अगर आपसे पूछा जाए कि देवी सती ने देह त्याग क्यूं किया था तो संभवतः आपका उत्तर होगा कि दक्ष के द्वारा शिव जी के अपमान करने के कारण देवी सती ने क्रोध वश देह त्याग किया था।
पर क्या केवल यही कारण था?!
आइए रामचरितमानस में शिव और सती की कथा का क्या वर्णन है यह जानते हैं।
#रामचरितमानस
पर क्या केवल यही कारण था?!
आइए रामचरितमानस में शिव और सती की कथा का क्या वर्णन है यह जानते हैं।
#रामचरितमानस
रामचरितमानस के बालकांड में वर्णित है कि एक बार शिव जी और माता सती, अगस्त ऋषि के आश्रम में रामकथा सुनने गए। सती को ये बात थोड़ी अजीब लगी कि उनके पति महादेव जो तीनों लोकों में पूजे जाते हैं उनके ये आराध्य कैसे हैं जो मनुष्य रूप में अवतरित हुए हैं और पत्नी वियोग में व्याकुल हैं।
उस समय रावण ने सीता का हरण किया था। श्रीराम सीता की खोज में भटक रहे थे।
सती का ध्यान कथा में नहीं रहा और वह यह सोचतीं रहीं कि जो पत्नी वियोग में एक साधारण मनुष्य की तरह विलाप कर रहे हैं वे महादेव के आराध्य कैसे हो सकते हैं। शिव जी श्रीराम की कथा सुनने के लिए क्यों आए हैं?
सती का ध्यान कथा में नहीं रहा और वह यह सोचतीं रहीं कि जो पत्नी वियोग में एक साधारण मनुष्य की तरह विलाप कर रहे हैं वे महादेव के आराध्य कैसे हो सकते हैं। शिव जी श्रीराम की कथा सुनने के लिए क्यों आए हैं?
कथा समाप्त हुई और शिव-सती वापस कैलाश पर्वत लौटने लगे।
सती ने शिवजी के सामने मन कि बात कही तो शिवजी ने समझाया कि यह सब श्रीराम की लीला है।
भ्रम में मत पड़ो, लेकिन सती नहीं मानीं और शिवजी की बातों से संतुष्ट नहीं हुईं।
सती ने शिवजी के सामने मन कि बात कही तो शिवजी ने समझाया कि यह सब श्रीराम की लीला है।
भ्रम में मत पड़ो, लेकिन सती नहीं मानीं और शिवजी की बातों से संतुष्ट नहीं हुईं।
तब महादेव ने मन में माया का बल जानकर मुस्कुराते हुए कहा -
जौं तुम्हरे मन अति संदेहू। तौ किन जाइ परीछा लेहू।।
तब लगि बैठ अहउं बटछाहीं। जब लगी तुम्ह एहहू मोहि पाहीं।।
जो तुम्हारे मन में बहुत संदेह है तो तुम जाकर परीक्षा क्यों नहीं लेतीं।
जौं तुम्हरे मन अति संदेहू। तौ किन जाइ परीछा लेहू।।
तब लगि बैठ अहउं बटछाहीं। जब लगी तुम्ह एहहू मोहि पाहीं।।
जो तुम्हारे मन में बहुत संदेह है तो तुम जाकर परीक्षा क्यों नहीं लेतीं।
जिस प्रकार भी तुम्हारा यह भ्रम दूर हो सोच समझ कर वही करना। जब तक तुम आती हो तब तक मैं यहीं बढ़ की छांव में बैठा हूं।
शिवजी की आज्ञा पाकर माता सती चलीं और मन में सोचने लगीं कि क्या करूं किस प्रकार परीक्षा लूं।
सती ने माता सीता का रूप धरा और उस मार्ग गईं जहां से श्री राम जा रहे थे।
शिवजी की आज्ञा पाकर माता सती चलीं और मन में सोचने लगीं कि क्या करूं किस प्रकार परीक्षा लूं।
सती ने माता सीता का रूप धरा और उस मार्ग गईं जहां से श्री राम जा रहे थे।
अन्तर्यामी श्री राम सीता का रूप धरे माता सती को पहचान गए और हाथ जोड़ प्रणाम किया और मुस्काते हुए पूछा कि वृषकेतु (शिव) कहां हैं? आप यह वन में अकेली क्यों विचरण कर रहीं हैं। माता सती चकित रह गईं की मैं तो सीता का रूप धारण कर के आयी थी फिर भी श्री राम ने मुझे पहचान लिया।
सती को भारी ग्लानि हुई और वे शिवजी के पास लौट आईं। शिवजी ने हंस कर पूछा कि क्या तुमने प्रभु राम की परीक्षा ले ली?
