छठ पूजा -
छठ पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।
इस वर्ष यह षष्ठी तिथि 20 नवंबर 2020, शुक्रवार को है।
छठ पूजा बिहार और झारखंड प्रान्त का प्रमुख त्योहार है लेकिन इस उत्सव को पूरे उत्तर भारत में मनाया जाता है।
#happyChhathPuja
छठ पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।
इस वर्ष यह षष्ठी तिथि 20 नवंबर 2020, शुक्रवार को है।
छठ पूजा बिहार और झारखंड प्रान्त का प्रमुख त्योहार है लेकिन इस उत्सव को पूरे उत्तर भारत में मनाया जाता है।
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सूर्य की उपासना के इस पर्व को प्रकृति से प्रेम और प्रकृति की पूजा का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है। क्यूँ कि, सूर्य ही प्रकृति का आधार स्तंभ है।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला यह एक विशेष हिन्दू वैदिक पर्व है।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला यह एक विशेष हिन्दू वैदिक पर्व है।
सूर्य देव की उपासना का यह विशेष पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल देश के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।
मान्यता है कि, यह पर्व 'बिहार राज्य' का सबसे बड़ा पर्व है, वास्तव में ये उनकी वैदिक कालीन संस्कृति का द्योतक है।
मान्यता है कि, यह पर्व 'बिहार राज्य' का सबसे बड़ा पर्व है, वास्तव में ये उनकी वैदिक कालीन संस्कृति का द्योतक है।
छठ पूजा की तिथियां एवं मुहूर्त -
•तिथि :
18 नवंबर 2020, बुधवार- चतुर्थी (नहाय-खाय)।
19 नवंबर 2020, गुरुवार- पंचमी (खरना)।
20 नवंबर 2020, शुक्रवार- षष्ठी (डूबते सूर्य को अर्घ)।
21 नवंबर 2020, शनिवार- सप्तमी (उगते सूर्य को अर्घ)।
•तिथि :
18 नवंबर 2020, बुधवार- चतुर्थी (नहाय-खाय)।
19 नवंबर 2020, गुरुवार- पंचमी (खरना)।
20 नवंबर 2020, शुक्रवार- षष्ठी (डूबते सूर्य को अर्घ)।
21 नवंबर 2020, शनिवार- सप्तमी (उगते सूर्य को अर्घ)।
•मुहूर्त :
षष्ठी को सूर्यादय 06:48 बजे और सूर्योस्त 05:26 बजे पर होगा। षष्ठी तिथि 19 नवंबर को रात 09:59 बजे से प्रारम्भ होगी जो 20 नवंबर को रात 09:29 बजे तक रहेगी।
•विशेष :
अलग अलग स्थानों पर समय में परिवर्तन होता है, इसलिए सटीक समय के लिए अपनी स्थानीय समय सारणी देखें।
षष्ठी को सूर्यादय 06:48 बजे और सूर्योस्त 05:26 बजे पर होगा। षष्ठी तिथि 19 नवंबर को रात 09:59 बजे से प्रारम्भ होगी जो 20 नवंबर को रात 09:29 बजे तक रहेगी।
•विशेष :
अलग अलग स्थानों पर समय में परिवर्तन होता है, इसलिए सटीक समय के लिए अपनी स्थानीय समय सारणी देखें।
चार दिवसीय इस पर्व में, पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना अथवा लोहंडा, तथा तीसरे दिन षष्ठी व्रत का पालन करते हैं, और चौथे दिन सप्तमी तिथि को इस व्रत का समापन करते हैं।
कब मनाये नहाय-खाय -
चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय होता है। नहाय-खाय के दिन लोग घर की साफ-सफाई करते हैं।
कब मनाये नहाय-खाय -
चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय होता है। नहाय-खाय के दिन लोग घर की साफ-सफाई करते हैं।
तथा घर एवं शरीर को शुद्ध करके पूरे दिन सात्विक आहार लेते हैं।
इस वर्ष आज ही मनाएंगे, और आज से ही प्रारम्भ होगा 'छठपर्व'।
खरना अथवा लोहंडा -
इसके बाद पंचमी तिथि को खरना शुरू होता है इसमें व्रती को दिन में व्रत करके शाम को सात्विक आहार लेना चाहिये,...
इस वर्ष आज ही मनाएंगे, और आज से ही प्रारम्भ होगा 'छठपर्व'।
खरना अथवा लोहंडा -
इसके बाद पंचमी तिथि को खरना शुरू होता है इसमें व्रती को दिन में व्रत करके शाम को सात्विक आहार लेना चाहिये,...
