* प्रथम आहुति किसकी *
* ऋषियों ने किसी भी हवन,यज्ञ या अनुष्ठान में प्रथम आहुतिपृथ्वीमाता कोदी।पृथ्वीआधारहैं।अपनेवक्षपरश्वास लेने वाले सभी प्राणियों को भोजन देने की व्यवस्था वे ही करती हैं।
पृथ्वी माता स्वर्ग को जोड़ती हैं। पृथ्वी और स्वर्ग के बीच जो स्थान है वह भुवः है। इन तीनों
त्रैलोक्य कहते हैं।
पृथ्वी को भू:कहने का विशेष अभिप्राय है।जहाँ सब कुछ
उत्पन्न हो और जो सब का अस्तित्व धारक हो वह भू है।
कहने को त्रैलोक्य अलग अलग तीन लोकों का समूह है पर इनकी वेदी या केंद्र भू : ही है।अतः प्रथम आहुति है--
ॐ भू: स्वाहा
ॐ भुवः स्वाहा
ॐ स्वः स्वाहा
भूर्लोकोsयं स्मृतो भूमिरन्तरिक्षं भुवः स्मृतम्।
स्वराख्यश्च तथा स्वर्गस्त्रैलोक्यं तदिदं स्मृतम् ।।
*-अंतरिक्षलोकमें न केवल उड्डयन होता हैया उनचास पवन प्रवाहित होते रहतेहैं या ग्रह आदि अपनी अष्टगतियाँ बनाये रखते हैं बल्कि अनेक योनियाँ अंतरिक्ष में निवास भी करती हैं। इन योनियों को
भी भोजन भू से ही मिलता है। स्वगर्लोक को तो यज्ञ की आहुतियाँ ही पुष्टि देती हैं।
अतःइन तीनों को क्रम पूर्वक आहुतियाँ ऋषियों द्वारा
दी जाती हैं।भू की इस विशेषता को देखते हुए वेदों में इसे
द्यावापृथ्वी कहा जाता है।
एक और बात -- जब भी इनमें से कोई एक विपत्ति ग्रस्त होता है
तीनों का समन्वय बिगड़ जाता है। अतः पृथ्वी पर जब भी उत्पात फैलाने वाले मारे जाते हैं तब पुष्प की या मेघ की वृष्टि होती है-- पुष्पवृष्टि: मुचो दिवि।

*-- चौथी आहुति प्रजापति को दी जाती है।प्रथम प्रजापति भगवान परमेष्ठी होते हैं।उनके संकल्प से ही सृष्टि उत्पन्न होती है।अनेक लोग
सोचते हैं यह क्रम उस निराकार ब्रह्म के लिए क्यों नहीं है जो सबका कारक है?

इसका उत्तर है -सृष्टि हमेशा साकार होतीहै। उस साकार जगत का क्रम वही होता है जो इस क्रम में है। नौ तलों ( धरातल ) वाली पृथ्वी ही जन्म, जीवन,मृत्यु को देती है। अतः उसे ही पहली आहुति समर्पित की गई
। ऋषियों के इस निर्णय को जो नहीं समझता वह किसी अन्य पिण्डपर जाकर वहाँ की व्यवस्था को आजमा सकता है
हम सनातनी तो पृथ्वी माँ की भी पूजा करते हैं क्यूँकि वो साकार हैं तो क्या मुत्रमान मलेछ पृथ्वी को भी तोड़ देंगे ? क्या अल्ला को साकार रुपी पृथ्वी से भी समस्या है ?
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