#जंगल_जंगल_बात_चली_है
वाघोबा आला पळा पळा

जंगल में पिछले दिनों से बड़ी उथल पुथल थी। सरकार भेड़ियों और कानून व्यवस्था चिम्पांजियों के हाथ में आ गई थी। भेड़ियों ने मिलकर एक नए जानवर को राजा बना दिया था।
उसकी खूबी यह थी कि उसके पास शेर की खाल थी जिसको ओढ़कर, वह पैने दांत दिखाकर कहता मैं शेर हूँ, मैं शेर हूँ।
राजा का सलाहकार था एक सियार, जिसका नाम था हो-सियार। हो-सियार हो-सियारी भी करता और हो-सायरी भी। वो जो कहता राजा आँख मूँद कर मान लेता।
हो-सियार राजा को चने के झाड़ पर चढ़ाते हुए, जोर जोर से चिल्लाते हुए जानवरों को डराता और कहता-वाघोबा आला पळा पळा।
राजा को लगता उसका बड़ा रौब है और खुश हो जाता।
राजा तो जो था सो था, लेकिन सबसे मजेदार तो उसका बच्चा था, दो पैरों पर ठुमक ठुमक कर चलता था।
जंगल में ऐसा प्राणी पहले कभी नहीं देखा गया। उसके पर भी थे और चोंच भी। सारे जंगल में उसके चर्चे होने लगे। उसे जो देखता तो पूछता-ये पेंगुइन का बच्चा है क्या? और वह इससे चिढ जाता।
वो अपनी शेर वाली खाल ओढ़ता और तुतला कर कहता- मैं शेल हूँ, मैं शेल हूँ। सब पशु पक्षी हंसने लगते
और हो-सियार सबको भगाता रहता। पूरे जंगल की परेशानियों में बस एक यही मनोरंजन था।
लकड़बग्घों, लोमड़ियों और सियारों की मौज हो गई थी। नए राज में गीदड़ और बन्दर सबसे ज्यादा खुश थे। गीदड़ों को जो चाहे खाने की छूट थी और बन्दरों को ऊधम पाट की।
तमाशा दिखाने वाले बन्दर तो कहते कि ये सबसे अच्छा राजा है और तारीफ करते करते दांत निकालकर, अपनी पूँछ के बल पेड़ों पर उल्टे लटक जाते।
दिनभर एक दूसरे के जुएँ बीनकर खाने वाले नई सरकार के जुएँ बीनते और उसे खुश करते रहते।
सियारों का सरकार में बहुत सत्कार था।
इसका कारण था जंगल की ख़बरों पर कब्जा। सियारों ने जंगल की वो सब ख़बरें गायब कर दीं जिससे सरकार की किरकिरी होती। यहाँ तक कि एक सियार ने यह तक कह दिया कि जंगल में जो राजा का बच्चा है, उसके आने से जंगल में रौनक है। वही वास्तव जंगल का राजा बनने के योग्य है।
क्योंकि उसके के पास शेर की खाल है,और उसकी छवि बड़ी मोहिनी है। और वो पेंगुइन तो बिलकुल नहीं है। बाकी पशु उससे जलते हैं और डरते हैं। इसलिए उसकी छवि खराब करने की चालें चलते हैं। राजा को इससे बड़ी तसल्ली मिलती। सियारों ने ऐसा जाल बिछाया कि राजा को लगा कि अब तो जंगल में मंगल है।
लेकिन जंगल में मंगल नहीं था दंगल हो रहा था। व्यवस्थाएं चरमराने लगी थीं।पशु पक्षी परेशान थे।राज के साथ जो सबसे ज्यादा बदला,वो था चिम्पांजियों का व्यवहार। चिम्पांजियों ने देख लिया था कि राज करने वाले ही छद्म भेष धर कर बैठे हैं तो वे भी कानून व्यवस्था छोड़कर दिन भर ठिठोली करते रहते।
हर जानवर को चिढ़ाते और जो नई सरकार के विरुद्ध कुछ बोलता उसे उठाकर पेड़ से उल्टा लटका देते। और धमकी देते कि चिम्पांजियों, नई सरकार और नए राजा के विरोध में कोई बोलेगा तो उसके खिलाफ जंगल के नए कानून के हिसाब से कार्यवाही की जाएगी।
एक दिन गीदड़ों ने अपने स्वभाव के अनुसार जंगल से गुजर रहे खरगोशों की घेरकर निर्मम हत्या कर दी थी, कानून व्यवस्था संभालने वाले चिम्पांजी सामने देखते रहे।
सभी जंगल के निवासियों में भारी रोष था। उन खरगोशों ने किसी का क्या बिगाड़ा था? बस इसलिए मारे गए क्योंकि खरगोश थे?
वे तो शिकार करने लायक नही थे।

