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|| ताजमहल का काला सच ||

हम सदियों से सुनते आ रहे हैं कि आगरा मे स्थित संगमरमर की वो मीनारें प्रेम का प्रतीक है, ना जाने कितने गानों मे भी इसे दर्शाया गया है परन्तु क्या सच मे वो प्रेम का प्रतीक है ? या प्रतीक है मुगलों द्वारा की गयी सनातन संस्कृति एक और आघात का...
भ्रष्टाचार और क्रूरता का ?

ये श्रृंखला P.N .Oak द्वारा लिखित पुस्तक " ताजमहल मंदिर भवन है" पर आधारित है , इस किताब मे दिये गये तथ्यों को पढ़कर ये स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है कि इतिहास मे कितनी हेरा- फेरी की गई है ।

किसी भी ऐतिहासिक इमारतों पर दो प्रकार से विचार कलना चाहिए-
1.उसका आकार,विस्तार, रंग-रूप और उसमें अंकित चिह्न।
2.उसके निर्माण सम्बंधित दिया जाने वाला दस्तावेज।

और ताजमहल को इन दोनों ही प्रकार से विचार करने पर झूठ के स्याही से लिखा स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है, क्योंकि ताज महल मे ऐसे अनेक चिह्न पाये गये है जिनका महत्व सनातन परंपरा से..
जुड़ा हुआ है ना कि इस्लामी,जैसे..

●ताजमहल के गुम्बद मे आवाज़ प्रतिध्वनित करने का गुण, कब्र मे शांति के स्थान पर आवाज गूँजे ऐसी गुण वाले गुम्बद क्या तर्कसंगत है? जबकि सनातन परंपरा के अनुसार यह प्रतिध्वनित गुण मंदिरों मे होना आवश्यक है, जिससे ताल, शंख, घटायें की ध्वनि गूंजती हुई
प्रतीत होती है ।

● ऐसे ही अनेक उदाहरण लेखक ने बताया है जैसे, मुमताज की कब्र की चारों ओर संगमरमरी जाली पर बना 108 कलश चिह्न, ताजमहल के चारों कोनों पर खडे के चार स्तम्भ- ये भी वैदिक परम्परा के अंग है, सत्यनारायण पूजा हो या विवाह का मण्डप,
हर पूजा स्थल पर चार स्तम्भों का होना सनातन धर्म मे पवित्र माना जाता है, ताजमहल का अष्ठकोणी आकार, उसके गुम्बद पर लगा अष्टधातु का कलश, चारों दिशाओं मे उसके द्वार होना, उसके अष्टकोनों के जालियों पर बने वो गुलाबी रंग के कमल के फूल,
कब्र के मध्य लटक रही जंजीर जहाँ कभी महादेव पर जलसिचंन करने वाला स्वर्ण कलश हुआ करता था, ताजमहल के शिखर पर चार कोनों मे चार छत्र और बीच मे गुम्बद यह हिन्दु पंचरत्न का प्रतीक है, इन सारे चिह्नों का सनातन संस्कृति मे क्या महत्व है ये सब जानते है
●विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक ग्रन्थ हमे विविध प्रकार के शिवलिगों मे तेजोलिंग का भी वर्णन मिलता है, लेखक की माने तो इस लिंग के यहाँ स्थापित होने के कारण ही इस स्थान को तेजोमहल के नाम से जाना जाता है,
● माना जाता है आगरा मे श्रावण मास मे भक्त रात्रि के भोजन से पूर्व पाँच शिवलिंगो का दर्शन कर पूजा अर्चना करते थे, परन्तु वर्तमान समय मे केवल बलकेश्वर, मालकेश्वर,मनकामेश्वर तथा राज राजेश्वर ही पूजे जाते है, वहीं पाँचवाँ मंदिर जो कि नाग नागेश्वर
के रूप मे जाना जाता था उसे बडी ही चतुराई से कब्र का रूप दे दिया गया। किसी बादशाह ने जब इतनी ही लागत से अपनी बेगम के याद मे महल बनवाया तो इस इस बारे मे शाहजहाँ के सरकारी दस्तावेजों मे उपलब्ध क्यों नही है?

