नए कृषि क़ानून में क्या ग़लत है? क्या विरोध केवल राजनीतिक है?

सरकार कहती है कि इनसे वो बेड़ियाँ टूट जायेंगी, जिन्होंने खेती को जकड़ रखा है। नए बाज़ार बनेंगे, बड़े स्केल पर तकनीक का लाभ मिलेगा, बड़ी पूँजी कृषि सेक्टर में उपलब्ध हो सकेगी।

लेकिन क्या हक़ीक़त सीधे सीधे यही है? 1/n
ये क़ानून खेती को corporatise करने का रास्ता खोलते हैं।

आप कहेंगे कि इसमें हर्ज क्या है? किसान की केवल ज़मीन और लेबर होगी।

फिर बीज corporate के, खाद corporate की, खर्च corporate का, risk corporate का, वो ही फसल सीधे ख़रीद भी लेंगे और पैसा किसान को मिल जाएगा।
बुरा क्या है? 2/n
पर किसान क्यों डरता है? क्योंकि उसके अनुभव इतने अच्छे नहीं हैं।

जैसे गुजरात में पेप्सिको कम्पनी ने आलू उत्पादकों से कॉंट्रैक्ट फ़ार्मिंग का करार किया था।
उनमें चार ऐसे आलू उत्पादक हुए, जिनकी फसल पेप्सिको ख़राब ठहरा कर नहीं उठायी।
ऐसा होता है, लेकिन कहानी इसके बाद शुरू हुई। 3/n
पेप्सिको ने जो फसल नहीं ली, किसानों ने वो बाज़ार में बेच दी। आम तौर पर इसमें कोई हर्ज नहीं होना चाहिए।

लेकिन पेप्सिको ने इसके लिए चारों को कोर्ट में घसीट लिया और एक एक करोड़ रुपए हर्जाने का दावा कर दिया।

ग़नीमत थी कि चुनाव नज़दीक थे और राजनीतिक दबाव में केस वापिस हो गया। 4/n
एक और उदाहरण है।

गन्ना किसानों और चीनी मिलों के बीच कॉंट्रैक्ट ही होता है।

दोनों में बाक़ायदा करार होता है कि किसान तय रटे पर और तय तारीख़ पर फसल बेचेगा। चीनी मिल उसे 14 दिन में भुगतान कर देगी, नहीं तो 15% ब्याज देगी। अब इस कॉंट्रैक्ट का कितना पालन होता है, सब जानते हैं।
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क्या किसानों को तय तारीख़ पर पेमेंट मिलती है? क्या किसानों को ब्याज मिल जाता है?

और ताक़त किसके पास है? किसानों के के पास या चीनी मिलों के पास? जवाब सब किसान जानते हैं।

उस पर इन नए क़ानूनों में किसानों के लिए कोर्ट का रास्ता भी मुश्किल कर दिया गया है।
कैसे?...
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इन नए क़ानूनों के बाद अब अगर निजी कम्पनियों को उपज बेचने में किसान के साथ कोई नाइंसाफ़ी हुई तो वो किसी कोर्ट में सीधे नहीं जा सकेगा।

कृषि ट्रेडिंग का कोई भी विवाद अब केवल SDM या बड़ा अधिकारी ही निपटाएगा।
Arbitration के नाम पर किसानों को कोर्ट का अधिकार छिनता नज़र आ रहा है।7/n
उनके सवाल हैं कि अब कहाँ का SDM फ़ैसला लेगा? जहाँ किसान की उपज पैदा हुई है वहाँ या जहाँ से ख़रीदी हुई है वहाँ?

आजकल कहीं भी बैठ कर ख़रीदी हो सकती है।वो जगह खेत से सैकड़ों किमी दूर हो सकती है, दूसरे राज्यों में भी हो सकती है।क्या किसान को arbitration के लिए वहाँ जाना होगा? 8/n
और SDM अगर ज़रा सा भी कमजोर हुआ या corrupt हुआ, तो उसे कौन प्रभावित कर सकेगा? किसान या निजी कम्पनी?

Arbitration कोई ग़लत तरीक़ा नहीं है, दुनिया में अब प्रचलित है। लेकिन arbitration बराबर की ताक़त वालों के लिए है।

किसान और कम्पनियों के बीच ताक़त का रिश्ता इक तरफ़ा है। 9/n
सरकार कहती है कि दुनिया तो देखो, तरक़्क़ी होने दो।

लेकिन दुनिया में सेफ़्टी नेट भी तो हैं।
जैसे अमरीका में corporate खेती है। लेकिन वहाँ की सरकार फिर भी किसानों के सपोर्ट के लिए क़रीब 20 billion डॉलर की सब्सिडी देती है।क़ीमतों के उतार चढ़ाव में हस्तक्षेप करती है... 10/n
...बीमा, मार्केटिंग, export में सब्सिडी देती है। भारत में क्या ऐसी कोई योजना है?

अपने यहाँ तो फसल बीमा तक corporate मुनाफ़े का सौदा बना चुका है।

और अब MSP पर भी चुप है। किसान सड़कों पर माँग कर रहा है कि MSP पर लिखित वादा करो, पर सरकार केवल ज़ुबानी बातें कर रही है।
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ये APMC में सुधार तो सिर्फ़ एक पहलू है। असली कहानी तो WTO से भी जुड़ी हैं।UPA के food security act बाद से ही WTO का दबाव डाल है कि MSP ख़त्म हो।

farm subsidy को WTO ने red, amber और green की category में बाँटा है और उसका दबाव है कि red कैटेगरी की सभी सब्सिडी समाप्त हो।
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2015 में मोदी सरकार ने शान्ता कुमार कमेटी बनायी थी, जो FCI के रोल को ख़त्म करना चाहती थी व MSP के कॉन्सेप्ट को समाप्त करना चाहती थी।

APMC में बहुत सी कमियाँ हों,लेकिन क़ीमतों को नियमित करने में उसका दबाव होता है। APMC के बाहर क़ीमतों पर न सरकार का कंट्रोल होगा न किसानों का 13/n
2010 में committee on state agriculture ministers on deregulation of APMC ने कहा था कि APMC को deregulate करने से किसानों को फ़ायदा नहीं हुआ था, बल्कि किसानों के हित के सभी safeguard ख़त्म हो गए थे। 2006 में बिहार में APMC act समाप्त कर दिया था, पर उसके नतीजे अच्छा नहीं रहे।14/n
यही नहीं, 2018-19 में standing committee on agriculture ने कहा था कि APMC को समाप्त करने से किसानों का हित नहीं होगा। कोई तो कारण है कि गुजरात में private APMC की अनुमित दे दो गयी थी, लेकिन आज तक एक भी सफल निजी मंडी का कोई उदाहरण वहाँ भी नहीं है।
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