भवानी सिंह के पास थी। वे बाखासर इलाके में पहुंचे थे। इस रण भूमि में थार का मरूस्थल होने के कारण रास्तों को खोजना और पाक की तरह आगे बढ़ पाना आसान नहीं था। ऐसे मौके+
पर ले. कर्नल भवानी सिंह ने बाखासर के डकैत बलवंत सिंह (Balwant Singh Bakhasar) को याद किया। उनसे मदद मांगी।
उस समय बलवंत सिंह का भारत-पाक सरहद के दोनों के तरफ के लगभग 100 किलोमीटर के दायरे में खौफ था। डाकू बलवंत सिंह मिट्टी के समंदर में बने हर रास्ते और पंगडडियों से अच्छी+
उस समय बलवंत सिंह का भारत-पाक सरहद के दोनों के तरफ के लगभग 100 किलोमीटर के दायरे में खौफ था। डाकू बलवंत सिंह मिट्टी के समंदर में बने हर रास्ते और पंगडडियों से अच्छी+
तरह वाकिफ थे। वे पाकिस्तान के छोछरो क्षेत्र तक आया-जाया करते थे। भारत पाक के बीच चल रहे युद्ध के दौरान ले. कर्नल भवानी सिंह द्वारा मदद मांगे जाने पर देशभक्ति व वीरता दिखाते हुए डाकू बलवंत सिंह ने हिन्दुस्तान की रक्षा के लिए हथियार उठाए और सेना के साथ-साथ पाकिस्तान की ओर+
कूच कर दिया। भारतीय सेना ने एक बटालियन और 4 जोंगा जीप डाकू बलवंत सिंह को सौंप दी। इस बटालियन के पास टैंक नहीं थे, मगर सामने पाक की टैंक रेजिमेंट थी। बलवंत सिंह व बटालियन ने चतुराई से काम लिया और जोंगा जीप के साइलेंसर निकाल लिए ताकि आवाज सुनने पर पाक सेना को लगे कि+
भारतीय सेना टैंक लेकर आगे बढ़ रही है। पाकिस्तान की सीमा के अंदर घुसने के बाद सेना ने छाछरो की चौकी पर गोलाबारी की। तो सीमा पर लड़ रहे पाकिस्तानी सेना ने समझा की उनकी ही सेना बमबारी करती हुई आगे बड़ रही है। पकिस्तान सेना उस बक्त भौचक रह गयी जब आगे से भवानीसिंह की बटालियन व+
उनके ठीक पीछे डकैत बलवंतसिंह गोलीबारी करने लगे। दोनों तरफ से एकतरफा हमला पाकिस्तान सेना झेल नहीं पायी, और उसने तुरंत भारतीय सेना के आगे घुटने टेकते हुए हथियार डाल दिए। और सुबह होने से पहले पहले लगभग 3 बजे तक दोनों ने पाकिस्तान की छाछारो चौकी व 100 गांवों पर कब्जा जमा लिया।+
यह भारत की पाकिस्तान पर बहुत बड़ी जीत थी. युद्ध की समाप्ति तक सिंध के उन 100 गाँवों पर भारतीय सेना और बलबंत सिंह भाखासर के डाकू साथियों का कब्ज़ा बना रहा.देश के लिए दिए गए इस महत्त्वपूर्ण योगदान के बदले,भारत सरकार ने बलवंतसिंह बाखासर और उनके साथियों के खिलाफ दर्ज सभी मुकदमे वापस+
मुकदमे वापस ले लिए.
इसके अलावा उन्हें राष्ट्रभक्त घोषित कर, दो हथियारों का ऑल इंडिया लाइसेंस भी प्रदान किया. बलबंत सिंह के साथ काम करने वाले सैनिको का कहना था कि- वे युद्ध क्षेत्र में जिस तरह से तुरंत निर्णय लेते थे और खुद आगे बढ़कर नेतृत्व करते थे यह तो+
इसके अलावा उन्हें राष्ट्रभक्त घोषित कर, दो हथियारों का ऑल इंडिया लाइसेंस भी प्रदान किया. बलबंत सिंह के साथ काम करने वाले सैनिको का कहना था कि- वे युद्ध क्षेत्र में जिस तरह से तुरंत निर्णय लेते थे और खुद आगे बढ़कर नेतृत्व करते थे यह तो+
उच्च शिक्षित और प्रशिक्षित सैन्य अफसरों में भी बहुत कम देखने को मिलता है.
लेफ्टीनेंट कर्नल महाराज "सवाई भवानी सिंह" को भी युद्ध में असाधारण वीरता का प्रदर्शन करने के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. इसी बीच भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हो गया और वो जीते हुए इलाके,+
लेफ्टीनेंट कर्नल महाराज "सवाई भवानी सिंह" को भी युद्ध में असाधारण वीरता का प्रदर्शन करने के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. इसी बीच भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हो गया और वो जीते हुए इलाके,+
भारत सरकार ने पाकिस्तान को वापस कर दिए. इस बात से बलबंत सिंह बहुत नाराज हुए थे.
उन्होने भवानी सिंह से इस बात के लिए नाराजगी जताई कि - जब यह सब वापस ही करना था, तो इतने लोगों की जान जोखिम में क्यों डाली ? भवानी सिंह ने बलबंत सिंह को समझाया कि - हम सिपाही है हमारा काम है दुश्मन+
उन्होने भवानी सिंह से इस बात के लिए नाराजगी जताई कि - जब यह सब वापस ही करना था, तो इतने लोगों की जान जोखिम में क्यों डाली ? भवानी सिंह ने बलबंत सिंह को समझाया कि - हम सिपाही है हमारा काम है दुश्मन+
से लड़ना, ऐसे कूटनीतिक फैसलों में हमारा कोई रोल नहीं रहता. लेकिन बलबंत सिंह को इंदिरा गांधी का यह फैसला कभी समझ नहीं आया और वे आजीवन उनसे नफरत करते रहे. वे कहते थे मुझे राजनीति का तो कुछ पता नहीं, लेकिन जब हमने दुश्मन को हरा दिया तो उसकी जमीन वापस क्यों की ?+
उनकी इमेज रोबिंन हुड की तरह थी.गरीबों को सताने वाले सरकारी अधिकारियों के प्रति भी वो बहुत बेरहम थे.उस समय तस्कर, भारतीय सीमा में से गायों को पकड़कर पाकिस्तान ले जाते थे. उन तस्करों को मारकर उन्होंने कई बार गायों की रक्षा की थी.इसी कारण उनपे ह्त्या और डकैती के केस दर्ज किये गए थे