#गुलामी_की_खूँटिया

एक अंधेरी रात में एक काफिला एक रेगिस्तानी सराय में जाकर ठहरा। उस काफिले के पास सौ ऊंट थे। उन्होंने खूंटियां गाड़कर ऊंट बांधे, किंतु अंत में पाया कि एक ऊंट अनबंधा रह गया है। उनकी एक खूंटी और रस्सी कहीं खो गई थी। अब आधी रात वे कहां खूंटी-रस्सी लेने
जाएं!
काफिले के सरदार ने सराय मालिक को उठाया - "बड़ी कृपा होगी यदि एक खूंटी और रस्सी हमें मिल जाती। 99 ऊंट बंध गए, एक रह गया–अंधेरी रात है, वह कहीं भटक सकता है।"

बूढ़ा बोला- मेरे पास न तो रस्सी है, और न खूंटी, किंतु 1 युक्ति है। जाओ और खूंटी गाड़ने का नाटक करो और ऊंट
को कह दो–सो जाए।

सरदार बोला- अरे, कैसा पागलपन है??

बूढ़ा बोला-" बड़े नासमझ हो, ऐसी खूंटियां भी गाड़ी जा सकती हैं जो न हों, और ऐसी रस्सियां भी बांधी जा सकती हैं जिनका कोई अस्तित्व न हो। अंधेरी रात है, आदमी धोखा खा जाता है, ये तो एक ऊंट है?"

विश्वास तो नहीं था किंतु
विवशता थी. उन्होंने गड्ढा खोदा, खूंटी ठोकी–जो नहीं थी। सिर्फ आवाज हुई ठोकने की, ऊंट बैठ गया। खूंटी ठोकी जा रही थी। रोज-रोज रात उसकी खूंटी ठुकती थी, वह बैठ गया। उसके गले में उन्होंने हाथ डाला, रस्सी बांधी। रस्सी खूंटी से बांध दी गई–रस्सी, जो नहीं थी। ऊंट सो गया।
वे बड़े
हैरान हुए! एक बड़ी अदभुत बात उनके हाथ लग गई। सो गए। सुबह उठकर उन्होंने निन्यानबें ऊंटों की रस्सियां निकालीं, खूंटियां निकालीं–वे ऊंट खड़े हो गए।किंतु सौवां ऊंट बैठा रहा। उसको धक्के दिए, पर वह नहीं उठा।
फिर बूढ़े से पूछा गया. बूढ़ा बोला "ऊंट हिंदुओं की भांति बड़ा धार्मिक है।
जाओ पहले खूंटी निकालो। रस्सी खोलो।" सरदार बोला- "लेकिन रस्सी हो तब ना खोलूँ।
बूढ़ा बोला - जैसा बांधने का नाटक किया था, वैसे ही खोलने का करो"

ऐसा ही किया गया और ऊंट खड़ा हो गया। सरदार ने उस बूढ़े को धन्यवाद दिया - "बड़े अदभुत हैं आप, ऊंटों के बाबत आपकी जानकारी बहुत है।"
बूढ़ा
जाओ पहले खूंटी निकालो। रस्सी खोलो।" सरदार बोला- "लेकिन रस्सी हो तब ना खोलूँ।
बूढ़ा बोला - जैसा बांधने का नाटक किया था, वैसे ही खोलने का करो"

ऐसा ही किया गया और ऊंट खड़ा हो गया। सरदार ने उस बूढ़े को धन्यवाद दिया - "बड़े अदभुत हैं आप, ऊंटों के बाबत आपकी जानकारी बहुत है।"
बूढ़ा
बोला," यह सूत्र ऊंटों की जानकारी से नहीं, हिंदुओं की जानकारी से निकला है।"

वह हिंदू, जिसको अंग्रेजों ने जाने से पहले कांग्रेसी खूंटे से बांध दिया था, आज भी वहीं बंधा है. वो आज भी गोरी चमड़ी और नेहरु खानदान (नकली गाँधी खानदान) की गुलामी कर रहा है। उसे बार बार बताने पर कि "तू
स्वतंत्र हो गया है", खड़ा नहीं हो रहा। सहस्र वर्षों की गुलामी की रस्सी गले में लटका कर घूम रहा है। जो उसे धक्के देकर उठाना चाह रहा है, उसे शत्रु मान रहा है। और फिर से गुलाम होना चाह रहा है !🙏

साभार - @Sanaya_Speaks
@AnjaliS43804884 @bihari_girl_ @bwali_guru @ekhivillain
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