A thread:

ट्रम्प जीतें या बाइडेन भारत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।भारत की हैसियत दुनिया में अपनी जनता, रणनीतिक भौगोलिक स्थिति व बाजार के कारण है किसी स्टंट के दम पर नहीं।बस ट्रम्प के रहने में ये फायदा ज़रूर था कि वो चीन के धुर विरोधी हैं और चीन इस समय विस्तारवाद में लगा है।
पाकिस्तान के लिए भी ट्रम्प की नीति बाइडेन की तुलना में ज़्यादा सख्त है।बाइडेन चीन और पाक के प्रति ट्रम्प की तुलना में नरम रहेंगे लेकिन वो कोई आमूलचूल नीति परिवर्तन नहीं कर पाएंगे। भारत को नाराज़ कोई अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं करना चाहेगा।
ट्रम्प का चीन और पाकिस्तान विरोध भी शब्दों तक ज़्यादा रहा कोई बहुत बड़ा कदम तो वो उठा नहीं पाए। ऐसे में बाइडेन के समय भी भारत कुछ खोने नहीं जा रहा हालांकि ट्रम्प की मौजूदगी उसे ज़्यादा आराम देती। ट्रम्प के साथ दिक्कत उनका अविश्वनीय व्यवहार और गैरजिम्मेदाराना बयानबाज़ी है।
रही बात हाऊडी मोदी की तो वो परंपराओं और मर्यादाओं के विरुद्ध ज़रूर था पर उसका एक तात्कालिक लाभ भारत को भी था।कश्मीर से 370 हटाने के बाद ध्यान हटाने और सब भारत में सब सामान्य है ये दिखाने में उससे मदद मिली।"सब चंगा सी" उसी रणनीति का हिस्सा था।वो कोई पछताने की बात नहीं भारत के लिए।
अमेरिका की अगली सरकार भारत से अपने रिश्ते लाभ हानि और समीकरणों के आधार पर तय करेगी नेताओं की दोस्ती के आधार पर नहीं। वैश्विक नेताओं की दोस्ती दरअसल लफ्फाजी से ज़्यादा कुछ नहीं होती। राष्ट्राध्यक्ष अपने देश की हैसियत के अनुपात में सम्मान पाते हैं कोई रिश्ता करने नहीं बैठा है वहां।
ट्रम्प अमेरिका के लिए खराब रहे होंगे भारत के लिए नहीं।इसलिए उनकी अगर हार होती है तो इसमें भारत के लोगों के खुश होने की कोई बात नहीं।पर भारत के लिए हकीकत में ज़्यादा कर नहीं पाए सो परेशान होने की भी ज़रूरत नहीं।ओबामा के समय भी भारत से रिश्ते अच्छे हुए,बाइडेन कोई अपवाद नहीं होंगे।
ट्रम्प व्हाट हाउस की गरिमा से समझौता आदतन करते रहे।सोशल मीडिया पर अजीबोगरीब ट्वीट करना, खबरों को बार बार फेक बताना और ऐसे ही कई कारणों से डेमोक्रेसी के लिए अच्छे नहीं माने गए।उनके समय में ब्लैक लाइफ मैटर्स चला,वाइट हाउस को किला बना कर उन्हें तहखाने में भेजना जैसी बदनामी हुई।
कोरोना से निपटने में उनका तदर्थ रवैया भारी पड़ा। अमेरिका की जनता आम तौर पर दो टर्म दे देती है पर ट्रम्प ने एक टर्म में ही उसके धैर्य की परीक्षा ले डाली।अगर वो हारते है तो सवाल भी बड़े छोड़ जाएंगे जिनमे सबसे बड़ा सवाल है कि क्या विश्व में राइट विंग सरकारों की लहर अब पलट रही है ?
क्या इसमें कोई वैश्विक ट्रेंड पढ़ा जा सकता है?क्या अधिनायकवादी सरकारों की व्यावहारिक कमियां विरोधियों की नीतिगत खामियों से भारी पड़रही।क्या लिबरल्स की कमियों का फायदा उठा दक्षिणपंथ सत्ता तो पा लेता है पर व्यवस्था चलाने का वैकल्पिक मॉडल उसके पास नहीं।क्या RW सिर्फ अच्छा विपक्ष है?
क्या दक्षिणपंथ ऐश्वर्य की मनोदशा का शगल है?विपदा में जनता लिबरल/सेंट्रिस्ट की ओर लौटती है?आपदा में कल्याणकारी राज्य की उपयोगिता होती है जबकि दक्षिणपंथी सरकारें पूंजीवादी सोच की होती हैं।क्या कोरोना महामारी में सरकारों की विफलताएं दुनिया भर में सत्ता परिवर्तन का कारण बन सकती हैं?
वो कारण खत्म नहीं हुए जिनके कारण RW पार्टियों को लोकप्रियता बढ़ती है।इस्लामिक रेडिकलिज़्म पर लिबरल्स का शुतुरमुर्गी रवैया,एक्सट्रीम लेफ्ट व रेडिकल इस्लाम का गठजोड़,स्थानीय संसाधनों/अवसरों पर हक जैसे मुद्दे कायम हैं।RW यदि अपनी सीमाओं से हारता है तो लिबरल्स की कमियां भी कम नहीं।
अति हर चीज़ की बुरी होती है। सरकार का उद्देश्य नागरिक के लिए बेहतर जीवन व अधिकार सुनिश्चित करना होना चाहिए।फंतासियों को छोड़ ज़मीनी हकीकत का सामना सबको करना होगा। (End of thread)
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