विवादित स्थल के चारों तरफ और अयोध्या शहर में यूपी पीएसी के करीब 30 हजार जवान तैनात किए गए थे. इसी दिन बाबरी मस्जिद के गुंबद पर शरद (20 साल) और रामकुमार कोठारी (23 साल) नाम के भाइयों ने केसरिया झंडा फहराया.
किताब 'अयोध्या के चश्मदीद' के अनुसार कोठारी भाइयों के दोस्त राजेश अग्रवाल के अनुसार 22 अक्टूबर की रात शरद और रामकुमार कोठारी कोलकाता (तब कलकत्ता) से चले थे. बनारस आकर रुक गए थे. सरकार ने ट्रेनें और बसें बंद कर रखी थीं
टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक आए. इसके बाद यहां से सड़क का रास्ता भी बंद था. लेकिन दोनों 25 अक्टूबर को अयोध्या की तरफ पैदल निकले पड़े. करीब 200 किलोमीटर पैदल चलने के बाद 30 अक्टूबर को दोनों अयोध्या पहुंचे. 30 अक्टूबर को गुंबद पर चढ़ने वाला पहला आदमी शरद कोठारी ही था.
फिर उसका भाई रामकुमार भी चढ़ा. दोनों ने वहां केसरिया झंडा फहराया था.
किताब 'अयोध्या के चश्मदीद' के अनुसार 30 अक्टूबर को गुंबद पर झंडा लहराने के बाद शरद और रामकुमार 2 नवंबर को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की तरफ जा रहे थे.
जब पुलिस ने गोली चलाई तो दोनों पीछे हटकर लाल कोठी वाली गली के एक घर में छिप गए. लेकिन थोड़ी देर बाद जब वे दोनों बाहर निकले तो पुलिस फायरिंग का शिकार बन गए. दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.
4 नवंबर 1990 को शरद और रामकुमार कोठारी का सरयू के घाट पर अंतिम संस्कार किया गया. उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग उमड़ पड़े थे. दोनों भाइयों के लिए अमर रहे के नारे गूंज रहे थे. शरद और रामकुमार का परिवार पीढ़ियों से कोलकाता में रह रहा है.
मूलतः वे राजस्थान के बीकानेर जिले के रहने वाले थे. दोनों भाइयों के अंतिम संस्कार के करीब एक महीने बाद ही 12 दिसंबर को इनकी बहन की शादी होने वाली थी.

उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम यादव थे , यही कर्म थे उनके जो आज भोगने पड़ रहे हैं !
ऐसे वीर सपूतों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है तब जाकर भव्य राम मंदिर का निर्माण संभव हो सका है ..
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