बहुत सारे अन्य धर्मों में ऐसा है, लेकिन हिन्दू धर्म में ऐसा नहीं है, क्योंकि ये धर्म किसी एक व्यक्ति के प्रवर्तन से उत्पन्न नहीं हुआ, बल्कि ये मानव विकास के साथ विकसित हुआ है। और ये अपने मूल विचारों का पुनरावलोकन कारण से नहीं डरता, क्योंकि हमारे यहाँ (1/n) https://twitter.com/hvgoenka/status/1292324432283746304?s=19
शास्त्रार्थ की परंपरा रही है। ये धर्म वैज्ञानिक सोच और नए विचारों का सदा खुली बाँहों से स्वागत करता रहा है, तभी हमारे यहाँ रीति-नीति और आयुर्वेद से लेकर काम शास्त्र तक पर महाग्रंथ लिखे गए हैं। और सहिष्णुता तो देखिए, यदि कृष्ण सा कोई किसी और धर्म में होता तो कब का उन्हें मौत (2/n)
के घाट उतारा जा चुका होता ईशनिंदा के आरोप में, किन्तु कृष्ण इंद्र की सत्ता को खुली चुनौती देते हैं, वेदों को मानने वालों को अविवेकी तक कहते हैं, और वे हमारे एकमात्र पूर्ण अवतार हैं!

अंत में, धर्म और विज्ञान परस्पर विरोधी नहीं हैं, साथ चल सकते हैं अतः ये तुलना ही निरर्थक है।(3/3)
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