यह कैसा तर्क है कि; एक भी श्लोक रामायण में दिखा सकते हो जो साबित कर दे कि श्रीराम के अयोध्या लौटने पर पटाखे जलाए गए थे?
कोई यह साबित कर सकता है कि इस पृथ्वी पर पहले शुभ कार्य में नारियल या फूल का प्रयोग किया गया था? पहले पूजन में ही दीपक का प्रयोग किया गया था?
कोई यह साबित कर सकता है कि इस पृथ्वी पर पहले शुभ कार्य में नारियल या फूल का प्रयोग किया गया था? पहले पूजन में ही दीपक का प्रयोग किया गया था?
क्या हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता के धार्मिक, सांस्कृतिक अनुष्ठान या पूजा पद्धति के नियम पहले ही दिन तय हो गए होंगे? क्या किसी ने पहले ही दिन लिख कर नियम बना दिए थे कि बस इतना ही करना है और इससे बाहर कुछ नहीं करना है?
जिस संस्कृति का इतिहास सहभागिता का अनुपम उदाहरण रहा हो, उसके विकास में समय समय पर नियम जुड़े न हों, इस बात की गारंटी कोई दे सकता है? यदि पहले दिन किताब लिख कर रख दी गई होती तो क्या हमारे इतने देवता होते? हमारे यहाँ पूजा की इतनी पद्धतियाँ होतीं?
ऐसे में यह कुतर्क कोई मूढ़ ही कर सकता है कि आज पटाखे इसलिए मत जलाओ क्योंकि श्रीराम के अयोध्या वापस आने पर पटाखे नहीं जलाए गए थे। यदि दीपावली पर पटाखे आठ सौ वर्षों से ही जलाए जा रहे हैं तो भी हम उसे आज क्यों छोड़ दें? केवल इस कुतर्क के लिए कि; रामायण में दिखाओ कहाँ लिखा है?
यदि इस कुतर्क के लिए जगह होती तो हिंदू धर्म, संस्कृति, उसकी परम्पराएँ और उसका इतिहास तक एक ही पुस्तक में बंद रहता और हम हजारों वर्षों से वह पुस्तक सबके सिर पर मारते और किसी को कुछ कहने न देते।
हम डेढ़ दो हजार वर्ष वाली संस्कृति के वाहक नहीं।
हम डेढ़ दो हजार वर्ष वाली संस्कृति के वाहक नहीं।
कई लोगों ने रूपा जी को टैग करके लिखा है कि; यह उनके लिए ही लिखा गया है। नहीं, ऐसी बात नहीं है। पिछले पंद्रह दिनों में यह तर्क कई लोगों ने दिया है।
अनुरोध है कि मुझे क़ानून के साथ टैग न करें
अनुरोध है कि मुझे क़ानून के साथ टैग न करें
