भूटान में 90 के दशक तक हिन्दू जनसंख्या लगभग 30% तक थी। वहां के ज्यादातर हिन्दू लोत्सम्पा जनजाति के थे। वे शिव , विष्णु और शक्ति उपासक थे। 1985 में वहां नागरिकता संशोधन नियम लागू हुआ और 90 में तत्कालीन राजा 'जिग्मे शिंगये वांगचुक' ने उसे बलपूर्वक लागू करने का आदेश दिया।
बस इसी के बाद से हिन्दुओ का नरसंहार चालू हो गया। उग्र बुद्ध लोग हिंदुओ से उनके पूजा पद्धति को लेके घृणा करते थे और उन्हें नेपाली वर्णशंकर का मानते है।राजा के आदेश के बाद उन्हें खुली छूट मिल गयी।भूटान रॉयल आर्मी में लगभग सभी बुद्ध अनुयायी थे , ...
जिन्होंने स्थानीय बुद्धों के सहयोग से भूटान के दक्षिणी प्रान्त में जो कि हिन्दू बहुल क्षेत्र था , वहां नरसंहार चालू किया। सारी घटनाएं मार्च 1990 के बाद वृहद रूप में चालू हो गयी। लगातार 8 से 9 महीनों तक हिंदुओ का नरसंहार जारी रहा। दिसंबर महीने में UN के हस्तक्षेप के बाद...
हिन्दू नरसंहार में कमी आयी। परंतु तब तक लगभग 10 हज़ार से ज्यादा हिन्दू पलायन कर चुके थे। 1992 में मानव अधिकार संगठन द्वारा शरणार्थी कैम्प का निर्माण कराया गया और हज़ारों ने शरणार्थी कैम्प में शरण लेकर अपनी रक्षा की।
स्थानीय हिंदुओ के अनुसार तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जी ने अपरोक्ष रूप से हिंदुओ की बहुत सहायता की थी।
भूटान में इस नरसंहार के बाद से आज तक कोई नए हिन्दू मंदिर का निर्माण नही हुआ और अनाधिकृत रूप से इसके निर्माण पर भी पाबंदी है।
इस नरसंहार में मृतकों की संख्या का सटीक विवरण कही नही मिलता है , परंतु नेपाल स्थित शरणार्थी कैम्प के हिंदुओं के अनुसार लगभग 6-7 हज़ार हिंदुओ को मौत के घाट उतार दिया गया था।
भूटान के फुंसोलिंग में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के कार्य के लिए , मैं , 6 महीने L&T में कार्यरत था। सभी बातें स्थानीय हिंदुओ के द्वारा बताई गई और कुछ विवरण विकिपीडिया तथा कुछ लेखों से संग्रहित है। @brawling_virago
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