त्योहारों में अब वो मज़ा नहीं आता।
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होली पर पानी, दीवाली पर पटाखे, दसहरा पर रावण दहन, गणपति स्थापना व विसर्जन, जन्माष्टमी या अन्य त्योहारों पर जो भी परंपराएं हैं, चाहे वो मूल रूप से उस पर्व से जुड़ी थी या नहीं, वो सभी उन पर्वों को मनाने के उत्साह में वृद्धि करती हैं।
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होली पर पानी, दीवाली पर पटाखे, दसहरा पर रावण दहन, गणपति स्थापना व विसर्जन, जन्माष्टमी या अन्य त्योहारों पर जो भी परंपराएं हैं, चाहे वो मूल रूप से उस पर्व से जुड़ी थी या नहीं, वो सभी उन पर्वों को मनाने के उत्साह में वृद्धि करती हैं।
ऐसा तो नहीं है कि रक्षा बंधन पर हम राखी नहीं बांधेंगे या बंधवाएंगें तो भाई अपनी बहनों की रक्षा करना छोड़ देंगे। ना ऐसा है कि अगर कंजक नहीं बिठाएंगे तो कन्याओं को सुरक्षा नहीं देंगें। और न ही यूँ है कि करवा चौथ के व्रत के बिना पत्नी पति को दीर्घायु नहीं चाहेगी।
इसी उत्साह को तोड़ने का षड्यंत्र था कि पर्वों पर जुड़ी इन परम्पराओं को आडम्बर, समाज व पर्यावरण के प्रतिकूल तथा पिछड़ापन घोषित कर दिया गया। और धीरे धीरे ये सुनना आम होने लगा कि त्योहारों में अब वो मज़ा नहीं आता।
अब आगे देखिए। ये सब तो पिछड़ापन था लेकिन क्रिसमस और न्यू ईयर मनाना कूल हो गया। घर पर क्रिसमस ट्री सजाना, बच्चों को सांता की पौशाक पहनाना, लेट नाईट पार्टी, ये सब आधुनिक और समझदारी का पर्याय।
दीवाली की मिठाई से चॉक्लेट अच्छी थी लेकिन ईद की सेवईयों से नहीं।
दीवाली की मिठाई से चॉक्लेट अच्छी थी लेकिन ईद की सेवईयों से नहीं।
हम सब एक बड़े चक्रव्यूह में फंसते जा रहे थे। आज हम पलट कर देखें तो सब समझ में आता है।
किसी मज़हब के किसी भी त्योहार से कोई द्वेष रखे बिना आज हम यही कहेंगें कि त्योहारों को त्योहार रहने दीजिए। जो जैसे मनाता है वैसे मनाने दीजिये।
शुभ-शुभ
किसी मज़हब के किसी भी त्योहार से कोई द्वेष रखे बिना आज हम यही कहेंगें कि त्योहारों को त्योहार रहने दीजिए। जो जैसे मनाता है वैसे मनाने दीजिये।
शुभ-शुभ