" भारतीय शिल्पकला की अद्भुत प्रतिकृति "

मूर्ति के हाथ मे जो डमरू देख रहे हो ना,वो पत्थर का बना है,ये तो कुछ भी नही है,डमरू पर जो रस्सी देख रहे हो ना,वह भी पत्थर की है,और तो और आप पत्थर की रस्सी के नीचे से उंगली भी निकाल सकते है इतनी जगह है,इतनी जगह है,हुआ ना आश्चर्य,
अब जरा सोचिए बिना किसी तकनीक के क्या केवल छैनी और हथौड़ी से यह सब कैसे संभव है..!

एक हल्की सी गलत चोट क्या पूरी मूर्ति को खराब नहीं कर सकती थी..
और अगर छैनी - हथौड़े से संभव है भी तो आज इतनी तकनीक के बावजूद भी इतनी सटीकता से कोई इसकी प्रतिलिपि क्यों नहीं बना पाता है..?
ऐसे हजारों आश्चर्य है सनातन संस्कृति में लेकिन कुछ वामपंथी इतिहासकारों ने स्वार्थवश इनको आश्चर्य ही रहने दिया किसी के सामने आने ही नहीं दिया और हमारी विडंबना देखिए कि हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन हमें हमारे पूर्वजों द्वारा बनाई गई इन महान कलाकृतियों का ज्ञान भी नहीं है,
यह मूर्ति केशव मंदिर कर्नाटक में स्थित है

धन्य है हमारे वह पूर्वज जिन्होंने यह सब कुछ बनाया व धन्य है हमारी सनातन संस्कृति
प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है कि अपने पूर्वजों की धरोहरों को संजोये व सनातन संस्कृति की महानता से देश व विश्व को परिचित कराये

#सनातन_संस्कृति_हमारी_पहचान
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