सती ने रघुवर जी का प्रताप जान कर डर के मारे शिव जी से छिपाव किया और कहा कि मैंने तो परीक्षा नहीं ली, आप ही की तरह उन्हें प्रणाम किया। आपका कहा झूट नहीं हो सकता।
सती ने रघुवर जी का प्रताप जान कर डर के मारे शिव जी से छिपाव किया और कहा कि मैंने तो परीक्षा नहीं ली, आप ही की तरह उन्हें प्रणाम किया। आपका कहा झूट नहीं हो सकता।
त्रिकाल दर्शी शिव ने जान लिया की सती ने किस प्रकार श्रीराम की परीक्षा ली। शिव ने इसे राम की माया मान कर सिर नवाया और कैलाश चले आए। पर शिवजी को बड़ा संताप हुआ कि उनकी पत्नी ने उनसे झूठ कहा और उनके आराध्य की परीक्षा ली।
शिवजी सोचने लगे कि सती पवित्र हैं उनका त्याग भी नहीं कर सकते।
शिवजी सोचने लगे कि सती पवित्र हैं उनका त्याग भी नहीं कर सकते।
पर पत्नी रूप में उन्हें स्वीकार भी नहीं सकते। शिव जी ने मन में यह संकल्प लिया।
रास्ते में आकाशवाणी हुई कि "हे महेश्वर आप जैसी आराध्य भक्ति और कोई नहीं कर सकता, आपका प्रण उत्तम है।"
सती ने पूछा कि "हे नाथ अपने कौन सा प्रण लिया है?" सती के कई बार पूछने पर भी शिव ने कुछ न बताया।
रास्ते में आकाशवाणी हुई कि "हे महेश्वर आप जैसी आराध्य भक्ति और कोई नहीं कर सकता, आपका प्रण उत्तम है।"
सती ने पूछा कि "हे नाथ अपने कौन सा प्रण लिया है?" सती के कई बार पूछने पर भी शिव ने कुछ न बताया।
सती ने अनुमान लगाया कि शिव सर्वज्ञ है, उन्होंने सब सत्य जान लिया और मेरा त्याग कर दिया। वे ग्लानि-वश मन में संताप करने लगीं कि मैंने पति के वचनों को झूठा माना, उनके आराध्य की परीक्षा ली और पति से झूठ बोला
उन्होंने प्रार्थना की कि हे प्रभु अब जीना व्यर्थ है मेरे मरण का उपाय सुझाएं
उन्होंने प्रार्थना की कि हे प्रभु अब जीना व्यर्थ है मेरे मरण का उपाय सुझाएं
सत्तासी हज़ार वर्ष तक शिव जी समाधि से उठे। सती ने उन्हें प्रणाम किया और शिव ने उन्हें अपने अपने सामने का आसान दिया। शिव उन्हें अपने प्रभु की लीलाओं की कथाएं सुनने लगे। उस है समय ब्रह्मा जी ने दक्ष को प्रजापति बनाया जिस कारण दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया।
सती अपने पिता के लिए प्रसन्न थीं। सभी देवी देवताओं को विमान में जाता देख उन्होंने में भी यज्ञ में जाने को इच्छा हुई। यदि महादेवजी मुझे आज्ञा दें, तो इसी बहाने कुछ दिन पिता के घर जाकर रहूँ। उनके हृदय में पति द्वारा त्यागी जाने का भारी दुःख था, पर अपना अपराध समझकर वे कुछ कहती न थीं
आखिर सतीजी भय, संकोच और प्रेमरस में सनी हुई मनोहर वाणी से बोलीं- हे प्रभो! यदि आपकी आज्ञा हो तो क्या मैं अपने पिता के घर इस उत्सव में जाऊं?
