#श्रृंखला
|| भक्ति मार्ग ||
तीनों लोकों तथा चारो युगों मे भक्ति के समान दूसरा कोई भी मार्ग सुखदायक नही, परमात्मा के भक्तिरूपी इस सरोवर जो मनुष्य मत्स्य की भांति गोते लगा लेता है, वह निश्चित रूप से भव सागर से पार पाता है, दूसरे युगों की अपेक्षा कलयुग मे महासुखदायक है,
|| भक्ति मार्ग ||
तीनों लोकों तथा चारो युगों मे भक्ति के समान दूसरा कोई भी मार्ग सुखदायक नही, परमात्मा के भक्तिरूपी इस सरोवर जो मनुष्य मत्स्य की भांति गोते लगा लेता है, वह निश्चित रूप से भव सागर से पार पाता है, दूसरे युगों की अपेक्षा कलयुग मे महासुखदायक है,
कारण है मनुष्यों मे ज्ञान और वैराग्य दोनो का ही आभाव ।
भक्ति ही ऐसा मार्ग है जिससे परमात्मा सदैव ही हमपर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखते है, जो भक्तों से अनायास शत्रुता करें वो सदैव ही दंडनीय है,
जो भक्ति ह्रदय से आत्मसमर्पण के साथ शास्त्र प्रेरित भक्ति होती है,
भक्ति ही ऐसा मार्ग है जिससे परमात्मा सदैव ही हमपर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखते है, जो भक्तों से अनायास शत्रुता करें वो सदैव ही दंडनीय है,
जो भक्ति ह्रदय से आत्मसमर्पण के साथ शास्त्र प्रेरित भक्ति होती है,
वह श्रेष्ठ अथवा जो भक्ति कामनापूर्ति से भरी वह सदैव ही निम्नकोटी की भक्ति कहलाती है, ये दोनों ही प्रकार की भक्तियाँ नैष्ठि और अनैष्ठि के दृष्टि से दो प्रकार की है ,
-नैष्ठि मे छः प्रकार तथा
-अनैष्ठि के एक प्रकार ।
-नैष्ठि मे छः प्रकार तथा
-अनैष्ठि के एक प्रकार ।
मुख्य रूप से भक्ति के दो प्रकार है -
1) सगुण
2) निर्गुण
निर्गुण तथा सगुण दोनों के ही नौ अंग बताए गए हैं, जो कुछ इस प्रकार से है -
1) सगुण
2) निर्गुण
निर्गुण तथा सगुण दोनों के ही नौ अंग बताए गए हैं, जो कुछ इस प्रकार से है -
●श्रवण - भक्तिभाव मे डूब कर प्रभु के कीर्तन को प्रसन्नता हे सुनना।
●कीर्तन- प्रभु की महीमा को गीतबाध्य कर सुन्दर चीत मन से भजन साधन करना।
●स्मरण-
~ हर प्रकार के भय पर विजय प्राप्त कर , परमात्मा को स्मरण करना। (निर्गुण भक्ति)
●कीर्तन- प्रभु की महीमा को गीतबाध्य कर सुन्दर चीत मन से भजन साधन करना।
●स्मरण-
~ हर प्रकार के भय पर विजय प्राप्त कर , परमात्मा को स्मरण करना। (निर्गुण भक्ति)
~ भोर भये से सांझ ढले तक भगवद्विग्रह की सेवा करना। (सगुण)
●सेवन - सभी इंद्रियों का नियंत्रण और अनुशासन और वेद द्वारा निर्धारित पुण्य के मार्ग का अनुसरण ।
●दास्य- ह्रदय मे बसे भक्तिरूपी अमृत से सदा ही प्रभु की भक्ति करना।
●सेवन - सभी इंद्रियों का नियंत्रण और अनुशासन और वेद द्वारा निर्धारित पुण्य के मार्ग का अनुसरण ।
●दास्य- ह्रदय मे बसे भक्तिरूपी अमृत से सदा ही प्रभु की भक्ति करना।
●अर्चन- स्वयं को प्रभु किंकर जानकर सदैव ही पूजन अर्चना के साथ प्रभु भक्ति मे लीन रहना ।
●वन्दन- मन मे प्रभु को बसाकर मंत्रो के उच्चारण कर इष्टदेव को अष्टांग प्रणाम करना।
●वन्दन- मन मे प्रभु को बसाकर मंत्रो के उच्चारण कर इष्टदेव को अष्टांग प्रणाम करना।
● सख्य- प्रभु पर अटूट विश्वास रख, मंगल या अमंगल दोनो मे ही अपना हीत समझना।
●आत्मसमर्पण-निर्वाह चिन्ता से रहित होकर प्रभु के प्रति समर्पण ।
महाशिवपुराण के अनुसार इन सभी भक्ति मार्गों को सदैव ही मोक्ष तथा भोग प्रदान करने वाले बताए गये है !
Source: महाशिवपुराण!
●आत्मसमर्पण-निर्वाह चिन्ता से रहित होकर प्रभु के प्रति समर्पण ।
महाशिवपुराण के अनुसार इन सभी भक्ति मार्गों को सदैव ही मोक्ष तथा भोग प्रदान करने वाले बताए गये है !
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