आप किस वर्ग से हैं ?
जिस परिवेश और शिक्षा व समाज व्यवस्था में आप और हम पले बढ़े हैं, वो परिवेश -विशेषकर नगरों में- हमें अपनी वैदिक व सांस्कृतिक जड़ों से बहुत दूर ले गया है और निरंतर ले जा रहा है। इस परिवेश में रह रहे अधिकतर भारतीयों का एक वर्ग है जिसे अपने भारतीय ज्ञान
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जिस परिवेश और शिक्षा व समाज व्यवस्था में आप और हम पले बढ़े हैं, वो परिवेश -विशेषकर नगरों में- हमें अपनी वैदिक व सांस्कृतिक जड़ों से बहुत दूर ले गया है और निरंतर ले जा रहा है। इस परिवेश में रह रहे अधिकतर भारतीयों का एक वर्ग है जिसे अपने भारतीय ज्ञान
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की वैज्ञानिकता का, उसके गुरुत्व का, उसकी दृढ़ता का, उसकी प्रासंगिकता का आभास तक नहीं है। ये वर्ग आधुनिक उपभोक्तावाद में, अपनी इन्द्रियों के अधीन, भोगों में इतना मग्न है कि उसका जागृत होना असंभव से लगता है।
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एक अन्य वर्ग ऐसा है जिसे आभास तो है, परंतु विश्वास नहीं है कि ये उतना महान है जितना बताया जाता है (मुख्यतः आधुनिक मध्यम वर्ग)। एक वर्ग ऐसा है जो इन सब से अपरचित तो नहीं किन्तु उसके विचारों का इतना पाश्चात्यिकरण और धर्मनिर्पेक्षिकरण हो चुका है
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कि वो भारतीय ज्ञान को केवल हिन्दू समाज का ज्ञान समझकर, उसे सामाजिक मंचों अथवा चाय की बैठकों से आगे चर्चा के योग्य नहीं समझता। या यूं कहिए उसे प्रासंगिक नहीं मानता। और इसी कारण उस ज्ञान का अर्जन तो करता है किन्तु उसका प्रयोग अपने जीवन में, अपनी जीविका उपार्जन में नहीं करता।
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अपनी संतानों को वह ज्ञान धरोहर, परंपरा या विशुद्ध ज्ञान के रूप में हस्तांतरित नहीं करता क्योंकि उसे इसकी उपयोगिता नहीं लगती। एक वर्ग ऐसा है जो केवल इसलिए विरोध करता है या अपनाता नहीं है क्योंकि ऐसा करना इस बात का सूचक होगा कि जो वह अभी जानता है या अभी कर रहा है, वह अपूर्ण है,
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त्रुटिपूर्ण है या दिशाहीन है। वर्तमान में उपलब्ध सभी कुछ को वह इतना अच्छा बता चुका है कि उसके कुछ अधिक अच्छा होने की संभावना क्षीण है, विशेषकर इतना प्राचीन ज्ञान तो कदापि नहीं! यह और बात है की
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साढ़े सात अरब में से 1000 व्यक्तियों पर कोई प्रयोग करके एक नया ‘ज्ञान का कौर’ (knwoledge bite) या पद्धति या निष्कर्ष घोषित कर देंगे और बड़े प्रकाशकों द्वारा उसे वितरित करवा देंगे तो इस वर्ग को वह ‘नई खोज’ पूर्णतया विश्वसनीय लगेगी।
और अंततः एक ऐसा वर्ग है
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और अंततः एक ऐसा वर्ग है
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जो निर्मलता से ये स्वीकार करता है कि वैदिक ज्ञान व न्यायोचित विवेक ऐसी अमूल्य पूंजी है, जो भारत में जन्म लेने पर हमें ईश्वर कृपा से व अपने ही प्रारब्ध के कर्मों के पुण्य से सहजता से उपलब्ध है। हमें इसका उपयोग करना है और इसके यथोचित अर्जन व प्रयोग से अपना, अपने बंधु-बांधवों का
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अपने समाज का व अपने राष्ट्र का हित व विकास करना है।
जरुर बताएं .......ईमानदारी से :)
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जरुर बताएं .......ईमानदारी से :)
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