अर्थात शुद्ध, शाकाहारी भोजन।
बिहार में गुड़ की खीर एवं कद्दू की खीर का विशेष चलन है। पंचमी को खरना के साथ लोहंडा भी होता है जो सात्विक आहार से ही जुड़ा पर्व है।
कहते हैं भोजन से ही भजन हो सकता है। क्यूँ कि, भोजन ही हमारी विचारधारा का निर्माण करता है। अर्थात,...
बिहार में गुड़ की खीर एवं कद्दू की खीर का विशेष चलन है। पंचमी को खरना के साथ लोहंडा भी होता है जो सात्विक आहार से ही जुड़ा पर्व है।
कहते हैं भोजन से ही भजन हो सकता है। क्यूँ कि, भोजन ही हमारी विचारधारा का निर्माण करता है। अर्थात,...
जैसा खाओगे अन्न, वैसा बनेगा मन।
षष्ठी पूजा-निर्जला व्रत-
षष्ठी तिथि को व्रती (व्रत का परायण करने वाला) को निर्जला व्रत रखना होता है। यह व्रत 'खरना' (पंचमी) की शाम से ही शुरू होता जाता है।
षष्ठी तिथि के दिन शाम को डूबते हुये सूर्य को अर्घ देकर व्रत का पूजन करते हैं।
षष्ठी पूजा-निर्जला व्रत-
षष्ठी तिथि को व्रती (व्रत का परायण करने वाला) को निर्जला व्रत रखना होता है। यह व्रत 'खरना' (पंचमी) की शाम से ही शुरू होता जाता है।
षष्ठी तिथि के दिन शाम को डूबते हुये सूर्य को अर्घ देकर व्रत का पूजन करते हैं।
व्रत समापन -
सप्तमी तिथि को सुबह उगते हुये सूर्य को अर्घ देने के साथ ही करीब 36 घंटे चलने वाला यह निर्जला व्रत समाप्त हो जाता है।
छठ माता का पूजन एवं व्रत यदि पूरी श्रद्धा के साथ करें, तो इनकी पूजा-उपासना करने वालों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
सप्तमी तिथि को सुबह उगते हुये सूर्य को अर्घ देने के साथ ही करीब 36 घंटे चलने वाला यह निर्जला व्रत समाप्त हो जाता है।
छठ माता का पूजन एवं व्रत यदि पूरी श्रद्धा के साथ करें, तो इनकी पूजा-उपासना करने वालों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
कैसे करें व्रत का परायण :
व्रत के दिन महिलाएं स्नान आदि से निर्वत्त होकर नए वस्त्र धारण करती हैं, तथा संध्या समय शुद्ध भोजन करती हैं।
कार्तिक माह की शुक्लपक्ष पंचमी को महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और शाम को भोजन करती हैं। शाम को गुड़ से खीर बनाकर खाई जाती है।
व्रत के दिन महिलाएं स्नान आदि से निर्वत्त होकर नए वस्त्र धारण करती हैं, तथा संध्या समय शुद्ध भोजन करती हैं।
कार्तिक माह की शुक्लपक्ष पंचमी को महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और शाम को भोजन करती हैं। शाम को गुड़ से खीर बनाकर खाई जाती है।
आप इस व्रत में फलाहार भी कर सकते हैं। व्रत का अर्थ होता है संकल्प, इसलिये आपको अपनी सामर्थ्य अनुसार संकल्प लेकर व्रत का पालन करना चाहिये।
छठ माता का प्रसाद :
ठेकुआ, मालपुआ, खीर, खजूर, चावल का लड्डू और सूजी का हलवा आदि छठ मइया को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।
छठ माता का प्रसाद :
ठेकुआ, मालपुआ, खीर, खजूर, चावल का लड्डू और सूजी का हलवा आदि छठ मइया को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।
भगवान की मानस पुत्री हैं 'देवसेना' तथा, सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण ये षष्ठी कहलाती हैं।
कात्यायन ऋषि की पुत्री के रूप में इन्होने पृथ्वी पर जन्म लिया और देवी कात्यायनी के नाम से विख्यात हुयी।
कात्यायन ऋषि की पुत्री के रूप में इन्होने पृथ्वी पर जन्म लिया और देवी कात्यायनी के नाम से विख्यात हुयी।
नवरात्रों में षष्ठी तिथि को हम इनका पूजन प्रार्थना करते हैं।
सर्वप्रथम किसने की छठ माता की पूजा :
सर्वप्रथम देव माता अदिति ने छठ देवी की पूजा की थी।
मत्स्य पुराण के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने.....
सर्वप्रथम किसने की छठ माता की पूजा :
सर्वप्रथम देव माता अदिति ने छठ देवी की पूजा की थी।
मत्स्य पुराण के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने.....
तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के 'देव सूर्य मंदिर' (बिहार) में छठी मैया की आराधना की थी। इसलिये, यह बिहार का अति प्राचीन, वैदिक पर्व है।
कौन हैं माता अदिति -
देवी अदिति, दक्ष प्रजापति की पुत्री, देवी 'सती' की बहन एवं कश्यप ऋषि की पत्नी हैं।
कौन हैं माता अदिति -
देवी अदिति, दक्ष प्रजापति की पुत्री, देवी 'सती' की बहन एवं कश्यप ऋषि की पत्नी हैं।
दक्ष की दो पुत्रियों, दिती एवं अदिति का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ था।
दिति से दैत्य एवं अदिति से देवताओं की उत्पत्ति हुयी।
देवी अदिति मित्रावरुण, अर्यमन्, रुद्रों, आदित्यों एवं इंद्र आदि की माता हैं तथा इंद्र और आदित्यों को सदैव माता अदिति से ही शक्ति प्राप्त होती है।
दिति से दैत्य एवं अदिति से देवताओं की उत्पत्ति हुयी।
देवी अदिति मित्रावरुण, अर्यमन्, रुद्रों, आदित्यों एवं इंद्र आदि की माता हैं तथा इंद्र और आदित्यों को सदैव माता अदिति से ही शक्ति प्राप्त होती है।
"विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्॥"
उनके मातृत्व का विवरण अथर्ववेद (7.6.2) और वाजसनेयिसंहिता (21,5) में भी प्राप्त होता है।
सूर्य के पूजन का महत्त्व; (ज्योतिषीय एवं खगोलीय गणनायें) -
सूर्य देव को प्राणों का देवता कहा जाता है।
उनके मातृत्व का विवरण अथर्ववेद (7.6.2) और वाजसनेयिसंहिता (21,5) में भी प्राप्त होता है।
सूर्य के पूजन का महत्त्व; (ज्योतिषीय एवं खगोलीय गणनायें) -
सूर्य देव को प्राणों का देवता कहा जाता है।
सूर्य देव आत्मा के कारक ग्रह हैं।
सूर्य की उपासना का वर्णन ऋग्वेद, विष्णु पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि में मिलता है।
वैज्ञानिकों की दृष्टि से षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है।
इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर.....
सूर्य की उपासना का वर्णन ऋग्वेद, विष्णु पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि में मिलता है।
वैज्ञानिकों की दृष्टि से षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है।
इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर.....
सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं।
इस व्रत के प्रभाव से, प्राकर्तिक परिवर्तन के दुष्प्रभावों से मानव जीवन की रक्षा करने का बल एवं शक्ति प्राप्त होती है।
खगोल विज्ञान के अनुसार समस्त ग्रहों एवं उपग्रहों की ऊर्जा का श्रोत सूर्य को ही माना जाता है।
इस व्रत के प्रभाव से, प्राकर्तिक परिवर्तन के दुष्प्रभावों से मानव जीवन की रक्षा करने का बल एवं शक्ति प्राप्त होती है।
खगोल विज्ञान के अनुसार समस्त ग्रहों एवं उपग्रहों की ऊर्जा का श्रोत सूर्य को ही माना जाता है।
सूर्य के प्रकाश के साथ-साथ उसकी पराबैंगनी किरणें भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश पहले वायुमंडल में मिलता है और फिर पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है।
इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है और पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है।
सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाली पराबैंगनीं किरणों की मात्रा मनुष्यों या जीवों की क्षमता में.....
सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाली पराबैंगनीं किरणों की मात्रा मनुष्यों या जीवों की क्षमता में.....
निहित होती है। किन्तु, खगोलीय परिवर्तन से अभी स्थिति बहुत बदल गई।
सूर्य पृथ्वी पर विटामिन 'D' का एक मात्र प्राकर्तिक श्रोत है। हमारे शरीर में हड्डियों के निर्माण में इसका विशेष महत्त्व है।
इसलिये, सूर्य को हड्डियों का कारक ग्रह भी माना जाता है।
सूर्य पृथ्वी पर विटामिन 'D' का एक मात्र प्राकर्तिक श्रोत है। हमारे शरीर में हड्डियों के निर्माण में इसका विशेष महत्त्व है।
इसलिये, सूर्य को हड्डियों का कारक ग्रह भी माना जाता है।
सूर्य के अच्छे बुरे सभी प्रभावों नियंत्रित कर, उनको जीवन के योग्य बनाने की इस क्रिया के वैदिक नियम एवं पूजन को ही "छठ पूजा" कहते हैं।
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