थ्रेड- #राजनीतिक_अंधभक्त

सोशल मीडिया पर सबसे चर्चित शब्द,जिनसे आये दिन सभी को एक बार रूबरू होने का अवसर मिलता है।कहते हैं कि जब तक आपको उनसे मुलाकात न हो तो सोशल मीडिया की यात्रा अधूरी रहती है,साथ हीं दूसरों को परखने का तजुर्बा भी!!
तभी तो पता चलता है,उसके भक्ति की गहराई का,जो वो उसमें किस हद तक डूबा है,ये प्राणी टू प्राणी विभिन्न होता है।आखिर मानव सबसे बुद्धिजीवी होता,इसीलिए उसे बहकाने के लिये उतना हीं मेहनत करना पड़ता।अब चूँकि सभी मानव की सोच भी एक जैसी नहीं होती,इसीलिए इनपुट भी अलग अलग होती,लेकिन मकसद एक!
समय के साथ ये काम बेहद कठिन होता जा रहा है,इसीलिए विशेषज्ञों का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है।अब सवाल उठता है,इसका जरूरत कहाँ,क्यूँ और कैसे?? तो जवाब है,जिस तरह समय के साथ राजनीति में भी बदलाव हो रहा है,तो हर पार्टी अपनी वोट बैंक मजबूत करना चाहती है,उसके लिये तरह तरह के.....
हथकंडे अपनायें जाते हैं।ऐसा नहीं है कि ये बेहद सहज है,बहुत जटिल है,उसके लिये कोर्स भी कराएँ जाते हैं,विशेषज्ञों को बहाल किया जाता है,फिर विशेषज्ञों के द्वारा स्पेशल टीम बनाई जाती है,जिसे समय समय पर उचित प्रशिक्षण दे कर हर तरह से चुनौतियों का सामना करने हेतु तैयार किया जाता है।
अच्छी खासी मेहनताना भी दिया जाता है,फिर उन्हें सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों के द्वारा लोगों के पसन्द-नापसन्द का डाटा तैयार किया जाता है।अब जैसे कि फेसबुक हमारे देश सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो गया है,वर्तमान में करीब 310 मिलियन यूज़र्स हैं,वहाँ हर पार्टियाँ लोगों को लुभाने हेतु...
ज्यादा पैसा खर्च करती हैं,उनके द्वारा विभिन्न तरह के पेज चलाये जाते हैं,उन्हें सलाना टारगेट दिया जाता है कि ज्यादा से ज्यादा सदस्यों को जोड़ने का,अब जिस पेज में जितने सदस्य,उसका उतना हीं ऊँचा दाम।अब लोगों को प्रभावित करने के लिये समय समय पर खबरों को इस तरह तोड़-मरोड़ कर चलाया
जाता है कि बिना शक किये,अधिकांश उसे सच मान लेते हैं,ऐसा नहीं है कि केवल सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को गलत खबर दिखा-दिखा कर अंधभक्त बनाया जाता है,जबकि न्यूज़ चैनल्स के द्वारा भी पेड न्यूज़ चलाने की खबरें आई हैं।आजकल सबसे संवेदनशील विषयों को गलत रूप में चित्रण कर जिस तरह दो
समुदायों के बीच जिस तरह ज़हर फैलाने के लिये, आपसी कटुता और वैमनस्यता फैलाने की पुरजोर कोशिश हो रही है,वो भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों के लिये घातक है,परिणाम सदैव दुखदायी होंगे।यही वज़ह है कि अंग्रेजों ने हमारे देशों पर सैकड़ों सालों तक राज्य किया,उनका एक हीं रणनीति था-
"फूट डालो,राज्य करो"
वो इसमें सौ फ़ीसदी कामयाब रहे,उन्होंने देश के राजाओं को आपस में हीं एक दूसरे से लड़ाकर कमजोर कर दिया और फिर उसपर अधिकार कर अपना कठपुतली बैठा दिया।इस तरह वह भारत जैसे विशाल देश जो कंधार तक फैला हुआ था,सभी जगह अपना सिक्का जमाने में कामयाब रहे।
वक्त बदला, लोग बदले,लेकिन नहीं बदला तो सोच।
और हर चीज को सोचने का सबक अपना नजरिया होता,कुछ सकारात्मक सोचते,कुछ नकारात्मक।बुरा लगता,लेकिन ये सच्चाई है कि हमारे कुछ बैंकर साथी भी जब अंधभक्त बन जाते तो दुख होता,जब वो व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी की खबरों को प्रमुखता से चलाते तो दुख होता।
तब कभी कभी महसूस होता कि हमारी वर्तमान स्थिति का उत्तरदायी कुछ हद तक हम स्वयं भी हैं,क्यूँकि बैंककर्मचारी हो या राज्यकर्मचारी या केंद्रीय कर्मचारी सभी एक जिम्मेदार पेशेवर वर्ग होता है,जिससे सदैव एक अंपायर की तरह निष्पक्ष निर्णय की अपेक्षा होती है,न कि खुद को किसी पार्टी विशेष से.
जोड़ने की!!सरकारें आती जाती रहेंगी लेकिन आप वस्तुस्थिति पर सदैव मौजूद रहेंगे,इसीलिए आपका विश्लेषण जिम्मेदारी से सदैव निष्पक्ष होनी चाहिए।
अगर किसी पार्टी विशेष से जुड़े लोग अंधभक्त बन जाएं तो वो गलत कतई नहीं है,बल्कि राजनीतिक धर्म है,जबकि हमारा राजनीतिक अंधभक्त बनना अपराध है‼️
🔴अगर ईमानदारी से कहूँ तो सफेदपोशों का सर्वाधिक ह्रास जिस पार्टी के शासनकाल में हुआ है,वो किसी से छुपा हुआ नहीं हैचाहे

👉पुराना पेंशन बन्द होना
👉मर्जर
👉सार्वजनिक उपक्रमों की सर्वाधिक बिक्री
👉कॉरपोरेट्स का बोलबाला

🔵फ़िरभी उसकी अंधभक्ति स्वयं के ऊपर मारा गया करारा तमाचा है‼️
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