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आसमानी किताब

कोइ भी किताब आसमानी नहीं हो सकती.कुरान की सीमा और कमियां अल्लाह की सीमा या कमी नहीं है बल्कि मोहम्मद साहब की सीमा या कमी है.अगर कुरान आसमानी होती तो अल्लाह को पता होता कि धरती गोल है न कि चटाई की तरह चपटी,आसमान शून्य है और उसमें कोइ सतह नहीं है,पहाड़
लम्बी भूगर्भीय प्रक्रिया से बने हैं और पूरी दुनिया २ या ४ दिन में नहीं बनी है.कुरान अगर अल्लाहरचित होता तो अल्लाह को पता होता कि आत्मा क्या है और चन्द्रमा का आकार कैसे बढ़ता-घटता है.ग्रहण क्यों लगता है और सूरज धरती का चक्कर नहीं लगाता बल्कि धरती सूरज के चक्कर लगाती है.
मित्रों,.क्या इस्लाम और राक्षसी संस्कृति में अद्भुत  समानता नहीं है? सवाल उठता है कि क्या इस्लाम को बदला जा सकता है? स्वयं कुरान की मानें तो कदापि नहीं (१०.३७).मगर सवाल उठता है कि लम्बे संघर्ष के बाद इसाई धर्म में बदलाव आ सकता है तो इस्लाम में सुधार क्यों नहीं हो सकता?
तुर्की,ईराक,सीरिया,ईरान,अफगानिस्तान,लेबनान,मालदीव आदि देशों में या तो कट्टरपंथी इस्लामिक क्रांति या तो घटित हो चुकी या अभी प्रक्रिया में है?पूरी दुनिया जबकि आगे जा रही है तो मुसलमान पीछे क्यों जा रहे?आखिर १४०० साल पहले दी गयी व्यवस्था को आज कैसे लागू किया जा सकता है?परिवर्तन तो
संसार का नियम है फिर इस्लाम को क्यों नहीं बदलना चाहिए?क्या इसी तरह से धरती अल्लाह के नाम पर निर्दोष इंसानों और पशुओं के खून से लाल होती रहेगी और काल्पनिक स्वर्ग के लिए वास्तविक स्वर्ग धरती को नरक बना दिया जाएगा.क्या इसी तरह स्त्रियों को हलाला जैसी वेश्यावृत्ति और पर्दा प्रथा को
भोगते रहना पड़ेगा.सवाल यह भी उठता है कि जिस तरह का व्यवहार मुसलमान अन्य धर्मावलम्बियों के साथ अपने अल्लाह के नाम पर सीरिया और इराक सहित पूरी दुनिया में कर रहे हैं अगर हम भी उनके साथ अपने भगवान के नाम पर वैसा ही करें तो क्या उनको पसंद आएगा?
ब्रज किशोर सिंह 🙏🙏
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