ब्राह्मण..
त्रेता युग में क्षत्रियों का शासन था महाभारत काल मे यादव क्षत्रियों का शासन था
उसके बाद दलित-मौर्य और बौद्धो का राज था!
उसके बाद 600 साल मुसलमान बादशाह(अरबी लुटेरों) का राज था।
फिर 250 साल अंग्रेज का राज था।
पिछले 70 वर्षों से अंबेडकर का संविधान राजकाज चला रहा है
त्रेता युग में क्षत्रियों का शासन था महाभारत काल मे यादव क्षत्रियों का शासन था
उसके बाद दलित-मौर्य और बौद्धो का राज था!
उसके बाद 600 साल मुसलमान बादशाह(अरबी लुटेरों) का राज था।
फिर 250 साल अंग्रेज का राज था।
पिछले 70 वर्षों से अंबेडकर का संविधान राजकाज चला रहा है
किन्तु फिर भी सब पर अत्याचार ब्राह्मणों द्वारा किया गया
ब्राह्मणों को गाली देना,कोसना,उन्हें कर्मकांडी,पाखंडी,लालची,भ्रष्ट,ढोंगी जैसे विशेषणों के द्वारा अपमानित करना आजकल ट्रेंड में है।कुछ लोग ब्राह्मणों को सबक सिखाना चाहते हैं,उन्हें मंदिरों से बाहर कर देना चाहते हैं वगैरह-वगैरह
ब्राह्मणों को गाली देना,कोसना,उन्हें कर्मकांडी,पाखंडी,लालची,भ्रष्ट,ढोंगी जैसे विशेषणों के द्वारा अपमानित करना आजकल ट्रेंड में है।कुछ लोग ब्राह्मणों को सबक सिखाना चाहते हैं,उन्हें मंदिरों से बाहर कर देना चाहते हैं वगैरह-वगैरह
कुछ तथाकथित रूप से पिछड़े लोगों को लगता है कि ब्राह्मणों की वजह से ही वो 'पिछड़े' रह गये हैं, दलितों की अपनी दलीलें हैं, कभी-कभी अन्य जातियों के लोगों के श्रीमुख से भी इस तरह की बातें सुनने को मिल जाती हैं, इसी के साथ गालियाँ भी सुनने को मिलती रहती हैं।
आमतौर से यह धारणा बनाई जा रही है कि ब्राह्मणों की वजह से समाज पिछड़ा रह गया है, लोग अशिक्षित रह गये हैं, समाज जातियों में बंट गया है, देश में अंधविश्वासों को बढ़ावा मिला है.. वगैरह-वगैरह।
आज, ऐसे सभी माननीयों महाशयों को हृदय से धन्यवाद देते हुए मैं आपको जवाब दे रहा हूं... इस वैधानिक चेतावनी के साथ कि मैं किसी प्रकार की जातीय श्रेष्ठता में विश्वास नहीं रखता हूं ना ही मैं किसी प्रकार जातिवादी भावना रखता हूं।
लेकिन आप जान लीजिये- वो विष्णुगुप्त चाणक्य जिन्होंने अत्याचारी दुराचारी खुद को मगध समझने वाला घनानंद से गरीबों पिछड़ों दलितों को इस भ्रष्टाचार से बचाया और संपूर्ण मगध साम्राज्य को संकटों से मुक्ति दिलाया और एक सडक पर खेलते हुए बच्चे को अखंड भारत का सम्राट बना दिया।
भारत देश में जनहितैषी गरीबों पिछड़ों दलितों और सभी के एक उत्तम सरकार की स्थापना कराई, भारत की सीमाओं को फारस तक पहुंचा दिया और कालजयी ग्रन्थ 'अर्थशास्त्र' की रचना की (जिसे आज पूरी दुनिया पढ़ रही है) वो कौटिल्य ब्राह्मण थे। इतना कहना "समुद्र में से एक बूंद है सिर्फ"..
आदि शंकराचार्य जिन्होंने संपूर्ण हिंदू समाज को एकता के सूत्र में बांधने के प्रयास किये, 8वीं सदी में ही पूरे देश का भ्रमण किया, विभिन्न विचारधाराओं वाले तत्कालीन विद्वानों-मनीषियों से शास्त्रार्थ कर उन्हें हराया।
भारत देश के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना कर हर हिंदू के लिए चार धाम की यात्रा का विधान किया, जिससे आप इस देश को समझ सकें जिसकी विविधता में एकता स्थापित किया। वो आदिगुरू शंकराचार्य ब्राह्मण थे।


