1/n मोहनदास गाँधी विशेष
मोहनदास गाँधी ने न केवल पैन-इस्लामिक ख़लीफ़ा शासन (Caliphate) का समर्थन किया, बल्कि इसे भारत की स्वराज्य प्राप्ति से भी अधिक महत्त्वपूर्ण बताया।
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इतिहासकार बताते है ‘असहयोग आन्दोलन’ 'स्वराज की माँग ' , 'रौलेट ऐक्ट विरोध ' और 'जलियाँवाला कांड' के लिए आरम्भ किया गया था। जबकि गाँधी द्वारा लाये गए प्रस्ताव के मूल ड्राफ्ट में केवल खिलाफत का ही मुद्दा था। दूसरे नेताओं के जोर देने पर बाक़ी मुददों को भी प्रस्ताव में डाला गया।
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मोहनदास गाँधी ने इस्लामिक कट्टरता और क्रूरता को न्यायोचित ही नहीं ठहराया बल्कि उसे जोर-शोर से बढ़ाया।
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इस्लामिक खिलाफत के समर्थन में मोहनदास गाँधी ने केरल के मुसलमानों द्वारा हज़ारों हिन्दुओं की हत्या और हिन्दू महिलाओं के बलात्कार को अनदेखा ही नहीं किया, बल्कि हिन्दुओं को ही इसका आरोपी बता दिया।
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कांग्रेसी और वामपंथी 'विशेषज्ञों' के अनुसार मोहनदास गाँधी का असहयोग आंदोलन (इस्लामिक खिलाफत आंदोलन का दूसरा नाम) विदेशी आक्रांताओं का शासन समाप्त करने के लिए 'स्वदेशी' और 'अहिंसा' के आदर्श पर खड़ा था।
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मोहनदास गाँधी ने आगे कहा कि मृत्यु से डरना नहीं चाहिए और हिन्दुओं को मुस्कुराकर मुसलमानों के द्वारा अपनी हत्या स्वीकार कर लेनी चाहिए, इससे एक नया भारत बनेगा।
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1920 के अपने पहले प्रयोग (खिलाफत आंदोलन) के बाद गाँधी ने उसके केवल 10 वर्ष पश्चात अपना ये दूसरा प्रयोग किया।
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