थ्रेड: दिल तो बच्चा है जी
मुंशी प्रेमचंद ने 'रंगभूमि' में लिखा है कि बच्चे बहुत जिज्ञासु होते हैं मगर केवल संख्यात्मक रूप से। उनको हजार और लाख से संतुष्टि नहीं होती। उनको करोड़ बताओगे तो वे करोड़ के बाद वाली संख्या के बारे में पूछेंगे। और ये जिज्ञासा कभी ख़तम नहीं होती।
मुंशी प्रेमचंद ने 'रंगभूमि' में लिखा है कि बच्चे बहुत जिज्ञासु होते हैं मगर केवल संख्यात्मक रूप से। उनको हजार और लाख से संतुष्टि नहीं होती। उनको करोड़ बताओगे तो वे करोड़ के बाद वाली संख्या के बारे में पूछेंगे। और ये जिज्ञासा कभी ख़तम नहीं होती।
उनको अरब-खरब के बाद क्या आता है ये भी जानना है। अगर आपको नहीं पता तो किसी और से पूछेंगे। और तब तक पूछेंगे जब तक कि कोई उनको सच्ची झूठी खरब से बड़ी कोई नयी संख्या बता नहीं देता। उनको हर चीज को संख्या के पैमाने पर मापना होता है।
बाद में इस जानकारी के बारे में अपने दोस्तों के सामने डींगें भी हांकेंगे। जैसे कि कोई अगर बोलेगा कि उसके पापा के पास एक लाख रूपये हैं तो अगला तुरंत बोलेगा कि उसके पापा के पास तो एक करोड़ रूपये हैं। अगले के पापा के पास एक अरब निकलेंगे और उससे अगले के पास एक खरब।
इससे किसी को कोई लेनादेना नहीं कि एक खरब रूपये वास्तव में होते कितने हैं या इतने पैसे कमाए कैसे जाते हैं। कुछ-कुछ ऐसी ही मानसिकता ऊपर बैठे अधिकारी और नेताओं की होती है। तभी तो कुछ भी अंट-शंट टारगेट बना देते हैं। 45 करोड़ जन-धन खाते खुले।
प्रधानजी, @DFS, मंत्रालय, IAS, मीडिया, सब आके ढोल पीटने लगे। इससे किसी को कोई मतलब नहीं कि कैसे खुले। अगला टारगेट 100 करोड़ का होगा। वो तो भला हो भारत की जनसँख्या का नहीं तो अगला टारगेट पांच सौ करोड़ का भी हो सकता था।
हाउसिंग लोन के हर महीने दो से तीन लॉगिन डे होते हैं, जिसमें सुबह सुबह ही फ़ोन करके बता दिया जाता है कि आज कुछ भी करके एक हाउसिंग लोन सोर्स करना है। टारगेट बनाने वाले को इससे कोई मतलब नहीं कि हाउसिंग लोन में कितने डॉक्यूमेंट लगते हैं, कितने इंस्पेक्शन लगते हैं, कितना टाइम लगता है।
जिस छोटी सी ब्रांच में टोटल 3 हाउसिंग लोन हैं उसमें महीने के 3 हाउसिंग लोन का टारगेट दे दिया जाता है और उसका 300 बार फ़ॉलोअप लिया जाता है।
ब्रांच में स्टाफ है कुल दो का, और उसमें इनको महीने में 10 लाख का जीवन बीमा चाहिए, 2 लाख का PAI चाहिए, 25 KCC चाहिए, 5 पर्सनल लोन, 5 कार लोन, 5 पेंशन लोन, 20 लाख का मुद्रा, सब चाहिए। फिर ये ऊपर बैठ के आंकड़ों का हिसाब देखेंगे।
पूरा नहीं होगा तो बच्चों की तरह जिद करने लगेंगे, ऊल जलूल तर्क देंगे, हाथ पैर फेंकेंगे। ऑफिस में 10 लोगों को सिर्फ आंकड़े इकठ्ठे करने के काम पे लगा देंगे। उनका काम होगा ब्रांचों को दिन में 10 बार फ़ोन करके वही डाटा माँगना और उसकी बढ़िया सी एक्सेल बना के साहब के सामने रखना।
ताकि उससे साहब हर घंटे अपनी संख्यात्मक जिज्ञासा शान्त करेंगे। नाम दिया जाएगा रियल-टाइम मॉनिटरिंग का। वो अलग बात है कि जिस डाटा के लिए ब्रांच मैनेजर को दनादन फोन करते रहते हैं, व्हाट्सप्प पे लगे रहते हैं, मेल दागते रहते हैं, वही डाटा शाम को CBS रिपोर्ट में अपने आप ही मिल जाता है।
लेकिन शाम तक का सबर किसको है। फिर वही डाटा लेकर AGM साहब DGM के पास जायेंगे, DGM साहब GM के पास जायेंगे और आखिरी में ये डाटा पहुंचेगा प्रधानजी के पास, जिसके बारे में वो फिर चुनावी रैली में डींग हांकेंगे। फिर आगे के टारगेट दे दिए जायेंगे। और बड़ी संख्या के साथ।
साहब का दिल बच्चे जैसा है। तभी तो कभी मोर तो कभी तोता खिलाते हैं। अपनी छाती की चौड़ाई नापते रहते हैं। 20 लाख करोड़ का पैकेज बाँट देते हैं। लेकिन चूंकि बच्चे को नहीं पता कि एक खरब रूपये कैसे कमाए जाते हैं इसलिए बाप उसकी बात को बचपना मान कर नज़रअंदाज़ कर देता है।
मगर यहां तो साहब के बचपने के चक्कर में हमारा तेल निकला जा रहा है। साहब, अब तो बड़े हो जाइये। हम पर रहम खाइये।