1956 में बाबा साहब अम्बेडकर जब #बुद्ध_धर्म की दीक्षा ले रहे थे
तो उन्होंने बोला था कि वो हिन्दू धर्म इसलिए छोड़ रहे है क्योंकि इस धर्म मे भेदभाव है तथा छुआछूत भी है ।

उन्होंने ये भी कहा था कि वो ईसाई या मुस्लिम धर्म इसलिए नही अपना रहे है
क्योकि ईसाई और मुस्लिम धर्म मे भी
फिरका परस्ती है
तथा ऊंच नींच और छुआछूत है
जैसे मुस्लिम में पसमांदा,अशरफ़, अजलाफ़ आदि
और ईसाइयों में भिन्न कैथोलिक और प्रॉस्टेटेन्ट ।

आगे बाबा साहब बोलते है कि वो बुद्ध धर्म इसलिए अपना रहे है
क्योकि बुद्ध धर्म मे न कोई भेदभाव है
न कोई ऊंच नींच है
न कोई आडम्बर और न कोई
छुआछूत ।

अब प्रश्न ये उठता है कि बाबा साहब जिस बुद्ध धर्म को अपना रहे थे
क्या उन्होंने उस धर्म के बारे में पढ़ा और धरातल पर देखा था ?
और अगर बाकई पढा और समझा था
तो उन्हें बौद्ध धर्म के भेदभाव ,ऊंच नींच और आडम्बर क्यो नजर न आये ??
जिस श्रीलंका से उन्होंने दीक्षा लेने के लिए मोंक बुलाये थे
क्या उस श्रीलंका में ही उन्हें बौद्ध धर्म मे चल रही ऊंच-नींच,भेदभाव ,आडम्बर और छुआछूत नही नजर आयी थी ?
या जानबूझकर ये सारी बाते अनदेखी की गई थी
किसी बिशेष एजेंडे के तहत ?

आइये उस बौद्ध धर्म के बारे में सच जानते है
जिस सच को उस दौर में छुपाया गया था ::

हिन्दू धर्म मे तो सिर्फ 4 वर्ण है
जबकि बौद्ध धर्म मे तो शाखाएं ही चार से ज्यादा होगी
जैसे महायान ,हीनयान,थेरवाद,बज्रयान आदि
जिसमे महायान वाले हीनयान वालो को निम्न मानते है
तथा बुद्ध की शिक्षाओं को लेकर ही इनमे मतभेद है
तथा बज्रयान तो
इन सबसे अलग ही है पूर्णतः

अब बात करते है कि बौद्ध धर्म मे जातिया नही है
तो ये भी पूर्णतः गलत है
अगर आप बौद्ध देशों के बारे में गूगल पर सर्च करोगे तो न जाने कितनी जातिया नजर आएंगी
जैसे :नोनो,बोडो,थलपा आदि
साथ ही सोशल क्लास सिस्टम भी मौजूद है
लेकिन हम इन सभी जातियों का जिक्र नही करेंगे
हम केवल कुछ एक उन्ही जातियों का अध्ययन करेंगे
जो बौद्ध देशों में छुआछूत से ग्रसित है
कुछ उदाहरण इस तरह से है ,

1) burakumin (जापान)
2) ragyapa (तिब्बत)
3) nangzan (तिब्बत)
4) nobi (कोरिया)
5) baekjeong (कोरिया)
6) cheonmin (कोरिया)
7) rodi or rodiya ( श्रीलंका)
8) bedo people ( लद्दाख तथा अरुणाचल प्रदेश)

ये सिर्फ एक एक दो दो जातिया ली है मैंने
वो भी बौद्धिस्ट देशों से
और भी न जाने कितनी अछूत जातिया होंगी इन देशों में ।
श्रीलंका में जातिगत ऊंच नींच तथा छुआछूत के बारे में श्रीलंका
सरकार के ही दस्ताबेज पूरी जानकारी प्रदान कर रहे है
साथ ही यूनाइटेड नेशन के दस्ताबेज भी
और श्रीलंका में ये समस्या 1951 में भी थी
वो भी चरम पर ।
अब 1951 ,1956 से तो पहले ही आता है ।

अब प्रश्न ये उठता है कि आदरणीय बाबा साहब अम्बेडकर को अलग अलग बौद्धिस्ट देशों में
ये
ये जातिया तथा जातिगत ऊंच-नींच और छुआछूत नजर नही आयी थी ?

क्या उन्हें तिब्बत,चीन ,भूटान आदि बौद्धिस्ट देशों में बज्रयानियो द्वारा किये जाने वाले तंत्र ,मंत्र ,टोटके आदि
आडम्बर नही लगे थे ?
या बजरयानियो के टोटके वैज्ञानिक थे ?
क्या उन्हें भूटान का पुनाखा शहर नजर नही आया था
जिसमे हर घर के बाहर टोटके नजर आते है ।

ऐसा तो हुआ न होगा कि बाबा साहब ने ये सब पढ़ा और देखा न होगा
क्योकी बाबा साहब एक पढ़े लिखे और स्कॉलर व्यक्ति थे ।

बाबा साहब ने इस्लाम ,ईसाइयत और हिन्दुओ के बारे में सब पढ़ा
और अपने अनुयायियों को भी बताया

लेकिन जिस धर्म को स्वयम अपनाया
तथा अपने अनुयायियों को भी अपनाने के लिए बोला
क्या उस धर्म के बारे में बाबा साहब में पढ़ा न था ?

अगर पढ़ा और देखा था सब
तो अपने अनुयायियों को
जो कि मासूम थे
जो इन पर भरोसा करते थे
उन्हें ये सब बताया क्यो नही ??

मैं तो ये सब देखकर और पढ़कर बड़ी भ्रमित हु
कि बाबा साहब ने ये सब देखा और पढ़ा था या नही
या देखकर अनदेखा किया ....
नीचे में कुछ दस्तावेज उपलब्ध करा रही हूँ
जिन्हें आप गूगल पर भी सर्च कर सकते है
अलग अलग बौद्धिस्ट देशों के सोशल क्लास सिस्टम
को आप गूगल पर सर्च कर सकते है
जिसमे श्रीलंका की स्थिति तो अतिदयनीय है ।

इंडोनेशिया,मलेशिया आदि देशों में भी यही स्थिति है
तथा अफगानिस्तान में भी
जो कि मैंने नीचे दिए गए गूगल डाक्यूमेंट्स के माध्यम से बताया है

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