कुछ छूटभैया नेताओ ने पूरे भारत के किसानों का गला घोट दिया अपने फायदे के लिए केवल एक ही रट लगा रखी है तीनों कऴै कानून वापस लो,,,,,
सरकार कह रही है अगर इनमें कुछ कमियां है या कुछ किसानों के लिए गलत है तो हम उसे सही करने के लिए तैयार हैं आप कमियां बताओ--?
लेकिन ये छूटभैया नेता केवल एक ही बात कहते हैं हमें इसके बारे में कुछ नहीं सुनना आप बस तीनों कऴै कानून वापस लो,
पहले उनकी एक डिमांड थी कि सरकार को एमएसपी पर भी एक कानून लागू कर देना चाहिए ताकि एमएसपी से कम रेट पर कोई खरीद करे तो उसके ऊपर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए इस बात का समर्थन
हर राज्य का किसान करता है और यह किसान हित में भी है। लेकिन अब सरकार एमएसपी पर कानून बनाने के लिए राजी हो गई है और कुछ कमियां हो सकता है तीनों कानूनों में रह गई थी उन्हें भी पूरा करने के लिए तैयार है लेकिन ये तैयार नहीं है कहते हैं हमारी केवल एक ही डिमांड है बस तीनों कानून वापस लो
अब जब कोई उन्हें पूछता है कि यह तीनों कानून तो किसानों के हित में है कृषि विशेषज्ञ ने जब बताते हैं तो भी उनका एक ही जवाब आता है हमें हित नहीं चाहिए हमने कहा था क्या हमारा फायदा करो हमें कोई मतलब नहीं है बस तीनों कऴै कानून वापस लो।
जब कोई उन्हें पुछता है सरकार ने आपकी लगभग बात मानली है एम एस पी पर भी, बिजली पर भी, आलू-प्याज पर भी, गारंटी वाली बात भी तो अब क्या झगड़ा रह गया--? सरकार ने आपके मुताबिक किसानों के हित के लिए लगभग बात मानी है। अब क्या समस्या है
जवाब:- हमारी एक ही मांग है काऴै कानून वापिस लो,,,
:-------वो किसानों के भले के लिए है,,,।
:--- हमने कहा था क्या भला करो।
अब एक बात कोई बता सकता है इसके पीछे राज़ क्या है--?
अब कोई इनसे पूछे तुमने कहा था क्या 6000 रूपये सालाना दो-?
फिर क्यों ले रहे हो ।
प्रधानमंत्री फ़सल बिमा भी लागू हैं। तुमने कहा था क्या--?
फिर क्यों ले रहे हो ---?
कहीं ऐसा तो नहीं है कि किसानों के पिछे कोई अपनी स्वार्थ पूर्ति कर रहा हो ---?
कहीं ऐसा तो नहीं कि किसान कहीं सुदृढ़ ना बन जाए --?
कहीं ऐसा तो नहीं कि इसके पीछे किसी का कोई बहुत बड़ा हाथ हो---?
कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी की सोची समझी साजिश हो कि किसान अगर एक बार मजबूत हो गया तो हम नोच नोच कर किस कर खाएंगे---?
मुझे नहीं लगता की मौजूदा सरकार किसानों के बारे में कुछ गलत कर सकती है क्योंकि आज जो कुछ भी किसानों को दिया गया है वह केवल एक यही सरकार है जो हर बार अपने हर बजट में किसानों को हमेशा वरीयता सूची में रख रही है।
और हर बार किसानों को ही गंभीरता में ले रही है।
पहले किसान बहुत ज्यादा कालाबाजारी के शिकार हो रहे थे कुछ हद तक कम हुआ है और आज भी कालाबाजारी के शिकार है। यह मेरी सोच है हो सकता है गलत हो। लेकिन एक बार ठंडे दिमाग से जरूर सोचना मेरे किसान भाइयों में भी एक किसान हूं कहीं अपने ही बारे में कोई साजिश तो नहीं चल रही है।
कहीं हमारा ही हथियार हम पर ही तो नहीं यूज किया जा रहा है।
आज कुछ लोग कह रहे हैं अगर कोई सवाल करें तो कहते हैं कि आप तो किसान विरोधी हो--?
अरे भाई क्यों हम भी तो किसान हैं कहीं ऐसा तो नहीं यह उल्टा हो रहा है कहीं आप तो किसान विरोधी नहीं होगे जो हमारा कुछ सरकार करना चाह रही है
किसानों का और आप उस में अड़चन बन कर आगे दीवार बनकर खड़े हो गए हो--?
बात में कुछ ना कुछ जरूर काला है। पहले कुछ मांगे और थी अब कुछ मांगे और है इसका मतलब कुछ ना कुछ लोचा जरूर है।
पहले हमें एक बार इस बारे में जरूर सोचना चाहिए कि इसने ही सरकार ने ही कुछ ना कुछ किसानों के बारे में जरूर किया है और सोच भी रहिए पिछली सरकारों ने तो कुछ किया ही नहीं है और आज वही लोग विरोध कर रहे हैं तो इसका मतलब कुछ ना कुछ घपला बाजी जरूर है।
दूसरा किसान वार्ता में कहा के ओर कौन से प्रतिनिधि है ये भी देखना होगा
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