एक बार फिर कह रहा हु बिल किसान के फ़ायदे के लिए है, किसान के नाम पर राजनीति हो रही है जो आंदोलन कर रहे है उन्मे से 99% ने तो बिल पढ़ा भी नहीं होगा , सरकार को चाहिए की सबको उनकी सरल भाषा में बिल की एक एक कॉपी दे से ओर साथ में ये लोग जिस राज्य से आए है उस राज्य पुराने APMC ऐक्ट की
कॉपी भी दे दे, मंडी में कब ओर कहा कितना खर्चा लगता है उसकी कॉपी भी दे साथ में पिछले बीस साल में सरकार ने कब कितनी ख़रीद की वो भी दे , केंद्र सरकार बिल को समझा नहीं पा रही है ये ही इसकी विफलता है APMC ऐक्ट में चाहे पुराना हो या नया हो कही भी MSP का ज़िक्र नहीं है तो
नए में MSP हटाने की बात का सवाल ही नहीं उठ रहा फिर ये MSP कौन लेके आया बीच में ओर इसी के नाम पर किसान सबसे ज़्यादा कन्फ़्यूज़न में है ओर मौक़ा मिल रहा है छोटे ओर विरोधी नेताओ को ओर वो बिल को अपने हिसाब से किसानो को इक्स्प्लेन कर रहे है गाँव गाँव जाकर ओर केंद्र सरकार
इसको काउंटर नहीं कर पा रही है भाजपा के लोकल नेता को भी नहीं पता होगा की नए बिल क्या है क्यूँकि वो भी बिल नहीं पढ़ रहे हो जनता को इस प्रॉपगेंडा से बचा पा रहे है नुक़सान किसान का ही होगा ओर नए नेता पैदा हो रहे ह बिना धरातल पर मेहनत किए
अब आपको बताता हु की पंजाब में किसान क्यू ज़्यादा सड़क पर है तो हमें पहले मंडी की कार्य समझना होगा पंजाब ओर हरियाणा में मंडी में 4 तरह के लोग होते है है कच्ची आढ़तिए पक्के आढ़तिए सरकारी अधिकारी ओर कमिशन एजेंट , बाक़ी राज्य में कच्ची आढ़तिए के अलावा ३ बाक़ी तीन लोग होते ह
कच्ची आढ़तिए के भी लाइसेन्स होते है ओर पक्की के भी लाइसेन्स होते है जो मंडी समिति यानी सरकार जारी करती है ओर पिछले ना जाने कितने साल से कच्ची आढ़त के तो लाइसेन्स भी नए नहीं बन रहे मतलब जो सालो से काम कर रहे है वो ही कर रहे है
कच्ची आढ़त वाले का काम होता है किसान के फसल की बोली करवाना ओर किसान को पेमेंट देना मतलब किसान अपनी फसल मंडी में लेके जाएगा तो जो कच्चा आढ़तिया है वो बिकवाने में मदद करेगा ओर उसके बदले में ख़रीददार 2-3% कच्ची आढ़त देगा कच्चे आढ़तिए को ओर ख़रीदार इसको अपनी कोस्ट में जोड़ कर
रखता है तो सीधा सी बात है वो अपनी जेब से देगा नहीं वो उतने में ही किसान की फसल कम ख़रीदेगा , इसके अलावा कच्ची आढ़त वाले किसान को ज़रूरत के समय पैसा देते है उसके बदले में 19-24% तक ब्याज लेते है ओर जब किसान फसल बेचेंगे आता है तो सबसे पहले वो अपना पैसा ब्याज के साथ काट कर किसान को
दे देते है मतलब ये हुआ की कच्ची आढ़त वाला किसान के 18-24% पैसा तो ब्याज में ले लेता है ओर साथ में 2-3% कच्ची आढ़त में तो किसान का 21-27% पैसा इनही कच्ची आढ़त वालो के पास जाता है , इसके साथ एक ओर फ़ैक्ट जुड़ा हुआ है की ये कच्ची वाले किसान को नगद बहुत कम पैसा देते है
मतलब मान लो किसान को खाद बीज के लिए पैसा चाहिए तो वो एक प्राची बना के दे देता है की उस दुकान से ले लेना ओर वो उसी दिन इस पैसे का ब्याज शुरू कर देता है ओर वो खाद बीज़ वाला भी उसी का कोई भाई या रिश्तेदार होता है ऐसा की तेल चाहिए तो पेट्रोल पम्प की पर्ची ऐसे ही कपड़ा वाले की पर्ची