एक पोपट (तोता) कुछ अधिक क्रोधित हो गया, उसने कहा शेर की खाल ओढ़कर कोई शेर नहीं हो जाता।राज चलाना इनके बस में नहीं है।रस्ते में जाते खरगोशों को मारने वाले गीदड़ हैं। इस घटना पर चुप रहने वाले निर्मम हैं। राजा जी उत्तर द्या, राजा की मम्मी ला-रिसपोस्ता।
इतनी सी बात पर चार चिम्पांजी आए और उसे उठा कर ले गए और दिन भर उल्टा लटकाकर रखा। पोपट फिर भी न माना।
कुछ न कुछ शोर मचाता रहा। चिम्पांजी चाहते तो उसकी गर्दन मरोड़ देते लेकिन फिर सोचा ये शोर मचाता है लोगों की नजरों में है, अगर शोर नहीं मचाएगा तो लोग राजा पर ऊँगली उठाएंगे।
इसलिए उसे सही समय के लिए छोड़ दिया।

जंगल का माहौल ऐसा हो गया था कि खरगोशों ने निर्णय लिया कि वो अब नाखून बड़े और पैने रखा करेंगे। गिलहरियों ने कहा अब तो वो भी माँस खाने की आदत डालने लगीं। मूंगफली लोमड़ियां नहीं खोदने देंगी और फल चिम्पांजी नहीं तोड़ने देंगे।
जीने के लिए गिलहरियां हड्डियों से माँस नोच कर खाने लगीं।

ऐसे ही एक दिन एक और प्राणी जंगल में मृत पाया गया।

चिम्पांजियों ने कहा कि यह तो आत्महत्या है।
सियारों ने कहा यह तो आत्महत्या है।
सरकार ने कहा यह तो आत्महत्या ही है।
हो-सियार ने कहा राजा का बच्चा निर्दोष है।
नीली चिड़िया ने पूछा - ये बीच में राजा का बच्चा कहाँ से आया? कुछ गड़बड़ है।

बंदरों ने कहा-यह आत्महत्या ही है। राजाजी जिंदाबाद।

नीली चिड़िया ने पूछा जंगल में आत्महत्या कौन करता है? हमको तो लगता है किसी ने मारा है। जाँच कराओ।
चिम्पांजियों ने मामले को टालते हुए कहा जांच की क्या बात है? देख तो लिया आत्महत्या है।
सियारों ने खबर फैलाई जंगल में अपने आप से दुखी एक पशु ने आत्महत्या की, इसमें सरकार का कोई दोष नहीं। राजा का बच्चा जो पेंगुइन जैसा दिखता तो है लेकिन वो तो घोंसले से निकला ही नहीं।
नीली चिड़िया ने पूछा सरकार के दोष की तो बात ही नहीं ? ये बात कहाँ से आई? जांच तो करो, सच तो सामने लाओ।

चिम्पांजियों ने कहा-जांच की जरूरत नहीं। हमने सब देख लिया। मामला रफा दफा। कोई इतना भी बड़ा जानवर नहीं था।
इतने में एक शिकारी चील ऊपर से जंगल के हालात देखने लगा। चिम्पांजियों ने उसको नीचे बुलाया और पकड़ कर उल्टा टांग दिया।

नीली चिड़िया ने शोर मचाया। उसपर पोपट भी चिल्लाया। कुछ गड़बड़ है, कुछ गड़बड़ है।

मामला उलझ गया तो बंदरों ने एक चाल चली। बोलने लगे हाँ, हाँ, मिलकर जांच कराओ।
जो भी है मामला सामने लाओ। लेकिन राजा के बच्चे को मत उलझाओ। उसके पंजों के निशान वहां नहीं हैं।

नीली चिड़िया ने बोला- देखो दोषी, ये भी दोषी वो भी दोषी, सारे दोषी। तुम सब पेंगुइन को बचा रहे हो। कुछ गड़बड़ है, जांच करो।
एक चिड़िया ने हाथी के सामने अर्जी लगाई -
हाथी राजा बहुत बड़े, सूंड उठाकर कहाँ चले,
इसपर जाँच बिठाओ न, सच को सामने लाओ न।

आखिरकार हाथी ने कहा - जांच बिठाओ। सबसे तेज सूंघने वाले, जाओ जाओ, जल्दी जाओ।

जंगल में पशु पक्षी प्रसन्नता से कलरव करने लगे।
सियारों ने कहा - ये खुश क्यों होते हैं? क्या न्याय ही मिल गया है?
नीली चिड़िया ने कहा - न्याय तो बाद की बात है, कम से कम जांच तो होगी।
एक लंगूर ने कहा- बस हाथी जांचेंगे? डायनासोर नहीं जांचेंगे?
नीली चिड़िया ने कहा जब तुम लंगूरों की बारी आएगी वो भी जांचेंगे।
एक सियार चिल्लाया - अब क्या न्याय मिलेगा? दाल में काला है काला।
नीली चिड़िया ने कहा - तुम्हारा मुंह काला है।
पोपट ने जब यह खबर सुनी तो चीख पड़ा। उछल पड़ा। पंख फड़फड़ा कर बोला चिम्पांजियों स्तीफा दो। उसकी टाँय टाँय से जंगल गूँज उठा।
राजा ने तुरंत एक सभा बुलाई और चिम्पांजियों ने फरमान निकाला कोई भी नाक वाला जानवर जंगल में हमसे पूछे बिना नहीं घूमेगा। सूंघना अभी मना है।
हो-सियार ने कहा - अगला पोपट .....
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