शिवजी ने समझने का प्रयत्न किया कि दक्ष ने अपनी सब लड़कियों को बुलाया है, किन्तु हमारे बैर के कारण उन्होंने तुमको भी भुला दिया।
शिवजी ने समझने का प्रयत्न किया कि दक्ष ने अपनी सब लड़कियों को बुलाया है, किन्तु हमारे बैर के कारण उन्होंने तुमको भी भुला दिया।
हे भवानी! जो तुम बिना बुलाए जाओगी तो न शील-स्नेह ही रहेगा और न मान-मर्यादा ही रहेगी॥
शिवजी ने बहुत प्रकार से कहकर देख लिया, किन्तु जब सती किसी प्रकार भी नहीं रुकीं, तब त्रिपुरारि महादेवजी ने अपने मुख्य गणों को साथ देकर उनको बिदा कर दिया॥
शिवजी ने बहुत प्रकार से कहकर देख लिया, किन्तु जब सती किसी प्रकार भी नहीं रुकीं, तब त्रिपुरारि महादेवजी ने अपने मुख्य गणों को साथ देकर उनको बिदा कर दिया॥
सती जब पिता के घर पहुंचीं तो दक्ष के डर के कारण किसी ने उनकी आवभगत नहीं की, केवल एक माता भले ही आदर से मिली।
सती ने देखा कि सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया परन्तु भोलेनाथ को यज्ञ में आसान नहीं दिया गया।
पति का ऐसा अपमान देख सती क्रोधित हो उठीं और बोलीं -
सती ने देखा कि सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया परन्तु भोलेनाथ को यज्ञ में आसान नहीं दिया गया।
पति का ऐसा अपमान देख सती क्रोधित हो उठीं और बोलीं -
हे सभासदों और सब मुनीश्वरो! जिन लोगों ने यहाँ शिवजी की निंदा की या सुनी है, उन सबको उसका फल तुरंत ही मिलेगा और मेरे पिता दक्ष भी भलीभाँति पछताएँगे। हाँ संत, शिवजी और श्री विष्णु भगवान की निंदा सुनी जाए, तो ऐसी मर्यादा है कि उस निंदा करने वाले की जीभ काट लें या वहां से चले जाएं।
त्रिपुर दैत्य को मारने वाले भगवान महेश्वर सम्पूर्ण जगत की आत्मा हैं, वे जगत्पिता और सबका हित करने वाले हैं। मेरा मंदबुद्धि पिता उनकी निंदा करता है और मेरा यह शरीर दक्ष ही के वीर्य से उत्पन्न है॥
इसलिए अपने पति को हृदय में धारण करके मैं इस शरीर को तुरंत ही त्याग दूँगी।
इसलिए अपने पति को हृदय में धारण करके मैं इस शरीर को तुरंत ही त्याग दूँगी।
सती के शरीर से योगाग्नि निकली। और उस योगाग्नि में जलकर सती जी भस्म हो गई है। सती ने मरते समय भगवान हरि से यह वर माँगा कि मेरा जन्म-जन्म में शिवजी के चरणों में अनुराग रहे। इसी कारण उन्होंने हिमाचल के घर जाकर पार्वती के शरीर से जन्म लिया।
@almightykarthik
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Source: Ramcharitmanas, Geeta Press, Gorakhpur.
: DM for credit.