अब इतना बड़ा महल बनवाने पर नक्शे की तो आवश्यकता पडेगी ही उसका उल्लेख क्यूँ
नहीं है, और तथाकथित नक्शे के कारीगरों के नाम मे मतभेद क्यों ?

अब जब मुमताज इतनी ही प्रिय थी शाहजहाँ को तो उसे तो पूरे राजसी ठाट-बाट से दफनाया गया होगा,उसका उल्लेख क्यों नहीं है ?

सन् 1652 औरंगजेब ने शाहजहाँ को भेजे गये पत्र मे लिखा है कि ताजमहल की गुम्बद इतनी पुरानी हो चुकी है
की उसमे से पानी टपकती है उसने स्वयं अपने खर्चे से ताज की मरम्मत की बाय कही, इससे यह सिद्ध होता है की वह शाहजहाँ के काल मे ही इतनी पुरानी हो गयी थी की उसे मरम्मत की आवश्यकता आन पडी।

VINCENT STNITH ने अपने AKBAR THE GREAT MOGHUL नामक एक किताब मे लिखा है कि बाबर का जीवन सन् 1530 मे
आगरा के उद्यान महल मे समाप्त हुआ, वह उद्यानमहल ताजमहल ही था, इससे पहले भी बाबर की पुत्री ने हुमायूँनामा मे

"रहस्यपूर्ण महल" तथा बाबर ने बाबरनामा( उस महल कि एक केन्द्रीय अष्टकोना कक्ष है और चारों कोनों पर मीनारें हैं- बाबरनामा) मे ताजमहल का उल्लेख मिलता है।
इन दस्तावेजों के आधार पर कैसे इस झूठ को सच मान लिया जाए कि ताजमहल का निर्माण तथाकथित सुख समृद्धि से भरे शासक शाहजहाँ ने करवाया है जबकि सत्य तो है कि उसके शासन काल मे कइ बार ऐसे भयंकर आकाल पडे है जिससे जनता...
को कुत्ते-बिल्लियों का मास खाना पडा , हाँ पर ताजमहल (तेजो महल ) को महाराज जयसिंह से जब्त कर लेने के पश्चात उसे मयूर सिंघासन अवश्य प्राप्त हुआ।

Britanicca Encyclopedia के अनुसार ताजमहल परिसर मे अतिथि गृह, पहरेदारो के कक्ष, अश्वशाला, गौशाला आदि है
परन्तु एक मृतक के लिए इसकी क्या आवश्यकता ?

मुगलों द्वारा तो भारत के इतिहास मे हेरा फेरी हुई ही , परन्तु इसमें कांग्रेस सरकार भी कहाँ पीछे थी ? -

सन् 1952 के आसपास जब S.R RAO ने ताजमहल पर ASI के प्रमुख नियुक्त थे, ताजमहल के मरम्मत करते वक्त ईंटों को निकलवाने की आवश्यकता पडी उसे
निकालने पर अष्टधातु मूर्तियां बाहर दिखाई पडने लगी ,इस विषय पर नेहरू सरकार से बात करने पर आदेश यह मिला कि जहाँ से मुर्तिया निकलीं उन्हें वहीं बन्द करवा दी जाए, उसके पश्चात् जब T.N Padmanabhan जब अधिकारी नियुक्त तब भी मुर्तिया मिली पर ज्यों ही साक्ष्य
मिलते गये उन्हे दूर कहीं ले जा कर नेहरू सरकार छिपाता रहा, इतना ही नही इंदिरा गाँधी की सरकार ने पूरी कोशिश करी P.N Oak द्वारा लिखित इस किताब को बाजार मे ना आने देने कि, प्रिंटिंग प्रेस वालो पर दबाव भी बनाये गये परन्तु सत्य परेशान हो सकता है किन्तु पराजित नहीं,
दुः खद है लोग ताजमहल को देखने तो जाते है किन्तु नेत्रों पर भ्रमरूपी पट्टी बांधकर, क्योंकि देखते तो वह वही है जो Guide उन्हे दिखाता है।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारियाँ 😊🙏
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