कर्नाटक के जिन लिंगायतों को कांग्रेसी हिंदूओं से अलग करना चाहतें हैं, उनके गुरु और लिंगायत के संस्थापक- बसव- भी ब्राह्मण थे।
भारत में सामाजिक-वैचारिक उत्थान, विभिन्न जातियों की समानता, छुआछूत-भेदभाव अस्पृश्यता के खिलाफ समाज को एक करने वाले भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत रामानंद, (जो केवल कबीर के ही नहीं बल्कि संत रैदास के भी गुरु थे) वे भी ब्राह्मण थे।


आज दिल्ली में जिस भव्य अक्षरधाम मंदिर के दर्शन करके दलितों समेत सभी जातियों के लोग खुद को धन्य मानते हैं, उस मंदिर की स्थापना करने वाला स्वामीनारायण संप्रदाय है जिसके जनक घनश्याम पांडेय भी ब्राह्मण थे।
वक्त के अलग-अलग कालखंड मे हिंदू समाज में व्याप्त हो चुकी बुराईयों को दूर करने के लिए 'आर्य समाज' व 'ब्रह्म समाज' के रूप में जो दो बड़े आंदोलन देश में खड़े हुए,इन दोनों के ही जनक क्रमश: स्वामी दयानंद सरस्वती व राजा राममोहन राय(जिन्होंने हमें सती प्रथा से मुक्ति दिलाई) ब्राह्मण थे।
भारत में विधवा विवाह की शुरुआत कराने वाले ईश्वरचंद्र विद्यासागर भी ब्राह्मण थे। इन सभी संतों ने जाति-पांति, छुआछूत, भेदभाव के खिलाफ समाज को जागरुक करने में अपना जीवन खपा दिया- लेकिन समाज नहीं सुधरा।
भगवान श्रीराम की महिमा को 'श्रीरामचरित मानस' के जरिये घर-घर तक जन जन की भाषा में पहुंचाने वाले बाबा तुलसीदास और भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति की लहर पैदा करने वाले वल्लभाचार्य भी ब्राह्मण थे।
ये भी याद रखिये- मंदिरों में ब्राह्मणों का वर्चस्व था, जैसा कि आप लोग कहते हैं, फिर भी भारत में भगवान परशुराम (ब्राह्मण) के मंदिर सामान्यत: नहीं मिलते। ये है ब्राह्मणों की भावना।अगर उनका वर्चस्व होता तो हर शहर हर गांव में भगवान परशुराम जी का मंदिर होता।
विदेशी आधिपत्य के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह का बिगुल बजाने वीरो मे से अधिकांशतः ब्राह्मण थे।अंग्रेजों की तोपो के सामने सीना तानने वाले मंगल पांडेय, रानी लक्ष्मीबाई, अंग्रेज अफसरो के लिए दहशत का पर्याय बन चुके चंद्रशेखर आजाद,फांसी के फंदे पर झूलने वाले राजगुरु - ये सभी ब्राह्मण थे।
वंदेमातरम जैसी कालजयी रचना से पूरे देश में देशभक्ति का उत्साह उमंग साहस और वीरता पैदा करने वाले बंकिमचंद्र चटर्जी, जन-गण-मन के रचयिता रविंद्र नाथ टैगोर ब्राह्मण, देश के पहले आईएएस (तत्कालीन ICS) सत्येंद्रनाथ टौगोर भी ब्राह्मण।
स्वतंत्रता आंदोलन के नायक गोपालकृष्ण गोखले (गांधी जी के गुरु), बाल गंगाधर तिलक, राजगोपालाचारी भी ब्राह्मण थे। भारत के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में से लाल बहादुर शास्त्री जी कविकुल के श्रेष्ठ अटल बिहारी वाजपेयी जी भी ब्राह्मण थे।
नेहरु सरकार से त्यागपत्र देने वाले पहले मंत्री जिन्होंने पद की बजाय जनहित के लिए संघर्ष का रास्ता चुना और कश्मीर के सवाल पर अपने प्राणों की आहुति दी- वो डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी ब्राह्मण थे।
