सती प्रथा का मूल हिंदू धर्म से कोई लेना देना नहीं, फिर यह कुरीति समाज में कैसे शुरू हुई?
आपने बिलकुल सही नब्ज़ पकड़ी, मूल हिन्दू धर्म से सती प्रथा का कोई लेना देना नहीं है।
बल्कि सती प्रथा से उलट हमारे यहाँ विधवा विवाह तक की बात सामने आती है।
आपने बिलकुल सही नब्ज़ पकड़ी, मूल हिन्दू धर्म से सती प्रथा का कोई लेना देना नहीं है।
बल्कि सती प्रथा से उलट हमारे यहाँ विधवा विवाह तक की बात सामने आती है।
जब राम ने रावण का वध किया, उसके बाद रावण की पत्नी मंदोदरी का विवाह विभीषण से हुआ, जब बाली का वध हुआ तो उसकी पत्नी का का विवाह सुग्रीव से हुआ।
क्या दशरथ की मृत्यु के बाद उनकी रानियां सती हुईं?
ऐसे ही महाभारत में कुंती विधवा हुई तो वे तो सती नहीं हुई।
ऐसे ही अनेकों उदाहरण
क्या दशरथ की मृत्यु के बाद उनकी रानियां सती हुईं?
ऐसे ही महाभारत में कुंती विधवा हुई तो वे तो सती नहीं हुई।
ऐसे ही अनेकों उदाहरण
आपको मिल जायेंगे, साथ में यह भी देखने को मिलेगा की विधवा विवाह में भी स्त्री की स्वेच्छा ज़रूरी होती थी।
गुप्त सम्राज्य तक आपको कही उल्लेख नहीं मिलेगा, किसी विदेशी यात्री द्वारा इसका ज़िक्र नहीं मिलेगा।
लेकिन फिर दौर शुरू हुआ इस्लामिक आक्रांताओं का जो लूट मार और अपने धर्म के
गुप्त सम्राज्य तक आपको कही उल्लेख नहीं मिलेगा, किसी विदेशी यात्री द्वारा इसका ज़िक्र नहीं मिलेगा।
लेकिन फिर दौर शुरू हुआ इस्लामिक आक्रांताओं का जो लूट मार और अपने धर्म के
प्रचार के लिए भारत की आए।
जब भारत के दो राजाओं में युद्ध होता था तब वह युद्ध केवल सैनिकों तक ही सिमित रहता था, युद्ध के नियम होते, महिलाओं और युद्ध में भाग न लेने वाले नागरिकों को कोई हानि नहीं पहुंचे जाती।
वहीँ ये आक्रांता किसी मानवता, किसी महिला अधिकारों को नहीं जानते थे,
जब भारत के दो राजाओं में युद्ध होता था तब वह युद्ध केवल सैनिकों तक ही सिमित रहता था, युद्ध के नियम होते, महिलाओं और युद्ध में भाग न लेने वाले नागरिकों को कोई हानि नहीं पहुंचे जाती।
वहीँ ये आक्रांता किसी मानवता, किसी महिला अधिकारों को नहीं जानते थे,
जिस राजा को भी ये हराते उसके राज्य की महिलाओं को अपने हरम में रखते, उनके साथ क्या क्या होता इसका अंदाज़ा लगाना आपके लिए मुश्किल न होगा।
इन आक्रांताओं के जघन्य कृत्यों से बचने के लिए महिलाएँ आत्मदाह करने लगीं। जिसे की जौहर के नाम से जाना जाता है।
कालांतर में यही प्रथा बिगड़ कर
इन आक्रांताओं के जघन्य कृत्यों से बचने के लिए महिलाएँ आत्मदाह करने लगीं। जिसे की जौहर के नाम से जाना जाता है।
कालांतर में यही प्रथा बिगड़ कर
सती प्रथा में बदली होगी।
इस प्रथा को ख़त्म करने का क्रेडिट ही राजा राममोहन राय को दे दिया जाता है, जबकि आप थोड़ा खोजेंगे तो आपको पता चलेगा मृत्युंजय विद्यालंकार जैसे कई महापुरषों ने इसमें अहम योगदान दिया है।
जबकि इस समाजिक कुरीति को धार्मिक बताने का काम इतिहासकारों ने सोच समझ
इस प्रथा को ख़त्म करने का क्रेडिट ही राजा राममोहन राय को दे दिया जाता है, जबकि आप थोड़ा खोजेंगे तो आपको पता चलेगा मृत्युंजय विद्यालंकार जैसे कई महापुरषों ने इसमें अहम योगदान दिया है।
जबकि इस समाजिक कुरीति को धार्मिक बताने का काम इतिहासकारों ने सोच समझ
किया, अब यह बात किसी से छुपी नहीं रह गई कि हमारे इतिहासकार कितने महान हैं।
@RakyaDadoos_
@C_JackMH26 @BhaktiCha1 @thatPunekar @FelixUnlucky
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