या कोई ओर चाहिए तो उस दुकान की प्राची बना के उसको जो चीज़ चाहिए वो दिला देता है, a.b. नए क़ानून में उनको डर है की किसान बाहर फसल बेच देगा तो उसका पैसा कहाँ से आएगा जबकि पुराने क़ानून में पता है की वो किसान फसल बेचने तो उसी की दुकान पर आएगा तो पहले वो अपना पैसा कटेगा
तो इसके पैसा डूबने का ख़तरा नहीं है साथ में उसके दस भाई चाचा ताऊ को रोज़गार मिला हुआ है काम चल रहा है , अब आते है पक्की वालो पर वो पक्की वालो असल में ट्रेडर यानी व्यापारी होते है जिनका काम होता है एक जगह से माल ख़रीदना थोड़े दिन रखना या उसी समय मुनाफ़े में आगे बेच देना
इसका मतलब अभी तक असली ख़रीददार नहीं आए वो असल में चाहे मिल वाला हो या प्लांट वाला या कोई exporter वो इनही पक्की वालो से माल ख़रीदता है ओर ये लगभग 2% पक्की आढ़त लगा कर बेचते है अब आते है मंडी समिति मतलब सरकार पर अब इनका रोल होता है की सब कुछ smooth ट्रैंज़ैक्शन हो तो वो
राज्य सरकार मंडी टैक्स लगाती है जो 2-4% तक होता है यानी किसान के माल से सरकार ने भी अपनी जेब भर ली , ऐन रह गया चोथा ओर सबसे ज़्यादा ओर इम्पोर्टेंट पार्ट ओर मंडी में वो है कमिशन एजेंट ओर आप किसी भी बड़ी मंडी में जाए सबसे ज़्यादा इनही की दुकान दिखेगी इनका काम होता है जो
मंडी में पक्की वाले ओर मिल वाले या जो असल ख़रीदार है उसके बीच सौदा पक्का करवाना ओर वो इसकी एवज़ में दोनो तरफ़ से .5-1% तक कमिशन लेता है अब आप सोचो जो असल ख़रीददार है उसको जो माल जिस रेट में मिला ओर किसान को जो मिला उस में कितना अंतर आ गया अब नए क़ानून में सरकार ने
यही किया है की जो असली ख़रीददार है वो सीधा किसान से ख़रीद सकता है तो आप अंदाज़ा लगा लो की कितने लोगों की जेब पर असर पड़ रहा है , तो सवाल ये है की क्या सरकार मंडी ख़त्म कर रही है मेरा जवाब है नहीं क्यूँकि नयी व्यवस्था एक दिन में नहीं बदलेगी अभी भी किसान मंडी में ही
जाएगा पर किसान को एक विकल्प ओर मिल गया है की वो बाहर भी बेच सकता है ओर ऐन असली ख़रीददार को मंडी लाइसेन्स की ज़रूरत नहीं होगी सिर्फ़ PAN नम्बर से फसल ख़रीद सकता है ओर वो किसान को हाथोंहाथ या अधिकतम ३ दिन जो दोनो के बीच डिसाइड हुआ है उस में पेमेंट करनी होगी ओर इसकी रसीद देनी होगी
ओर वो पेमेंट ना करे तो किसान सीधा SDM के पास साधारण काग़ज़ पर शिकायत कर सकता है ओर SDM १४ दिन में फ़ैसला देगा ओर ख़रीद दार से पेमेंट के साथ साथ पेनल्टी लगाएगा बाक़ी किसान के पास मंडी का ऑप्शन तो है ही अब सवाल ये है की ये सब में राज्य सरकार क्या अच्छा कर सकती थी
तो जवाब ये है की सरकार मंडी को हर किसी के लिए खोले ओर मंडी टैक्स ख़त्म कर दे तो किसान का भला होगा किसान भी बचेगा ज़्यादा ख़रीददार आएँगे तो कॉम्पटिशन होगा किसान को अच्छा मूल्य मिलेगा जैसा कि MP ओर UP सरकार ने किया
इसी बात को मै ३ महीने से समझा रहा हु विडीओ से
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