बीजेपी के सबसे बड़े सिद्धांतकार पंडित दीनदयाल उपाध्याय,हिंदू समाज की एकता,जातिविहीन समाज की स्थापना और सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना के लिए खड़ा हुआ दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन- RSS- की नींव एक गरीब ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाले पूज्य डॉ. हेडगेवार जी ने डाली थी।
उन्होंने अपने खून का कतरा-कतरा हिंदूओं को ताकत देने और उन्हें एकसूत्र में पिरोने में खपा दिया, केवल ब्राह्मणों की चिंता नहीं की। संघ के दूसरे सरसंघचालक- डॉ. गोलवलकर- जिन्होंने संपूर्ण हिंदू समाज को ताकत देने के लिए सारा जीवन समर्पित कर दिया- वो भी ब्राह्मण थे।
यही नहीं, देश में पहली कम्यूनिस्ट सरकार केरल में बनाने वाले नंबूदरीपाद समेत मार्क्सवादी आंदोलन के कई प्रमुख रणनीतिकार ब्राह्मण ही थे।बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय की नींव एक ब्राह्मण ने ही रखी थी महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने।
समकालीन नेताओं की बात करें तो तमिलनाडु में जयललिता ब्राह्मण थीं,
मायावती, जिन्होंने 'तिलक-तराजू और तलावर, इनको मारो जूते चार' जैसा अपमानजनक नारा बार-बार लगवाया, उन पर जब लखनऊ के गेस्ट हाउस में सपा के गुंडों ने जानलेवा हमला किया,
मायावती, जिन्होंने 'तिलक-तराजू और तलावर, इनको मारो जूते चार' जैसा अपमानजनक नारा बार-बार लगवाया, उन पर जब लखनऊ के गेस्ट हाउस में सपा के गुंडों ने जानलेवा हमला किया,
उन्हें मारा-पीटा, उनके कपड़े फाड़े, और शायद उनकी हत्या करने वाले थे, उस समय जान पर खेलकर उन गुंडों से लड़ने वाले और मायावती को सुरक्षित वहां से निकालने वाले स्वर्गीय ब्रह्मदत्त द्विवेदी भी ब्राह्मण थे।
फिर भी, जिन्हें लगता है कि ब्राह्मण केवल मंदिर में घंटा बजाना जानता है- वो लोग ये भी जान लें कि भारत के इतिहास का सबसे महान घुड़सवार योद्धा और सेनानायक - जो 20 साल के अपने राजनीतिक जीवन में कभी कोई युद्ध नहीं हारा था। नाम तो सुने ही होंगे
जिसने मुस्लिम शासकों के आंतक से कराहते देश में भगवा पताकाओं को चारों दिशाओं में लहरा दिया और जिसे बाजीराव-मस्तानी फिल्म में देखकर आपने भी तालियां ठोंकी होंगी, - वो बाजीराव बल्लाल भी ब्राह्मण था।
जिस लता मंगेशकर की आवाज को ये देश सम्मोहित होकर सुनता रहा है और जिस क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के हर शॉट पर प्रत्येक जाति का युवा ताली बजाकर खुश होता रहा - ये दोनों ही ब्राह्मण हैं।
भीमराव अंबेडकर को पढाने वाले विदेश भेजने वाले भी ब्राह्मण ही थे।
तो ब्राह्मणों को कोसने वालों इतिहास को ठीक से पढ़ लीजिए..कृपया

आप सभी के सुझाव और आलोचनाएँ सादर आमंत्रित हैं।
ये जानकारियां बहुत जगह से इकट्ठा करके लिखी गई है। कोई गलती हो तो माफी।


धन्यवाद!!


तो ब्राह्मणों को कोसने वालों इतिहास को ठीक से पढ़ लीजिए..कृपया


आप सभी के सुझाव और आलोचनाएँ सादर आमंत्रित हैं।
ये जानकारियां बहुत जगह से इकट्ठा करके लिखी गई है। कोई गलती हो तो माफी।



धन्यवाद!!